(लेखक- रितिका चोपड़ा, अनिषा दत्त)

शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं में उदासीनता को दूर करने के लिए जल्द बड़ा फैसला होने जा रहा है। चुनाव आयोग (Election Commission) सभी केंद्र और राज्य सरकार के विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और 500 से अधिक कर्मचारियों वाली निजी कंपनियों को एक पत्र लिखने जा रहा है कि जिसमें ऐसे कर्मचारियों की निगरानी रखने को कहा जाएगा, जो मतदान के दिन छुट्टी तो लेते हैं लेकिन वोट नहीं डालने जाते हैं।

चुनाव आयोग अपने स्थानीय चुनाव अधिकारियों के माध्यम से सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और निजी कंपनियों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने के लिए कहेगा, जो मतदान न करने वाले कर्मचारियों पर नजर रखेंगे।

नाम न बताने की शर्त पर चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा “हम नियोक्ता से उन कर्मचारियों को चुनाव आयोग द्वारा आयोजित विशेष मतदाता जागरूकता कार्यशालाओं भेजने का अपील करेंगे,  जिन्होंने चुनाव के दिन मतदान नहीं किया। इसका उद्देश्य विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में मतदाता उदासीनता को खत्म करना है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग छुट्टी तो ले रहे हैं लेकिन वोट नहीं डाल रहे हैं। वोट न देने पर कोई भी नहीं चाहता कि उसका नाम सामने आए। हमें उम्मीद है कि मतदान न करने के बाद पहचाने जाने और कार्यशाला के लिए भेजे जाने की कार्रवाई उदासीनता को हतोत्साहित करेगी।”

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People  Act, 1951) की धारा 135 बी के अनुसार, देश में पंजीकृत किसी भी व्यापार, व्यवसाय, औद्योगिक उपक्रम या किसी अन्य प्रतिष्ठान में कार्यरत कर्मचारी को लोकसभा या विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए पात्र हर कर्मचारी को उस दिन के वेतन के साथ एक दिन का अवकाश दिया जाना अनिवार्य है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मतदान के बारे में अधिक जागरूकता के बावजूद शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं में उदासीनता अधिक देखी गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल पंजीकृत मतदाताओं में से 67.40 फीसदी ने वोट डाला। धुबरी (असम), बिष्णुपुर (पश्चिम बंगाल) और अरुणाचल पूर्व जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में क्रमशः 90.66%, 87.34% और 87.03% के साथ देश में सबसे अधिक मतदान दर्ज किया गया। इसके विपरीत, श्रीनगर (14.43%), अनंतनाग (8.98%), हैदराबाद (44.84%), पटना साहिब (45.80%) जैसी शहरी सीटों पर सबसे कम मतदान हुआ।