देश की 65 साल पुरानी फार्मा कंपनी हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड भी आर्थिक सुस्ती की चपेट में है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने कहा है कि उनकी आर्थिक स्थिति लचर है इस वजह से वह पेनिसिलिन का प्रोडक्शन करने में असमर्थ है। हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स मोदी सरकार की मेक इन इंडिया योजना के तहत दुनिया की सबसे पुरानी एंटीबायोटिक दवाओं में से एक पेनिसिलिन के उत्पादन को फिर से शुरू करने के लिए सरकार की पहली पसंद थी।
बता दें कि यह कंपनी रसायन और उर्वरक मंत्रालय की शाखा, फार्मास्यूटिकल्स विभाग (DoP) के तहत काम करती है। इसकी स्थापना 1954 में हुई थी। प्रिंट में छपी खबर के मुताबिक फार्मास्यूटिकल्स विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने बताया है कि हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स ने अपनी लचर व्यवस्था के लिए सूचित किया है। कंपनी ने कहा है कि वह सरकार की इस मुहिम में फिलहाल शामिल नहीं हो सकती। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी है कि सरकार ‘निजी दवा निर्माताओं से निविदाएं आमंत्रित करें।’
एक अन्य अधिकारी ने बताया ‘हमने स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) को सूचित किया है कि वित्तीय संकट को देखते हुए हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स पेनिसिलिन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं है। यह अभी भी रिवाइवल मोड में है, इसलिए बड़ी परियोजनाओं को अपने हाथ में लेने में सक्षम नही है।’
अधिकारी ने आगे कहा ‘हमने डीएचआर को उत्पादन शुरू करने के लिए दवा निर्माताओं से निविदाएं आमंत्रित करने का सुझाव दिया है। हमने कहा है कि हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड पर निर्भरता को छोड़े दें। हालांकि अगर सरकार हमें वित्तीय मदद देती है तो हम इसपर अपना अंतिम निर्णय दे सकते हैं।’
बता दें कि सरकार पेनिसिलिन का भारी मात्रा में प्रोडक्शन करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सरकार ने यह कदम डीएचआर के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को पेनिसिलिन की जरूरतों के बारे में सूचित करने के बाद लिया है। डीएचआर के मुताबिक अगले तीन वर्षों में देश में पेनिसिलिन की 13,000 मिलियन से अधिक खुराक की आवश्यकता है। इनमें 600 मिलियन खुराक इंजेक्शन पेनिसिलिन (बेंजैथिन) तो ओरल पेनिसिलिन (फेनोक्सिमिथाइल) की 12,600 टैबलेट शामिल है।