सोमवार से शुरू हो रहा दिल्ली विधानसभा का बजट सत्र कई मायनों में अलग होगा। यह सत्र कोरोना के साए में है। सनद रहे कि नई सरकार का पहला सत्र राजधानी में हुए दंगे की बली चढ़ा तो बजट सत्र को कोरोना संकट ले डूबा। यह महत्त्वपूर्ण सत्र पांच दिन की जगह एक दिन में ही निपटेगा। बजट सत्र में उपराज्यपाल का अभिभाषण नहीं होगा क्योकि प्रथम सत्र में ही इसकी औपचारिकतां पूरी कर ली गई हैं। इस बार प्रश्न काल भी नहीं होगा। यह पहला अवसर है जब प्रश्न करने की इजाजत विधायकों को नहीं होगी। इसे लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर है।
दिल्ली सरकार की नई पारी की दिशा और दशा उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया के 23 मार्च को विधानसभा में बजट पेश करने के साथ दिखेगी। सबकी निगाह चुनावी वायदों पर योजनाओं की घोषणाओं पर है। लेकिन सरकार की राह आसान नहीं है। इतना तय है कि जनता को रियायत की कोई नई सौगात नहीं मिलने जा रही है।
प्रश्न काल के मसले पर विपक्ष हुआ लामबंद
प्रश्न काल का प्रावधान नहीं किए जाने के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरने की लामबंदी कर ली है। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि नैतिकता और ईमानदारी का ढींढ़ोरा पीटने वाली सरकार को वे नैतिकता और ईमानदारी के मुद्दे पर घेरेंगे। उन्होंने कहा-बजट सत्र में प्रश्न काल का प्रावधान नहीं किए जाने को लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कदम है।
ये हैं चुनौतियां
’चुनाव पूर्व किए गए वायदों को पूरा करने का समय है। जिनमें वो दस योजनाएं भी शामिल हैं जिन्हें अरविंद केजरीवाल ने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया था। इनके लिए धन का आबंटन और कार्य योजना की घोषणा करनी है। साथ ही पहले से चली आ रही योजनाओं जिनमें राहत-अनुदान वाली योजनाएं (बिजली-पानी-बस मुफ्त) भी शामिल है, उन्हें आगे जारी रखने के लिए धन आबंटन की भी चुनौती है।
’खेल विश्वविद्यालय और कौशल व उद्यमिता विश्वविद्यालय, विश्वस्तरीय शहर बनाना, 24 घंटे लगातार बिजली, तारों के जंजाल का अंत, हर घर नल का जल और 24 घंटे शुद्ध पीने का पानी की सुविधा, बसों की कमी से निबटना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
