मतिभ्रम (डिमेंशिया) के बारे में दुनिया में ज्यादा समझ नहीं बनी है। एक शोध रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अगले तीन दशक में मतिभ्रम यानी डिमेंशिया के मामलों में तीन गुना तक बढ़ सकते है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति गंभीरता से सोचने, याद रखने और तर्क करने की क्षमता खो देते हैं, जिसकी वजह से दैनिक जीवन का चलना मुश्किल हो जाता है। वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने, संवाद और दैनिक कामों के लिए संघर्ष करते हैं। यह दुर्बल करने वाली बीमारी है और इसके बारे में समझ बहुत ज्यादा नहीं है।

विज्ञान पत्रिका ‘द लैंसेट जर्नल’ में छपे शोध रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन दशक में डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या तीन गुनी हो जाएगी। वर्ष 2050 तक डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या 5.7 करोड़ से बढ़कर 15.2 करोड़ से अधिक हो जाएगी। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव कर उसमें डिमेंशिया के विकास की संभावनाओं को प्रभावित किया जा सकता है।

वैज्ञानिक डिमेंशिया कोई खास बीमारी नहीं मानते। जर्मन रिसर्च सेंटर फार न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है। इस केंद्र में की डिमेंशिया विशेषज्ञ मरीना बोकार्डी के मुताबिक, इनमें से कुछ को बदला जा सकता है और अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव के जरिए कई कारकों को रोका जा सकता है। वे कहती हैं, यदि हम प्रतिवर्ती स्थितियों को ठीक करने का मौका चूक जाते हैं तो वे डिमेंशिया का कारण बन सकते हैं।

अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि डिमेंशिया की वजह बनने वाले तंत्रिका तंत्रीय (न्यूरोलाजिकल) क्षति का कारण क्या है। वैज्ञानिकों ने कई कारकों की पहचान की है, जिनसे डिमेंशिया होने की आशंका होती है। डिमेंशिया रोकथाम पर लैंसेट आयोग ने 12 मुख्य जोखिमों को सूचीबद्ध किया है- शिक्षा का निम्न स्तर, उच्च रक्तचाप, सुनने की क्षमता में कमी, धूम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक गतिविधि की कमी, मधुमेह और कम सामाजिक संपर्क। इसके अलावा अत्यधिक शराब का सेवन, मस्तिष्क की गहरी चोटें और वायु प्रदूषण। हाल के शोध ने यौन हमले और डिमेंशिया के बीच एक कड़ी को भी उजागर किया है।

बोकार्डी कहती हैं कि इन जोखिमों में से अधिकांश को व्यवहार में बदलाव के माध्यम से कम किया जा सकता है। यदि हम व्यक्तिगत रूप से या हमारी सरकारें इन जोखिम कारकों को कम करने के लिए कुछ ठोस काम करती हैं, तो हम डिमेंशिया के कम से कम 40 फीसद मामलों को रोक सकते हैं। 75 से अधिक उम्र के 469 लोगों पर शोध किया गया।

नियमित व्यायाम और स्वस्थ आहार जैसे, चीनी और वसा में कमी, धूम्रपान और अधिक शराब पीना रोक कर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अवसाद से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सकता है। अच्छी नींद लेना भी इससे बचाव में मदद करता है। साल 2021 में जारी एक शोध के मुताबिक, 50 और 60 की उम्र के लोग जो पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं, उनके जीवन में एक समय के बाद डिमेंशिया होने की संभावना अधिक होती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब तक मरीज अपने दैनिक जीवन पर बीमारी के प्रभाव को नोटिस करना शुरू करते हैं, मसलन स्मृति दोष और कंपकंपी जैसे लक्षणों का दिखना, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इन लक्षणों के दिखने का मतलब होता है कि बीमारी कई साल से काम कर रही है। मस्तिष्क परिवर्तन वाले रोगों जैसे अल्जाइमर से जुड़े प्रोटीन का निर्माण रोग के लक्षण दिखने से 15 से 20 साल पहले ही शुरू हो जाते हैं। डिमेंशिया के शुरुआती चरण भूलने की बीमारी से शुरू होते हैं, व्यक्ति समय का क्रम भूलने लगता है और परिचित जगहों को याद नहीं रख पाता। चिंता और अवसाद भी शुरुआती संकेत के रूप में काम कर सकते हैं, खासकर युवा रोगियों के लिए।