हाल ही में अपने बिछड़े परिवार से मिलने के लिए पाकिस्तान से भारत आई गीता को यहां भेजन के पहले उसे संरक्षण देने वाले ईधी फाउंडेशन ने भारतीय उच्चायोग से अनुरोध किया था कि वह पहले गीता के डीएनए का मैच उस परिवार से कराएं जो गीता को अपनी बेटी बताने का दावा कर रहा है। इसके बाद ही गीता की वतन वापसी की जाए। इस तथ्य की अनदेखी कर दिए जाने के कारण स्वदेश आने के बाद भी गीता को इंदौर में मूक-बधिरों के एनजीओ में रहना पड़ रहा है।

पाकिस्तान के बहुचर्चित स्वयंसेवी संगठन ईधी फाउंडेशन के सचिव अनवर काजमी ने जनसत्ता को फोन पर बताया कि उन्हें पहले से ही बिहार के महतोे परिवार के गीता के मां-बाप के दावे पर शक था। जनार्दन महतो ने गीता के बारे में जो जानकारी दी थी वह उसकी बताई गई बातों से मेल नहीं खाती थी।

काजमी ने जनसत्ता से कहा कि हमें अंदाजा था कि जिस परिवार को उसने पहचाना था, वह वास्तव में उसका परिवार नहीं भी हो सकता था। बिहार के परिवार का दावा था कि उनकी बेटी की शादी हो चुकी थी और उसकी एक बच्ची भी थी। लेकिन यह कैसे मुमकिन है, क्योंकि गीता हमें जब मिली थी तब वह बहुत छोटी थी।

अनवर काजमी ने कहा कि यह संदेह होने के बावजूद हमने उसे भारत जाने से नहीं रोका क्योंकि गीता भारत लौटने के लिए बेचैन हो रही थी। इतना ही नहीं ईधी फांउडेशन को 13-14 परिवारों से ई-मेल व फोटो मिले थे जिनमें यह दावा किया गया था कि गीता उनकी बेटी है। गीता ने बाकी सभी परिवारों को पहचानने से इनकार कर दिया। लेकिन जब महतो परिवार को देखा तो उसने उन्हें पहचान लिया। इसके बाद हमने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से अनुरोध किया कि वे गीता का खून लेकर उसका डीएनए परीक्षण करवा लें।

अनवर काजमी ने बताया कि हमने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से कहा था कि हम आपको गीता के खून का नमूना दे देते हैं, उसे आप भारत भेज दीजिए। लेकिन उन्होंने कहा कि अब जब यह पता चल गया है कि वह भारतीय है तो हम इसे वापस भेज ही रहे हैं, वहीं डीएनए जांच हो जाएगी। जब इस बारे में विदेश मंत्रालय से बात की गई तो वहां से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। मंत्रालय का मानना था कि पाकिस्तान में डीएनए जांच करवाने में दिक्कतें आतीं। इस संबंध में एक जानकार का कहना था कि कानून संबंधी दिक्कतों को देखते हुए यह परीक्षण भारत में ही करवाने का फैसला किया गया। उसका रक्त नमूना एक गवाह के सामने लेना पड़ता और भारत आ जाने पर गवाह को बुलवाने में दिक्कत होती। अगर गीता का डीएनए महतो के डीएनए से मैच नहीं करता तो समस्या और बढ़ जाती।

अनवर काजमी ने बताया कि उनके संगठन ने प्रधानमंत्री के घोषित एक करोड़ रुपए का दान ठुकराया नहीं है बल्कि शालीनतापूर्वक उसे इसलिए लेने से मना कर दिया है क्योंकि सिद्धांतत: उनका संगठन किसी सरकार से मदद नहीं लेता है। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि 1951 में स्थापित ईधी फाउंडेशन के संस्थापक अब्दुल सत्तार ईधी गुजरात के जूनागढ़ के बंतवा गांव के रहने वाले हैं। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया था। फिर उन्होंने कराची में गरीबों के लिए डिस्पेंसरी स्थापित की।

इस संगठन के पास दुनिया का सबसे बड़ा एंबुलेंस का बेड़ा है जिसमें हेलिकॉप्टर व विमान तक शामिल हैं, जो 24 घंटे मुफ्त सेवा उपलब्ध करवाते हैं। वे ब्लड बैंक , अस्पतालों की कड़ी के अलावा हर धर्म के लोगों की लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं। उन्हें खुद अपने हाथों से नहलाते हैं। उनके अस्पतालों में दस लाख से ज्यादा प्रसव हो चुके हैं। करीब 20000 अनाथ बच्चों को उन्होंने गोद दिलवाया है। उन्हे रैमन मैगसायसाय से लेकर गांधी शांति पुरस्कार तक से नवाजा जा चुका है।

परिवार की पहचान नहीं होने के कारण एनजीओ ही है गीता का ठौर

परिवार के दावे पर था शक:

हमें पहले से ही बिहार के महतो परिवार के गीता के मां-बाप के दावे पर शक था। जनार्दन महतो ने गीता के बारे में जो जानकारी दी थी वह उसकी बताई गई बातों से मेल नहीं खाती थी। हमें अंदाजा था कि जिस परिवार को उसने पहचाना था, वह वास्तव में उसका परिवार नहीं भी हो सकता था।

मना की ‘सरकारी मदद’

हमारे संगठन ने भारत के प्रधानमंत्री के घोषित एक करोड़ रुपए का दान ठुकराया नहीं है बल्कि शालीनतापूर्वक उसे लेने से मना कर दिया है। सिद्धांतत: हमारा संगठन किसी सरकार से मदद नहीं लेता है। .. अनवर काजमी, ईधी फाउंडेशन के सचिव

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