हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का अपने निर्वाचन क्षेत्र उचाना कलां में जबरदस्त विरोध हो रहा है। दुष्यंत चौटाला जेजेपी के सबसे बड़े चेहरे हैं लेकिन जिस तरह का विरोध उन्हें अपने विधानसभा हलके में झेलना पड़ रहा है, उसके बाद लोगों की जुबां पर सवाल यह है कि क्या चौटाला इस बार उचाना कलां से चुनाव जीत पाएंगे?
यहां बताना होगा कि दुष्यंत चौटाला ने 2019 के विधानसभा चुनाव में उचाना कलां सीट बड़े मार्जिन से जीती थी। तब उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को 47000 से ज्यादा वोटों से हराया था और हरियाणा में जीत का रिकॉर्ड बनाया था।
चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे से है मुकाबला
उचाना में इस बार दुष्यंत चौटाला के लिए राजनीतिक स्थितियां बेहद कठिन हैं। उनके सामने हिसार से पूर्व सांसद और चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर लड़ रहे हैं। बीजेपी ने यहां से देवेंद्र अत्री को टिकट दिया है। ये तीनों ही उम्मीदवार जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
उचाना कलां सीट चौधरी बीरेंद्र सिंह का गढ़ मानी जाती है। भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी प्रेमलता को यहां से हार मिली थी लेकिन फिर भी उचाना कलां और जींद जिले में चौधरी बीरेंद्र सिंह का राजनीतिक प्रभाव है। इस बार उन्होंने अपने बेटे को चुनाव जिताने के लिए पूरी ताकत लगाई हुई है।
दुष्यंत का यह विरोध तब हुआ जब वह इस विधानसभा हलके के सबसे बड़े गांव छात्तर में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे। वहां मौजूद किसानों और अन्य ग्रामीणों ने दुष्यंत चौटाला के साथ ही उनके काफिले की गाड़ियों को घेर लिया और दुष्यंत चौटाला मुर्दाबाद के नारे लगाए तो चौटाला को वहां से बिना प्रचार किए ही निकलना पड़ा।
उचाना कलां में किसानों के विरोध और सामने से मजबूत उम्मीदवार के चलते दुष्यंत चौटाला को इस बार चुनाव जीतने में खासी मुश्किल हो सकती है।
आखिर क्या है विरोध की वजह?
यहां याद दिलाना होगा कि 2020 में मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में जब किसानों ने जोरदार आंदोलन किया था तब भी दुष्यंत चौटाला को विरोध का सामना करना पड़ा था। किसानों ने मांग की थी कि चौटाला को हरियाणा की बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेना चाहिए लेकिन दुष्यंत चौटाला सरकार के साथ बने रहे।
लोकसभा चुनाव 2024 में जब दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला ने हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, तब भी उन्हें कई जगहों पर किसानों का विरोध झेलना पड़ा था। इसके बाद कई बार दुष्यंत चौटाला के खिलाफ किसानों ने नाराजगी दिखाई थी। जींद जिले में किसान राजनीति का अच्छा खासा असर है।
जेजेपी ने पहली बार हरियाणा में विधानसभा का चुनाव 2019 में लड़ा था और पहली बार में ही 10 सीटें जीतकर हरियाणा की राजनीति में अपनी जोरदार धमक दर्ज कराई थी। पिछले चुनाव में जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो जेजेपी ने बीजेपी को समर्थन दिया और राज्य में सरकार बनाई। लेकिन इस साल मार्च में बीजेपी ने जेजेपी से गठबंधन तोड़ दिया था।
आसपा (कांशीराम) से किया है गठबंधन
विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) के साथ गठबंधन किया है। जेजेपी 70 सीटों पर और आसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।