सतत व टिकाऊ विकास के रास्ते में ई कचरा एक बड़ा रोड़ा बन कर उभर रहा है। दुनिया भर में पैदा होने वाले ई-कचरे का चार फीसद फीसद हिस्सा भारत का। भारत में यह कचरा पैदा करने वाले शहरों में दिल्ली का स्थान दूसरा है। भारत की सिलिकान वैली के नाम से जाने जाने वाले शहर बंगलुरू का स्थान तीसरा है। यह स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा बन रहा है। पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिम चुके ई- कचरे के निबटान व प्रबंधन के लिए एक जिम्मेदार व्यवस्था अभी तक नहीं बनाई जा सकी है।
भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर एसोचैम-केपीएमजी की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में हर साल जितना ई-कचरा पैदा होता है उसका बड़ा हिस्सा फीसद भारत में पैदा होता है। ई-कचरा में कंप्यूटर उपकरणों का लगभग 70 फीसद हिस्सा होता है। कंप्यूटर उपकरणों के बाद घरों से पैदा होने वाले ई-कचरे में दूरसंचार उपकरणों -फोन (12 फीसद), बिजली के उपकरण (आठ फीसद)और चिकित्सा उपकरण (सात फीसद) भी शामिल है।
ई-कचरा पैदा करने वाले भारत के शहरों की इस सूची में मुंबई सबसे ऊपर है जहां हर साल1,20,000 टन ई- कचरे का उत्पादन होता है। उसके बाद दिल्लीका नंबर आता है, जहां 98,000 टन ई-कचरे का उत्पादन होता है जबकि तीसरे स्थान पर बेंगलुरू है जहां 92,000 टन ई-कचरे का उत्पादन होता है। लैंडफिल में पाए जाने वाले करीब 70 फीसद भारी धातु ई-कचरे में आता है।
टॉक्सिक्स लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा कि एक जिम्मेदार उपभोक्ता के रूप में, हम सभी को ई- कचरे के जिम्मेदार निपटान के लिए योगदान करना होगा और हमें मरम्मत के अधिकार जैसे वैसे अधिकारों की मांग करनी होगी जो अभी अस्तित्व में नहीं है। उन्होंने ई-कचरा निपटान की समस्या से निपटने के लिए नियमन की आवश्यकता पर भी जोर दिया ताकि टिकाऊ भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सके।
सिन्हा ने भारत में ई- कचरे की समस्याओं से निपटने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और आॅटोमोबाइल जैसे उद्योगों से कई उदाहरण दिए। उन्होंने उपभोक्ताओं की जिम्मेदारियों के साथ-साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जैसे विभिन्न प्राद्यिकरणों के नियमों व उनकी भूमिकाओं और पर्यावरण मंत्रालय के नियमों के बारे में भी विस्तार से बताया। इलेक्ट्रॉनिक कचरे को संक्षेप में ई कचरा कहा जाता है।
इस शब्द का उपयोग कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, रेडियो और रेफ्रिजरेटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए किया जाता है जो पुराने पड़ चुके हैं और जो उपयोग के लायक नहीं रह गए हैं।
ई-कचरे में पारा, सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक और बेरिलियम या ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं और अगर इन्हें अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद से पुर्नचक्रित नहीं किया गया तो यह पर्यावरण के लिए भी खतरनाक साबित होंगे हैं।
उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के विषय को लेकर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत काम करने वाली स्वैच्छिक संस्था – कंज्यूमर वॉयस ने विश्व उपभोक्ताा अधिकार दिवस के सिलसिले में ई-कचरे के समुचित प्रबंधन व निपटान की जिम्मेदार व्यवस्था कायम किए जाने की मांग की है। विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस हर साल 15 मार्च को मनाया जाता है। इस साल का थीम है-टिकाऊ उपभोक्ता। उपभोक्ता वॉयस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशिम सान्याल ने कहा कि दुनिया भर में स्थायित्व प्रमुख चिंता का विषय है जिसका समाधान किया जाना चाहिए।

