सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) को लागू करने वाली बॉडी केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिए चंदा देने वालों की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। सीआईसी का कहना है कि ऐसा करना यह आरटीआई एक्ट का उल्लंघन होगा। इसको लेकर एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें मांग की गई थी कि पॉलिटिकल पार्टीज के डोनर्स के नाम पब्लिक किए जाएं। सीआईसी ने इस पर कहा कि यह जानकारी पब्लिक इंट्रेस्ट की नहीं है।

21 दिसंबर को जारी किए गए एक आदेश में, सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा ने महाराष्ट्र के एक कार्यकर्ता विहार दुरवे की अपील को खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों को किसने चंदा दिया, इसकी जानकारी मांगने से जुड़ी याचिका की प्रकृति व्यक्तिगत है। यानी कि एसबीआई के मुताबिक इस याचिका को व्यक्तिगत हित के लिए दायर किया गया था। दुर्वे का कहना है कि सीआईसी ने जो आदेश दिया है, वह अकारण ही है क्योंकि इसमें चुनाव आयोग, आरबीआई, लॉ मिनिस्ट्री के ऑब्जेक्शन का उल्लेख नहीं है। दुर्वे ने कहा कि सीआईसी ने ही छह राष्ट्रीय पार्टियों को आरटीआई एक्ट के तहत लाया था।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के विवाद का सामना करते हुए, आयोग ने आगे कहा कि “दाताओं और लोगों के नामों का खुलासा धारा 8 (1) में निहित प्रावधानों के उल्लंघन में हो सकता है। (ई) (आर) आरटीआई अधिनियम के तहत, जो एक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने नागरिक संबंध में एक व्यक्ति को उपलब्ध जानकारी प्रदान करने के लिए छूट देता है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट नहीं होता है कि बड़ा सार्वजनिक हित ऐसी सूचनाओं के प्रकटीकरण को वारंट करता है।”

याचिकाकर्ता में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से चंदे की जानकारी मांगी गई थी। इलेक्टोरल बांड्स में चुनिंदा ब्रांचेज के जरिए खरीदा जाता है। दुर्वे ने अपनी याचिका में एसबीआई से पूछा था कि इन इलेक्टोरल बांड्स को किस-किसने खरीदा था और इसके जरिए किस राजनीतिक पार्टी को चंदा मिला। एसबीआई ने जानकारी देने से इनकार किया तो दुर्वे ने सीआईसी में अपील किया और कहा कि एसबीआई की भूमिका राजनीतिक पार्टियों के हित (पॉलिटिकल पॉर्टीज इंटेरेस्ट) में काम करने के बजाय आम लोगों के हित (पब्लिक इंटेरेस्ट) में काम करने की है। दुर्वे ने पारदर्शिता और जवाबदेही को आधार बनाकर जानकारी मांगी थी।