द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा ओमिडयार नेटवर्क इंडिया के साथ प्रस्तुत और डिप्टी एसोसिएट एडिटर उदित मिश्रा द्वारा संचालित आईई थिंक माइग्रेशन सीरीज के आठवें संस्करण में क्षेत्रीय विशेषज्ञों ने पोर्टल के डिजाइन के लिए एक चैरिटी आधारित के स्थान पर अधिकार-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता के बारे में बात की।

विकास और विकास की गाथा में कोई भी भारतीय पीछे न रहे, यह उनका अधिकार है। इस दृष्टिकोण को साकार करने का एक महत्वपूर्ण पहलू लाखों भारतीयों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के अंतिम छोर तक वितरण को लक्षित करना है। देश भर में असंगठित कामगारों का राष्ट्रीय डेटाबेस ई-श्रम आठ महीने के भीतर 28 करोड़ असंगठित कामगारों का पंजीकरण पहले ही पूरा कर चुका है।

ई-श्रम का एक प्रमुख उद्देश्य आपदाओं के दौरान कमजोर श्रम शक्ति को सामाजिक सुरक्षा लाभ और नितान्त आवश्यक सहायता प्रदान करना है। ई-श्रम डेटाबेस में सभी पंजीकृत या असंगठित श्रमिकों के स्थायी और वर्तमान पता के फील्ड की तुलना करके, हम प्रवासी की पहचान कर सकते हैं और उन्हें ट्रैक कर सकते हैं। हमने पंजीकृत कामगारों को एसएमएस भेजकर अनुरोध किया है कि वे किसी अन्य व्यवसाय या जनांकिकीय विवरण के साथ अपने वर्तमान पता फील्ड को अपडेट करें जो शायद बदल गया हो।

हम मासिक खाद्यान्न संग्रह के स्थान डेटा के आधार पर खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग की ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना के साथ ई-श्रम को एकीकृत करने की प्रक्रिया में हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि श्रमिक तक सामाजिक सुरक्षा लाभों के पहुंचने में कोई बाधा न हो, इसके लिए हम विभिन्न राज्य सरकारों और उनके संबंधित श्रम विभागों के साथ ई-श्रम डेटाबेस को एकीकृत करने की प्रक्रिया में हैं।

दूसरा, ई-श्रम प्लेटफार्म एपीआइ-आधारित एकीकरण के माध्यम से राज्य सरकारों के साथ सभी प्रासंगिक और साझा करने योग्य डेटा को गतिशील तरीके से साझा करेगा। प्रवासी कामगार के गृह राज्य और जिस राज्य में वह गया है, उसके आधार पर प्रत्येक कामगार का प्रासंगिक डेटा साझा किया जाएगा।

प्रत्येक राज्य सरकार प्रत्येक व्यवसाय या आय वर्ग के लिए डिजाइन किए गए लाभ प्रदान करने में सक्षम हो सकती है। केंद्रीय योजनाओं का लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है। हमने प्रत्येक असंगठित श्रमिक को एक यूनिवर्सल खाता संख्या के रूप में एक विशिष्ट पहचान दी है जो स्वीकार्य, मान्यता प्राप्त और उनके पूरे जीवनकाल में अद्वितीय रहेगी।

ई-श्रम की स्थिति पर

चंदन कुमार: ई-श्रम डेटा के अनुसार 27.5 करोड़ कामगार हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने सामाजिक सुरक्षा के नौ संकेतक निर्धारित किए हैं – चिकित्सा लाभ, बीमारी, बेरोजगारी, बुढ़ापा, रोजगार के दौरान चोट, परिवार, मातृत्व, अवैधता और उत्तरजीवी लाभ। बहुत से लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हैं लेकिन भारत ने पहले ही ईपीएफओ (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) और ईएसआइसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) की योजनाओं के माध्यम से इसे हासिल कर लिया है।

सरकार ई-श्रम के तहत जो लाभ अर्थात प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना प्रदान कर रही है, इन सामाजिक सुरक्षा संकेतकों को टुकड़ों में कवर करती है, जिसे मैं अधिकारपरक के बजाय चैरिटीपरक दृष्टिकोण कहंूगा। सरकार को उस सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम को लागू करना चाहिए था जो मजदूर आंदोलन से आया था, जो बहुत मजबूत श्रमिक संघ आंदोलन था।

इनमें से अधिकांश सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम उन श्रमिकों के लिए हैं जो कुछ अंशदान कर सकते हैं। यदि आप हालिया सीएमआईई डेटा या पीएलएफएस डेटा देखें, तो बेरोजगारी की दर बहुत बड़ी है।

जमीनी अनुभव

आशिफ शेख : हम कामगार को ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा लाभों से कैसे जोड़ सकते हैं? हमने महसूस किया कि यदि कोई पोर्टल कई सामाजिक सुरक्षा लाभ जोड़ सकता है, तो यह प्रवासी आबादी के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम ही हो सकता है।

दूसरा मुद्दा बीओसीडब्ल्यू (भवन और अन्य निर्माण कल्याण) फंड का उपयोग है। हमें उन्हें भी लिंक करने की जरूरत है।

शिल्पा कुमार पार्टनर, ओमिडयार नेटवर्क इंडिया

हम इस डेटाबेस पर निर्माण कर सकते हैं। डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए हमें बिचौलियों की जरूरत है। तभी यह डेटाबेस अधिक इंटरैक्टिव बन सकता है और अंतर्दष्टि को सक्षम कर सकता है। इससे योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन होगा।

सामाजिक सुरक्षा पटल पर

दिव्या वर्मा: ई-श्रम वास्तव में डेटा और अनुमानों में एक महत्वपूर्ण अंतर को दूर करने का प्रयास करता है। इसकी कई प्रगतिशील विशेषताएं हैं, उनमें से एक स्व-पंजीकरण है। अब कोई भी अनौपचारिक कामगार बिना प्रमाण या रोजगार प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए घोषित कर सकता है कि वह अनौपचारिक कामगार है क्योंकि ठीक यही उसे अनौपचारिक कर्मचारी बनाता है।

श्रमिकों के लिए खुद को पंजीकृत करने के लिए विशेष रूप तैयार किए गए कामन सर्विस सेंटर भी हैं। लेकिन ई-श्रम के डिजाइन और वास्तुकला की बहुत ही संरचनात्मक और बुनियादी मौलिक आलोचनाएं हैं। यह वैधानिक कानून द्वारा समर्थित नहीं है; यह कानूनी रूप से अनिवार्य अधिकार नहीं है जिसके लिए श्रमिक राज्य और नियोक्ताओं को जवाबदेह ठहरा सकें। इसका मतलब यह है कि अनौपचारिक कामगार पहले से ही काफी अशक्त हैं और वास्तव में उनके पास ई-श्रम के माध्यम से एक गारंटीकृत पंजीकरण या सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने का कोई साधन नहीं है।

यह समावेश के लिए एक थोड़ा निम्नस्तरीय डिजाइन है। फिर डिजिटल डिवाइड के लिए बिचौलिए की आवश्यकता होती है। संसद में पेश की गई सामाजिक सुरक्षा संहिता अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हुई है और अनौपचारिक तथा औपचारिक श्रमिकों के बीच विभाजन बना हुआ है।
कार्यान्वयन की चुनौतियों पर

संजय अवस्थी: प्रवासन प्रक्रिया की बारीकियों को समझने के लिए ई-श्रम एक बहुत ही आवश्यक सामंजस्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस पोर्टल ने अब तक 400 से अधिक व्यवसायों को पंजीकृत किया है, इसलिए यह आपूर्ति और मांग के अंतर को पाटने में मदद कर सकता है। ई-माइग्रेट पोर्टल से लिंकिंग प्रशंसनीय है। लेकिन महिलाओं के लगातार बढ़ते योगदान के साथ, क्योंकि इन श्रमिकों में से 68 प्रतिशत महिलाएं हैं, हमें उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।

आशिफ शेख: हम कामगार को ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा लाभों से कैसे जोड़ सकते हैं? हमने महसूस किया कि यदि कोई पोर्टल कई सामाजिक सुरक्षा लाभ जोड़ सकता है, तो यह प्रवासी आबादी के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम ही हो सकता है। दूसरा मुद्दा बीओसीडब्ल्यू (भवन और अन्य निर्माण कल्याण) फंड का उपयोग है। हमें उन्हें भी लिंक करने की जरूरत है।