श्रीमाता वैष्णो देवी दर्शन के लिए भक्त देश के कोने-कोने से कटरा पहुंचते हैं। इनमें बुजुर्ग, दिव्यांग और शरीर से लाचार लोग भी होते हैं। भक्तों के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी शुरू की गई है। हालांकि इसको संचालित करने वाली कंपनियां भक्तों का कोई खास ख्याल नहीं रखती। श्राइन बोर्ड ने हेलीकॉप्टर सेवा कटरा से सांझी छत तक शुरू की थी, लेकिन हालात यह है कि लाचार लोगों को टिकट हासिल कर पाना काफी मुश्किल हो गया है। अब जवान या पहुंच वाले लोग ही हेलीकॉप्टर की टिकटें हासिल करने में कामयाब हो पाते है।

घोड़े, पालकी वालों के विरोध के बावजूद शुरू की गई सेवा

दरअसल श्राइन बोर्ड ने घोड़े, पालकी वालों के विरोध के दौरान यह वादा करके हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की थी कि बुजुर्गों, दिव्यांग या पीड़ित लोगों के लिए ही यह सुविधा मिलेगी, लेकिन आरोप है कि ऐसा हुआ नहीं। कटरा फुंहारे चौक के फोटो स्टेट दुकानदार कुणाल सिंह बताते है कि कुछ ऐसा ही हाल अब तारकोट से श्रीमाता वैष्णो देवी के लिए रोपवे बनाने के लिए हो गया है। यहां के लोग इसका भारी विरोध कर रहे है।

कंपनियां हर साल बढ़ा रही हैं किराया

श्राइन बोर्ड के तहत यहां ग्लोबल और हिमालयन कंपनी हेलीकॉप्टर सेवा देती है। कटरा के निहारिका में टिकट देने के काउंटर बने है। हेलीकॉप्टर की ज्यादातर टिकटें ऑनलाइन बुकिंग होती है। इनकी टिकटें रद्द होने पर करंट टिकट काउंटर से दिए जाते है। श्रद्धालुओं से इसके एवज में 2100 रुपए एक तरफ का लिया जाता है। हर साल ये कंपनियां अपना किराया बढ़ा देती है।

कटरा से सांझीछत तक करीबन नौ किलोमीटर दूरी ये हेलीकॉप्टर केवल पांच-सात मिनट में ही तय कर लेते है। यह सुन सुविधा तो बड़ी अच्छी लगती है। लेकिन टिकट हासिल करने से लेकर हेलीकॉप्टर में बैठने तक पांच-छह घंटे मशक्कत के साथ बर्बाद करना पड़ता है।

देवघर के अमित शर्मा बंगलोर में पेशे से इंजीनियर है। ये अपने बुजुर्ग माता-पिता को माता रानी का दर्शन कराने मंगलवार को कटरा पहुंचे है। माता-पिता के लिए हेलीकॉप्टर का टिकट लेने लाइन में बुधवार तड़के तीन बजे लगे थे और इनका 35वां नंबर था। काउंटर सुबह 6 बजे खुला। ये बताते है कि इनके आगे लोग रात एक बजे से लाइन में खड़े है।

अमित के पास दर्शन पर्ची, आधार कार्ड की कॉपी अपने माता-पिता की है। लेकिन लाइन लगवाने वाले कहते है कि जो हेलीकॉप्टर से यात्रा करेगा उनको खुद लाइन में लगना होगा। ऐसा निर्देश काउंटर के बाहर की दीवारों पर भी लिखा है। सूरत से आई सुशीला बेन कहती है कि यह क्या मतलब है। बुजुर्ग, दिव्यांग और शरीर से लाचार लोग रातभर जग कर लाइन में लगेंगे? और टिकट मिलना भी तय नहीं है। यह कैसा कानून है।

हालांकि ज्यादातर श्रद्धालु मातारानी के दर्शन के लिए घोड़े और पालकी से जाते है। लेकिन लाखों शरीर से जवान श्रद्धालु पैदल भी जाते है। घोड़े वाले एक घोड़े के एक तरफ के 1250 रुपए और पालकी वाले 3100 रुपए लेते है। लेकिन इनकी पर्ची श्राइन बोर्ड के ही काउंटर से काटी जाती है। ताकि श्रद्धालुओं से ये ज्यादा पैसे न वसूल लें। दर्शन कार्ड कटरा से ही बनवाना पड़ता है। और मातारानी के दर्शन के बाद लौटने में वाणगंगा में वापस करना होता है।