Orissa High Court: ओडिशा हाई कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के एक मामले में बेहद सख्त रुख दिखाया है। अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह दस लाख रुपये का मुआवजा दे और इसमें से 2 लाख रुपये तहसीलदार की सैलरी से काटे जाने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि बुलडोजर न्याय का पैटर्न बेहद परेशान करने वाला है। बताना होगा कि बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सख्त दिशा-निर्देश लागू कर चुका है।
आईए, आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है?
यह मामला ओडिशा में एक गोष्ठीगृह/सामुदायिक केंद्र के निर्माण का है। गोष्ठीगृह/सामुदायिक केंद्र ऐसी जमीन पर था जो गोचर (चारागाह भूमि) के रूप में क्लासीफाइड थी और यह Odisha Prevention of Land Encroachment Act, 1972 (OPLE Act) के अंतर्गत आती है। 1985 से यहां गोष्ठीगृह/सामुदायिक केंद्र किसी न किसी रूप में था और 1999 में सुपर साइक्लोन आने के बाद इसकी मरम्मत भी की गई थी।
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2016-18 में ‘अमा गांव अमा विकास योजना’ और विधायक निधि के तहत दिए गए फंड के जरिए इसका पुनर्निर्माण किया गया था। इसका इस्तेमाल पब्लिक वेलफेयर के कार्यक्रमों के लिए किया जाता था।
इस मामले में आखिर क्या आरोप हैं?
आरोप यह है कि यह जमीन गोचर के रूप में क्लासीफाइड है लेकिन अधिकारियों ने कभी भी इस बात पर आपत्ति नहीं जताई कि यहां पर गोष्ठीगृह/सामुदायिक केंद्र बनाया गया है। जबकि गांव के लोग इस जमीन (जहां पर गोष्ठीगृह/सामुदायिक केंद्र बना) के बदले में कुछ जमीन लेने-देने के लिए भी तैयार थे।
जुलाई, 2024 में OPLE Act के जरिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई और नोटिस जारी किया गया। याचिकाकर्ताओं ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे OPLE Act की धारा 8 ए के तहत अपनी याचिका दायर करें। इसके बाद जब इसे तमाम वजहों से खारिज कर दिया गया तो याचिकाकर्ताओं ने इसे अपीलीय प्राधिकारी सब कलेक्टर के सामने चुनौती दी।
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बेदखली की कार्रवाई ना करें – हाई कोर्ट
- 29.11.2024 को हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि मामले में अपील के लंबित रहने तक अधिकारी किसी भी तरह की बेदखली की कार्रवाई से दूर रहें लेकिन आदेश के बावजूद 05.12.2024 को बेदखल किए जाने का एक और नोटिस जारी किया गया। इसे फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने 13.12.2024 को अपना रुख दोहराया लेकिन उसी दिन सब कलेक्टर ने इस मामले में सुनवाई की और आदेश को सुरक्षित रख लिया।
हैरान करने वाली बात यह है कि उसी दिन शाम को 5:15 पर इसे गिराए जाने का नोटिस चिपका दिया गया और कहा गया कि अगली सुबह इसे ध्वस्त कर दिया जाएगा। 14.12.2024 को सुबह 10 बजे इस स्ट्रक्चर को गिरा दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में अवमानना याचिका तैयार की गई।
अदालत ने तमाम बातों पर विचार करने के बाद कहा कि यह कार्रवाई संवैधानिक प्रक्रिया की उपेक्षा करती है और ऐसा तब किया गया जबकि मामला विचाराधीन था। अदालत ने कहा कि तहसीलदार पर संवैधानिक जिम्मेदारी का दायित्व है।
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जस्टिस पाणिग्रही ने क्या कहा?
जस्टिस पाणिग्रही ने कहा, ‘सार्वजनिक धन से जन कल्याण के लिए बनाए गए और दशकों तक बिना किसी विरोध के काम करते रहे ढांचे को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना मिनटों में मलबे में बदल दिया गया। यह केवल ढांचा नहीं है, जिसे ध्वस्त किया गया। यह कानून का पालन करने वाले नागरिकों की गरिमा है, जिन्होंने टकराव के माध्यम से नहीं बल्कि अदालतों के जरिये सुरक्षा मांगी है। कार्यपालिका से केवल आदेशों को लागू करने की अपेक्षा नहीं की जाती है बल्कि यह अपेक्षा की जाती है कि जब अदालतें रुकने के लिए कहें तो वे इंतजार करे। लेकिन इस रोक को जानबूझकर अनदेखा किया गया।’
अदालत ने इस मामले में ढांचे के पुनर्निर्माण की लागत, हुए नुकसान और प्रशासनिक लापरवाही को ध्यान में रखते हुए 10 लाख रुपये का मुआवजा निर्धारित किया था। अदालत ने कहा कि इसमें से 2 लाख रुपये ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के लिए तहसीलदार की सैलरी में से काट लिए जाएं। अदालत ने कहा कि इस मामले में तहसीलदार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरू की जाएगी।
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