साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी दल ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने को लेकर अनुरोध किया था कि ईवीएम के वोटों की गिनती से पहले पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी हो जाए। उन्होंने चुनाव आयोग के 2019 के उस निर्देश को हटाने की भी मांग की, जिसमें ईवीएम के वोटों की काउंटिंग को ‘पोस्टल वोटों की गिनती के किसी भी चरण’ के बावजूद गिनती करने की अनुमति दी गई थी। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने यह कहते हुए विपक्ष की इस मांग को खारिज कर दिया कि चुनाव के बीच में प्रक्रिया को बदला नहीं जा सकता।

अब एक साल से भी अधिक समय बाद बिहार विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने अपने 2019 के निर्देश को वापस ले लिया है। निर्वाचन आयोग काफी समय से राज्य में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रहा है।

बीते 25 सितंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी निर्देशों में चुनाव आयोग द्वारा कहा गया कि ईवीएम से वोटों की गिनती के अंतिम से पहले (दूसरे अंतिम) दौर तब तक नहीं शुरू किया जाएगा, जब तक कि मतगणना केंद्र पर पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी नहीं हो जाती। इसमें ये भी कहा गया है कि यह निर्णय ‘मतगणना प्रक्रिया को और अधिक सुव्यवस्थित बनाने और डाक मतपत्रों की गिनती में आवश्यक स्पष्टता प्रदान करने के लिए’ लिया गया है।

पोस्टल बैलेट को लेकर विपक्ष का रुख

पोस्टल बैलेट वोटों की गिनती पहले पूरी करने की मांग कर रहे विपक्षी दलों का यह तर्क रहा है कि करीबी चुनाव की स्थिति में डाक मतपत्रों की गिनती अंतिम समय में उन्हें अस्वीकार या मान्य करके परिणामों को प्रभावित करना संभव है। इन वोटों की गिनती एक-एक पर्चा मिलाकर की जाती है। उदाहरण के लिए अगर डाक मतपत्र गलत या अस्पष्ट रूप से भरे गए हों, तो उन्हें अस्वीकार किया जा सकता है।

वहीं इस मामले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने 2019 से पहले की स्थिति में लौटने की वकालत करते हुए पिछले साल कहा था, ‘कुल मिलाकर नतीजा यह है कि ईवीएम की गिनती हो सकती है और अगर ईवीएम की गिनती डाक मतपत्र से पहले पूरी हो जाती है, तो भी यह पूरी हो जाएगी।’ सिंघवी चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 54ए का उल्लेख कर रहे थे, जिसमें कहा गया है, ‘रिटर्निंग अधिकारी सबसे पहले डाक मतपत्रों के साथ आगे बताए गए तरीके से व्यवहार करेगा।’

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पिछले साल 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एनसीपी (सपा) ने डाक मतों की गिनती में कथित विसंगतियों का मुद्दा उठाया था। पार्टी के नेता शरद पवार के पोते रोहित पवार ने उस समय चुनाव आयोग से इन समस्याओं को लेकर स्पष्टीकरण मांगा था। उन्होंने कहा था, ‘जब डाक मतपत्रों की गिनती हुई, तो महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का वोट प्रतिशत क्रमशः 43.3% और 43.1% था। हालांकि ईवीएम से मतों की गिनती के बाद महायुति का वोट प्रतिशत बढ़कर 49.5% हो गया। जबकि एमवीए का वोट प्रतिशत घटकर 35% रह गया। आमतौर पर मतपत्रों और ईवीएम से मतगणना में 3-4% से ज्यादा का अंतर नहीं होता है।’

उसी समय हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों के दौरान भी ऐसी ही चिंताएं जताई गई थीं कि डाक मतों के मामले में विपक्षी दल एनडीए से आगे हैं, लेकिन कुल मिलाकर पीछे रह गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने वाईएसआरसीपी की याचिका

पिछले साल लोकसभा चुनावों के साथ-साथ हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) मुकेश कुमार मीणा द्वारा यह कहने के बाद कि जिन डाक मतपत्रों पर आरओ की मुहर नहीं लगी है, उन्हें भी वैध माना जाएगा। वाईएसआरसीपी ने चुनाव आयोग से इस आदेश की तत्काल समीक्षा की मांग की। पार्टी ने दावा किया कि इससे ‘चुनावी प्रक्रिया की अखंडता से समझौता हो सकता है’। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने वाईएसआरसीपी की याचिका में ‘कोई दम नहीं’ कहते हुए खारिज कर दिया था।

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मई 2019 में कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने लोकसभा चुनावों में डाक मतपत्रों में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए केरल हाई कोर्ट का रुख किया था। अपनी जनहित याचिका में, चेन्निथला ने जांच की मांग की और आरोप लगाया कि शीर्ष सरकारी अधिकारियों के इशारे पर ‘सरकार समर्थक’ पुलिस एसोसिएशन के पदाधिकारियों द्वारा डाक मतपत्रों में गंभीर धोखाधड़ी की गई है।

कौन कर सकता है डाक (पोस्टल बैलेट) द्वारा मतदान

पिछले कुछ वर्षों में डाक मतपत्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। क्योंकि अधिक से अधिक लोगों को डाक द्वारा मतदान करने की अनुमति मिल गई है। चुनाव संचालन नियम, 1961 के प्रावधानों के अनुसार, सशस्त्र बलों के सदस्य, भारत से बाहर तैनात सरकारी कर्मचारी, या चुनाव ड्यूटी पर तैनात लोग डाक द्वारा मतदान कर सकते हैं, साथ ही निवारक निरोध में रखे गए मतदाता भी डाक द्वारा मतदान कर सकते हैं।

इस श्रेणी के तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, कैबिनेट मंत्री और स्पीकर जैसे विशेष मतदाताओं के पास भी डाक द्वारा मतदान करने का विकल्प होता है।

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चुनाव आयोग के निर्देश पर विधि मंत्रालय ने 2019 में अनुपस्थित मतदाताओं की एक नई श्रेणी शुरू की। जो अब डाक द्वारा मतदान का विकल्प भी चुन सकते हैं। ये आवश्यक सेवाओं में कार्यरत मतदाता हैं। जिनमें रेलवे कर्मचारी और मीडियाकर्मी शामिल हैं। ऐसे कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों के कारण मतदान करने में असमर्थ हैं। 2020 में चुनाव आयोग ने 80 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों और विकलांग व्यक्तियों के लिए भी यह सुविधा बढ़ा दी।

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट सिस्टम (ईटीपीबीएस) भी शुरू किया। जिसके माध्यम से डाक मतपत्र यानी डाक के बजाय इलेक्ट्रॉनिक रूप से सेवा मतदाताओं को भेजे जाते हैं। हालांकि मतपत्र अभी भी डाक द्वारा ही वापस किए जाते हैं।

जब चुनाव आयोग ने 2019 में निर्देश जारी किया था उस समय ईटीपीबीएस की शुरुआत के बाद से डाक मतपत्रों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। ऐसे में ईवीएम से डाक मतपत्रों की गिनती को पूरी तरह से अलग करने का कारण बताया था।

डाक मतपत्रों का कुल हिस्सा कितना है?

1990 के दशक में जब से चुनाव आयोग ने डाक मतपत्रों पर सम्पूर्ण डेटा प्रकाशित करना शुरू किया है, तब से लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में इस सेवा का लाभ उठाने वाले मतदाताओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। 1996 के लोकसभा चुनावों में 3.6 लाख डाक मतपत्र डाले गए थे। जो उस वर्ष डाले गए कुल मतों का केवल 0.1% था। जबकि 2024 में 42.82 लाख लोगों ने डाक द्वारा मतदान किया। जो कुल मतों का 0.66% है। ये संख्या आम चुनावों में डाक मतपत्रों का अब तक का सबसे बड़ा हिस्सा है।

अकेले 2019 और 2024 के बीच डाक मतपत्रों की संख्या में 53% की वृद्धि हुई। हालांकि सबसे ज्यादा वृद्धि 2014 और 2019 के बीच देखी गई। जब डाक मतपत्रों की संख्या में 143% की वृद्धि हुई, जो अब तक की सबसे ज्यादा वृद्धि है।

2024 के चुनावों में आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक 5.12 लाख डाक मतपत्र देखे गए। इसके बाद दूसरे नंबर पर राजस्थान में 3.76 लाख, जबकि तीसरे पर तमिलनाडु में 3.11 लाख, चौथे पर गुजरात में 3.08 लाख और पांचवें पर पश्चिम बंगाल में 2.93 लाख डाक मतपत्र रहे।

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पांच राज्यों – महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार – को छोड़कर सभी में 2019 की तुलना में 2024 में डाक मतपत्रों की संख्या में वृद्धि देखी गई। तेलंगाना में डाक मतों की संख्या में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई। जो 2019 में 20,603 से 959% बढ़कर 2024 में 2.18 लाख हो गई। दूसरी ओर महाराष्ट्र में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। जो 2019 में 2.73 लाख से 2024 में 2.39 लाख तक 12% की गिरावट है।

इसी तरह 2014 से 2019 तक केवल तीन राज्यों- गोवा, मिजोरम और त्रिपुरा में डाक मतपत्रों की संख्या में गिरावट देखी गई। इस अवधि में सबसे ज्यादा वृद्धि मणिपुर में दर्ज की गई, जहां डाक मतपत्रों में 2,081% की वृद्धि हुई। उसके बाद झारखंड में 1,435% और पंजाब में 1,434% की वृद्धि हुई।

2004 से जब चुनाव आयोग ने डाक मतदान का विस्तृत विवरण प्रकाशित करना शुरू किया, तब से आंकड़े दर्शाते हैं कि अस्वीकृत डाक मतपत्रों की संख्या पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ गई है। लेकिन डाक मतपत्रों में उनकी हिस्सेदारी में काफी कमी आई है। 2004 में 95,459 डाक मतपत्र अस्वीकृत हुए। जो कुल डाक मतपत्रों का 15.77% था। 2024 में 5.36 लाख डाक मतपत्र अस्वीकृत हुए। लेकिन वे कुल डाक मतपत्रों का 12.51% थे। अपवाद 2009 था जब अस्वीकृत डाक मतपत्रों की हिस्सेदारी 21.54% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।

दर्ज की गई गिरावट

डाक मतपत्रों की संख्या में बढ़ोत्तरी बिहार सहित राज्य विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल रही है। ये बात इसलिए क्योंकि विभिन्न राज्यों में हाल ही में हुए दो विधानसभा चुनावों के दौरान केवल गुजरात और उत्तर प्रदेश में ही डाक मतपत्रों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है। 2020 और 2025 के बीच हुए विधानसभा चुनावों के सबसे हालिया सेट में अरुणाचल प्रदेश में डाक मतपत्रों का सबसे अधिक हिस्सा दर्ज किया गया। जो कुल मतों का 5.3% था। इसके बाद सिक्किम में 4.8%, गोवा में 2.81%, केरल में 2.77% और हिमाचल प्रदेश में 2.74% रहा।

बिहार में 1995 से 2005 तक लगातार तीन विधानसभा चुनावों में गिरावट के बाद हर चुनाव में डाक मतपत्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1995 में 2,209 डाक मत डाले गए थे, जो कुल मतों का 0.01% था। 2020 तक डाक मतपत्रों की संख्या बढ़कर 2.68 लाख या कुल मतों का 0.63% हो गई। 2005 से 2010 के बीच डाक मतपत्रों की संख्या 2,896% बढ़कर, केवल 951 से 28,493 हो गई।