भारत की पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस की दिवंगत नेता इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की पहचान अक्सर आपातकाल के दौर में उपजी परिस्थितियों के लिए याद किया जाता है। संजय गांधी की आकस्मिक मृत्यु के बाद भी देश की जनता हमेशा उनसे जुड़ी बातों को जानना चाहती है। राशिद किदवई अपनी किताब ’24 अकबर रोड’ में संजय गांधी की एक पारिवारिक छवि को पेश करते हैं। उनके किताब में संजय की पत्नी मेनका गांधी (सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद) का जिक्र है। जिसमें मेनका बताती हैं कि संजय गांधी एक राजनेता होने के साथ-साथ काफी केयरिंग हज़बैंड भी थे। जब भी वह खुद को स्वस्थ महसूस नहीं करती थीं, तो वह संसद की कार्यवाही छोड़ उनके साथ रहते थे।
जब वरुण गांधी पैदा होने वाले थे, तब भी वह पत्नी मेनका के साथ दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS) में थे। मेनका कहती हैं, ” एम्स के डॉक्टरों ने बाद में मुझे बताया कि जब उन्हें बच्चा (वरुण गांधी) हुआ, तब संजय गांधी पहले शख्स थे, जो डिलिवरी रूम में बच्चे को देखने आए।”
भारत का राजनीतिक इतिहास संजय गांधी को कई मायनों में याद रखेगा। कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन इंदिरा सरकार में उनकी हैसियत को लेकर हमेशा से एक विमर्श रहा है। लेकिन, कड़े फैसलों के लिए मशहूर संजय गांधी का इंतकाल वक्त से काफी पहले ही एक विमान दुर्घटना में हो गया। 23 जून, 1980 को संजय गांधी टू सीटर विमान के टेस्ट उड़ान भरने के लिए दिल्ली फ्लाइंग क्लब के लिए निकले। लेकिन, विमान उड़ाने के दौरान ही उनका कंट्रोल खत्म हो गया और विमान तीन मूर्ति के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दौरान उनके साथ उनके को-पायलट की भी मौके पर मौत हो गई। उस दौरान संजय की उम्र सिर्फ 34 साल थी। उन्होंने अपने पीछे मेनका और एकलौते बेटे वरुण को छोड़ दिया।
सजंय के विमान दुर्घटना की जानकारी मिलते ही उनकी मां इंदिरा गांधी मौके के लिए भांगी। जब वह पहुंची तो उन्हें संजय गांधी के क्षत-विक्षत शव मिला। इस दौरान इंदिरा गांधी की टूट चुकी थीं। उन्हें ढांढस बंधाने के लिए सिर्फ उनके बड़े बेटे राजीव गांधी थे। संजय गांधी के दाह-संस्कार के दौरान भी राजीव उन्हें अपने बाहों में भरे रखे। उस दौरान गांधी परिवार में हालात ऐसे थे कि जब भी राजीव के दोस्त उन्हें राजनीति से दूरी बनाने को कहते तो वह बोलेत कि उनके माता को उनकी बेहद जरूरत है।