भारत की राजनीति में वंशवाद या परिवारवाद का जिक्र काफी होता है। लगभग सभी पार्टियों पर आरोप लगता रहा है कि वह वंशवाद को बढ़ावा देकर अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाते हैं और नेता बनाते हैं। ऐसी कोई भी पार्टी नहीं है जिसके ऊपर ऐसे आरोप ना लगे हों। ऐसी राजनीति करने के लिए नेहरू-गांधी, बादल, अबदुल्ला और सिंधिया मशहूर या यू कहें बदनाम हैं। इन सबके अलावा समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव तो वंशवाद की राजनीति करने के लिए सबसे ज्यादा बदनाम हैं। लेकिन सभी को जानकर हैरानी होगी की वंशवाद को समाजवादी पार्टी से ज्यादा बढ़ावा कांग्रेस ने दिया है । किस पार्टी में कितने लोग एक ही परिवार के हैं इसका पता करने के लिए न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान की पढ़ाई कर रही कंचन चंद्रा ने एक रिसर्च की है। कंचन की यूनिवर्सिटी ने उनकी रिसर्च को ‘Democratic Dynasties: State, Party and Family in Contemporary Indian Politics’ नाम से किताब के रूप में छपवाया भी है। इससे कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
डाटा के मुताबिक, लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की तरफ से जो लोग हैं उनमें से 37 प्रतिशत का राजनीतिक परिवार से कोई ना कोई संबंध है। वहीं राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के लगभग 73 प्रतिशत सांसदों को वंशवाद से प्रेरित होकर टिकट मिली थी। वहीं इस लिस्ट में सबसे आगे शरद पंवार की नेशनल कांग्रेस पार्टी (NCP) है। वहीं बीजेपी की बात करें तो उसमें वंशवाद 20 प्रतिशत के कम है।
इस किताब में बताया गया है कि आंकड़ों से साथ यह देखना भी जरूरी है कि पार्टी कितनी पुरानी है। जैसे कांग्रेस बहुत पुरानी है तो उसमें वंशवाद ज्यादा होने के चांस भी हैं, वहीं दूसरी तरफ जो पार्टी जनता दल या कांग्रेस के टूटने से बनी हैं उनमें वंशवाद कम है। इसमें सपा, जेडयू, लोजपा और एनसीपी शामिल हैं।
वहीं वंशवाद ज्यादा होने की वजह यह भी है कि जब पार्टी पर किसी एक शख्स का मुख्य कंट्रोल होता है तो वह अपने जानने वालों को पार्टी में शामिल करके चीजों का फायदा उठाने की कोशिश करता है।