पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा की सीटों के परिसीमन पर 2026 तक रोक है। दरअसल, दक्षिण के राज्यों में आबादी बढ़ने का औसत उत्तर के राज्यों की अपेक्षा कम है। इसलिए केरल, तमिलनाडु के नेताओं को खतरा महसूस हुआ कि उनकी लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बढ़ जाएंगी। उनके अनुरोध पर बीस साल के लिए परिसीमन पर रोक लगी है। लेकिन दिल्ली निगम सीटों का परिसीमन निगम विधान के हिसाब से हर दस साल में होता है।

करीब 4,19,744 मतदाताओं का पता न चल पाने से दिल्ली की निगम सीटों का परिसीमन (डि-लिमिटेशन) का काम रुक गया है। 2017 के शुरू में दिल्ली के तीनों नगर निगमों का चुनाव होना है। इसके मद्देनजर तीनों निगमों की 272 सीटों के परिसीमन का काम इसी जुलाई तक पूरा करना था।

साल भर से कम समय रह जाने के बावजूद मई में 13 नगर निगमों की सीटों के उपचुनाव हुए थे। जिसमें विधानसभा चुनाव में जीत का रेकार्ड बनाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को विधानसभा चुनाव जैसी सफलता नहीं मिली थी। कांग्रेस को वापसी होने के आसार दिखने लगे थे। इसी से उत्साहित कांग्रेस संसदीय सचिव बनाए गए 21 विधायकों से इस्तीफा मांगने का अभियान चला रही है।

राष्ट्रपति ने इन संसदीय सचिवों के पदों को पुरानी तारीख से लाभ के पद न मानने के विधेयक को लौटा दिया था। अब यह मामला केंद्रीय चुनाव आयोग के पास है। जिस पर फैसला किसी भी दिन आ सकता है। इस कारण दिल्ली की राजनीति इन दिनों गरमा रही है। वैसे दिल्ली के मुख्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता का मानना है कि जल्द ही कमियों को दूर करने काम पूरा कर लिया जाएगा। इससे पहले 2001 की जनगणना के आधार पर 2006 में निगम सीटों का परिसीमन हुआ था। तब हर निगम सीट को समान बनाकर एक विधानसभा के नीचे चार-चार निगम सीटें और एक लोकसभा सीट के नीचे 40-40 निगम सीटें बनाई गई थीं। लेकिन अब आबादी की असमानता के कारण सीटों का भूगोल फिर बदलने वाला है। 2011 की जनगणना में दिल्ली की आबादी 1,67,52,894 थी।

इनमें से नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी इलाके के मतदाताओं को छोड़ने के बाद 1,64,19,787 मतदाताओं को 272 सीटों में बांटना है। इस हिसाब से 61,591 औसत की निगम सीटें बननी चाहिए। लेकिन करीब चार लाख मतदाताओं की गिनती न मिलने से काफी समय से परिसीमन का रुका हुआ है। आबादी का अनुपात बराबर न होने से जहां मटियाला, विकासपुरी, बवाना और बुराड़ी में चार-चार के बजाए सात-सात, मुंडका, किराड़ी, बदरपुर और ओखला में छह-छह और नौ सीटों में पांच-पांच निगम सीटें बनेंगी। उसी तरह करीब 29 विधानसभा सीटों के नीचे चार-चार तीन-तीन निगम सीटें बनेंगी। यही हिसाब लोकसभा सीटों का होगा, जहां संख्या बराबर नहीं रह पाएगी। केवल दक्षिणी दिल्ली लोकसभा के नीचे 40 निगम सीटें होंगी। सबसे कम नई दिल्ली में 25 और सबसे ज्यादा दिल्ली उत्तर पश्चिम में 47 सीटें होने वाली हैं।

यह काम उपराज्यपाल के आदेश से दिल्ली चुनाव आयोग कर रहा है। दावा था कि यह काम जुलाई तक पूरा हो जाएगा। तभी तो उपचुनाव उससे पहले कराए गए। जिससे उस इलाके के लोगों को जनप्रतिनिधि मिल जाएं। वर्ना परिसीमन के बाद सीटें बदल जातीं और आरक्षण के हिसाब से सीटों का आरक्षण भी बदल जाता। मुख्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता का दावा है कि जल्द ही खोए वोटरों को खोज लिया जाएगा और निगम चुनाव अपने तय समय पर ही संपन्न होंगे। लेकिन जो काम तीम महीने पहले होने जाने चाहिए थे वह अब तक न होने से चुनाव समय पर होने पर संशय लग रहा है। परिसीमन के जानकार कांग्रेस नेता चतर सिंह का कहना है कि काम कठिन है। लेकिन आयोग को फ्री हैंड मिलने पर यह काम पूरा हो सकता है। चर्चा है कि उप चुनाव में मात खा चुकी आम आदमी पार्टी (आप) इस काम में ज्यादा सक्रियता दिखा रही है।