Dolo 650: बुखार में खाई जाने वाली दवा डोलो-650 टैबलेट के निर्माताओं पर आरोप लगा है कि पर्चे पर मरीजों को इस दवा का नाम लिखने के लिए कंपनी ने डॉक्टरों को 1,000 करोड़ रुपये के गिफ्ट बांटे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताया है और केंद्र को 10 दिन में जवाब देने को कहा है।
याचिकाकर्ता फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMRAI) की ओर से पेश वकील संजय पारिख ने कोर्ट में दावा किया कि बुखार के मरीजों के इलाज के लिए डोलो-650 के नाम को सुझाने के लिए एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के गिफ्ट डॉक्टरों को दिए गए हैं। पारीख ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट को यह जानकारी दी।
कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि दवाओं की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों को गिफ्ट देने वाली कंपनियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में डॉक्टरों पर तो केस चलता है, लेकिन दवा कंपनियां बच जाती हैं। याचिका में यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP) से वैधानिक समर्थन की मांग की गई थी।
पारीख ने मौजूदा कोड को बाध्यकारी बनाने के लिए अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि इसके ना होने से मरीजों को ब्रांडेड कंपनियों की बहुत ज्यादा कीमत वाली दवाई खरीदनी पड़ती हैं क्योंकि अक्सर उनका इलाज करने वाले डॉक्टर गिफ्ट मिलने के लालच में इन्हीं दवाईयों का नाम पर्चे पर लिखते हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हम यह आदेश नहीं दे सकते कि संसद कानून बनाए।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है। मुझे भी कोविड होने पर भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया था। केंद्र सरकार को दस दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।
याचिका में कहा गया कि इस स्थिति में, ग्राहक ब्रांडेड दवाओं के लिए भुगतान करता है जिनका नाम डॉक्टरों द्वारा उन्हें दिया जाता है। याचिका में तर्क दिया गया कि यूसीपीएमपी को वैधानिक आधार देने से प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही मिलेगी।