भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए करीब 6000 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचा जा चुके हैं। लेकिन, यह मालूम नहीं हो पा रहा है कि शिवसेना और टीएमसी को छोड़ किस पार्टी के हिस्से में कितना चंदा आया है। 19 महीनों इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को 6000 रुपये का चंदा मिला। लेकिन, किसके हिस्से में इतनी बड़ी धनराशि गई, यह किसी को पता नहीं है।

गौर करने वाली बात ये है कि चुनाव संबंधी अपनी धनराशि की घोषणा लगभग सभी पार्टियों ने की है। लेकिन, इनमें बीजेपी शामिल नहीं है। बीजेपी ने अभी तक अपने चंदे का विवरण पेश नहीं किया है। लोकसभा चुनाव के दौरान मई तक सभी राजनीतिक दलों ने अपना विवरण चुनाव आयोग के समक्ष पेश किया था। लेकिन, बीजेपी ऐसा नहीं कर पाई है। लोकसभा चुनाव संपन्न होने के 19 दिन बाद चुनावी खर्च का ब्यौरा पार्टियों को देना होता है, लेकिन यहां भी बीजेपी ने अपने खर्च का ब्यौरा नहीं दिया। 30 सितंबर तक पार्टी को कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट देनी थी, वह भी अभी तक जमा नहीं हुआ है। यहां तक कि बीजेपी ने 31 अक्टूबर तक जमा करने वाली ऑडिटेड अकांउट की डिटेल भी जमा नहीं कराई है।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग के समक्ष सिर्फ दो राजनीतिक दलों ने अपने चंदे का विवरण पेश किया है। इनमें शिवसेना ने 60 करोड़ चंदे की बात बताई है, जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 97 करोड़ के चंदे मिलने की बात कही है। कांग्रेस ने अपनी कंट्रीब्यूशन रिपोर्ट में 145 करोड़ रुपये की बात बताई है, लेकिन इसमें बतौर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कितनी धनराशि मिली, इसके बारे में नहीं बताया है। ऐसे में 5,843 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड किसके हिस्से में गया है, इसकी जानकारी अभी तक नहीं है।

गौरतलब है कि मार्च 2018 में बीजेपी ने खुद के द्वारा मिले बॉन्ड के बारे में जो जानकारी दी थी, उस वक्त उसे कुल 222 करोड़ रुपये का 95 फीसदी चंदा हाथ लगा था। बीजेपी ने अपने हिस्से में 215 करोड़ रुपये के चंदे का जिक्र किया। जबकि कांग्रेस को महज पांच फीसदी यानी 5 करोड़ रुपये मिले थे।