मेजर ध्यानचंद, यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। पूरी दुनिया उन्हें हॉकी के जादूगर के नाम से जानती है, जबकि भारत में वह पहले स्पोर्ट्स सुपरस्टार माने जाते हैं। आज (29 अगस्त 2018) उनकी 113वीं जयंती है। देश में उनके सम्मान में इस दिन राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। हॉकी की दुनिया में उनका जलवा इस कदर था कि लोग कई बार उनके प्रदर्शन पर आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार तो विदेश में उनकी हॉकी स्टिक तक तोड़ दी गई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीदरलैंड्स में कुछ खेल अधिकारियों ने उनकी हॉकी स्टिक तोड़ दी थी। कारण- वे यह जांचना चाहते थे कि कहीं ध्यानचंद की हॉकी स्टिक में चुंबक तो नहीं लगा है। वहीं, एक और रोचक किस्सा उनका नाम (निक नेम) चंद पड़ने से जुड़ा है। यह नाम उन्हें दोस्तों और साथी खिलाड़ियों से मिला था।
बात तब की है, जब चंद 16 बरस के थे। वह उन दिनों भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। खूब चाव के साथ हॉकी खेलते थे। दिन ही नहीं बल्कि रात-रात भर जाग कर गेंद और हॉकी स्टिक के साथ अभ्यास में जुटे रहते। बाकी खिलाड़ी ध्यानचंद की खेल के प्रति इस लगन और समर्पण को देख हैरान रह जाते थे।
यह भी कहा जाता है कि ध्यानचंद अभ्यास की शुरुआत तब करते थे, जब शाम को चांद निकल आता था। हॉकी के जादूगर को उसकी रोशनी की मदद से शॉट लगाने में मदद मिलती थी। चूंकि चंद्रमा को चंद्र भी कहते हैं, ऐसे में ध्यानचंद के कुछ साथी खिलाड़ियों ने उनका नाम चंद रख दिया था। वे जब भी ध्यानचंद से मिलते, तो उन्हें चंद कहकर पुकारते।

रिपोर्ट्स की मानें तो अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने तकरीबन 1000 गोल दागे थे। जर्मन शासक एडोल्फ हिटलर भी उनके खेल का मुरीद हो गया था। वह एक बार ध्यानचंद का मैच देखने बर्लिन पहुंचा था, जहां वह जर्मनी की टीम से लोहा ले रहे थे। भारतीय हॉकी स्टार ने तब कुछ ऐसा प्रदर्शन किया था कि हिटलर ने उनकी हॉकी स्टिक तक खरीदने की इच्छा जता दी थी।
ध्यानचंद को आज भारतीय हॉकी खिलाड़ी दद्दा के नाम से भी याद करते हैं। वे उनके सम्मान में उनकी प्रतिमाओं के खेल शुरू करने से पहले सिर झुकाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि साल 1936 के ओलंपिक खेलों में जर्मनी के खिलाफ मैच में ध्यानचंद ने स्पाइक्स वाले जूते और मोजे तक उतार दिए थे। सेकेंड हाफ में वह नंगे पैर ही खेले थे और उस दौरान उन्होंने तीन गोल दागे थे।