चुनावों में फंडिंग को लेकर चुनाव आयोग ने ‘इलेक्टोर बॉन्ड्स स्कीम’ को पारदर्शिता के लिए गंभीर खतरा बताया है। केंद्र सरकार की नीति पर असहमति जाहिर करते हुए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिया जाने वाला चंदा कहीं से भी सही नहीं है। आयोग ने सरकार के इस कदम को गलत फैसला बताया।

बुधवार को दाखिल एक हलफनामें में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 26 मई 2017 को उसने विधि एवं न्याय मंत्रालय को पत्र लिखकर अपने इस विचार से अवगत कराया था। आयोग ने कहा कि उसने अपने पत्र में बताया था कि आयकर कानून, जनप्रतिनिधित्व कानून और वित्त कानून में बदलाव राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता के खिलाफ है। गौरतलब है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 C में हुए संशोधन के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए हासिल चंदे की जानकारी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को नहीं देनी होगी। आयोग ने चंदे के संदर्भ में लागू पारदर्शिता की नीति के खिलाफ बताया।

चुनाव आयोग का कहना है कि यदि राजनीतिक दल इल्टोरल बॉन्ड के जरिए मिलने वाले चंदे की जानकारी नहीं देते हैं तो इससे उनके द्वारा सरकारी कंपनियों और अनजान विदेशी श्रोतों से पैसे लेने की गुंजाइश बढ़ जाएगी, जिसकी जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29B के तहत मनाही है। गौरतलब है कि 2017 में एनडीए की सरकार ने तमाम राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने का फैसला लिया था। केंद्र सरकार तर्क था कि इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में साफगोई देखने को मिलेगी।