Delhi Water Crisis: ‘हम लोग जाते हैं, शौचालय से पानी ढो-ढो कर लाते हैं, कंधों पर लाते हैं, अब कर क्या सकते हैं, बच्चों के लिए पानी चाहिए, अपने लिए पानी चाहिए’, ‘हम तो सरकार का पांव पकड़ने को तैयार हैं, लेकिन हमारा पानी तो आ जाए, हमें हाथ जोड़ने में कोई शर्म नहीं है’, ‘अब भी पानी ऐसा आ रहा है कि पूछो मत, पीकर देखना, एक दिन रखना और फिर दूसरे दिन देखना’, ‘मोटर चलाते रहो, बिल चढ़ता जाएगा, एक बूंद पानी नहीं आएगा, रात भर जागते हैं गली वाले, नींद भी खराब होती है’।
साफ पानी को लेकर छिड़ी ‘जंग’
ये उन लोगों का दर्द है जो एक जंग में बुरी तरह फंस चुके हैं। ये लोग कोई सीमा पर नहीं रहते हैं, इनके घर कोई जम्मू-कश्मीर या पूर्वोत्तर में एलएसी के पास नहीं हैं, ये तो सारे वो लोग हैं जो देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं। दिल्ली में एक जंग छिड़ चुकी है जहां पानी के लिए लोगों को लड़ना पड़ रहा है। इन्हें नहीं फर्क पड़ता कि किसकी सरकार बन रही है, कौन सी पार्टी अभी सत्ता में, इन्हें बस अपने दो वक्त का पानी चाहिए। मांग बस इतनी है कि जो पानी मिले, वो साफ हो, उस पीने से उनके परिवार वाले बीमार ना पड़ जाए।
कई दिनों बाद आते टैंकर, महिलाएं करती सारी ‘मजदूरी’
लेकिन दिल्ली के आनंद पर्बत इलाके में लोगों को वो पानी नहीं मिल पा रहा है। कई दिनों बाद जल बोर्ड का टैंकर तो आया है, लेकिन पानी इतना गंदा कि उसका इस्तेमाल कहीं नहीं किया जा सकता। आनंद पर्बत में कई दिनों से पानी के टैंकर का इंतजार हो रहा था, महिलाएं रोज सुबह आंखों में उम्मीद भरे खड़ी रहती थीं। जैसे ही एक पानी का टैंकर आया, वहां पर अलग सी होड़ मच गई। कई घरों से लोग अपनी बाल्टी, ड्रम लेकर पहुंच गए। काम यहां पर खत्म नहीं हो रहा था, इन लोगों को खुद ही पाइप फिट करना था, खुद ही पानी ढोकर लेकर जाना था। ऐसे में महिलाएं ही आगे आईं और उन्होंने 30 मिनट के अंदर में सारे ड्रम भरे और अपने बच्चों को काम पर लगा दिया।
वो पानी भरते वक्त भी नाराजगी चेहरे पर साफ दिख रही थी, गुस्सा था कि इतने दिनों बाद टैंकर तो आया, लेकिन पानी एकदम गंदा। जनसत्ता से बात करते हुए आनंद पर्बत निवासी अनिल कुमार कहते हैं-
यहां पानी की बहुत परेशानी रहती है। खासकर मई-जून और अप्रैल में तो पूछिए मत दिक्कत कितनी ज्यादा होने लगती है। पानी यहां बहुत गंदा आता है, पीने के लिए तो हम पानी प्राइवेट लाते हैं, अलग से खरीदना पड़ता है। यहां तो टैंकर भी तय समय पर नहीं आता है, सच बता रहे हैं कई बार तो 15-15 दिनों तक कोई टैंकर नहीं आता, तब बस्ती में लोग 10-10 दिनों तक नहाते नहीं हैं।
अनिल कुमार, निवासी, आनंद पर्बत
जनसत्ता की मुहिम ‘पानी दो सरकार’ का पूरा वीडियो यहां देखें-
शिकायत करने पर मिलती पानी काटने की धमकी
अब यह दर्द सिर्फ अनिल कुमार का नहीं है, आनंद पर्बत दिल्ली का एक ऐसा इलाका बन चुका है जहां पर पानी की किल्लत कोई आज की नहीं है, यहां कई सालों से ऐसा ही हाल चल रहा है। इस इलाके में लोगों को ज्यादा परेशानी का सामना इसलिए भी करना पड़ता है क्योंकि इनकी जल बोर्ड के टैंकर पर निर्भरता ज्यादा है। इनके पास कोई दूसरा साधन नहीं है जहां से ये पानी ला सके। आनंद पर्बत की महिलाएं इस पानी की कमी से काफी त्रस्त हो चुकी हैं, बताती हैं कि शिकायत कई बार की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। उनका तो आरोप है कि कई बार अधिकारी ही फटकार लगाकर वापस भेज देते हैं।
इस बारे में अनुपमा बताती हैं कि हम लोग कई बार शौचलय से पानी लेकर आते हैं, वहां से पानी ढोकर लाना पड़ता है। पैसा हमारे पास इतना होता ही नहीं है, फिर भी खरीदकर पानी लाना पड़ रहा है। सारी समस्या यही है, कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अनुपमा की बात ध्यान से सुन रहीं एक दूसरी बुजुर्ग महिला भी इस बारे में हमे कुछ बताना चाहती थीं। इन अधिकारियों की पोल खोलते हुए उन्होंने कहा-
सर यहां पर शिकायत करने का कोई मौका नहीं मिलता है, इनको अगर शिकायत भी करो तो धमकी देते हैं। मुझे तो ड्राइवर तक ने कहा था कि तेरा कनेक्शन ही काट देंगे। ऐसे ही चलता रहता है, कोई मदद नहीं करता है। जो पानी यहां मिल भी रहा है, वो हम कभी पीते भी नहीं है, उस लायक ही नहीं है। हम तो बस इतना चाहते हैं कि ये सरकार हमे एक लाइन दे दे, हम उसी लाइन में खुश हैं।
आनंद पर्बत निवासी
अब इन लोगों से बात करते हुए पता चला कि अगर पानी का टैंकर कई दिनों तक नहीं आता है, आनंद पर्बत के लोगों को पास के एक शौचालय से पानी भरकर लाना पड़ता है। इसी बात की पड़ताल करने के लिए जनसत्ता की टीम आनंद पवर्त में ही थोड़ा आगे बढ़ी और स्थानीय लोगों की मदद से उस जगह तक पहुंची जहां वो शौचालय स्थित है। उस शौचालय की हालत काफी खराब थी, अंदर से बाथरूम टूटा हुआ था, कूड़ा-कचरा जगह-जगह भरा पड़ा था, मच्छरों का अंबार भी वहां देखने को मिला। लेकिन लोगों ने फिर बताया कि जरूरत पड़ने पर पानी यहां से ही लाना पड़ता है।
न्यू सीमापुरी में भगवान भरोसे हालात
अब जो दर्द, जो दिक्कतें दिल्ली के आनंद पर्बत इलाके में देखने को मिलीं, वैसी शिकायतें न्यू सीमापुरी इलाके को लेकर भी थीं। ऐसे में जनसत्ता का काफिला आनंद पर्बत से न्यू सीमापुरी के लिए निकल पड़ा। न्यू सीमापुरी भी एक बस्ती वाला इलाका है, वहां पर पक्की और कच्ची कॉलोनियां देखने को मिलती हैं। पक्की कॉलोनी का मतलब है कि पानी की सप्लाई सही रहेगी और कच्ची का मतलब है कि वहां सारी सुविधाएं भगवान भरोसे चल रही हैं।
ऐसी ही न्यू सीमापुरी की एक बस्ती है जहां पिछले तीन दिनों से कोई पानी का टैंकर नहीं आया है। घर के बाहर खाली ड्रम, बाल्टी और बर्तन पड़े हैं, इंतजार है कि कब टैंकर आए और पानी भरा जाए। जमीन पर ही परेशान बैठी एक बुजुर्ग महिला अपना दुखड़ा रोना शुरू कर देती है। उसे उम्मीद है कि कैमरे के सामने अगर दर्द बयां हो जाए तो शायद बड़े अधिकारी पानी भेज देंगे।
‘केजरीवाल के टाइम में आता था पानी’
वो बुजुर्ग महिला कहती है कि आज तीसरा दिन है जब टैंकर आ ही नहीं रहा है। टंकी से जो पानी लेकर आ रहे हैं तो पीने से पेट में दर्द हो रहा है। पीने के लिए पानी खरीदना पड़ेगा, लेकिन इतने पैसे भी यहां है नहीं। उस बुजुर्ग महिला के बगल में शख्स भी बैठा है जो सरकार की सुविधाओं से त्रस्त हो चुका है। वो अपना गुस्सा अब सीधे पीएम मोदी पर निकल रहा है। कैमरे को देखते ही बोलता है कि मोदी राज में कोई पानी-वानी नहीं मिल रहा है, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा और यहां पब्लिक परेशान है पानी के लिए।
वहां पास खड़ी एक और महिला इसी बात से नाराज है कि जब से सरकार बदली है, हालात और ज्यादा बिगड़ गए हैं। उसने दावा किया कि जब तक केजरीवाल की सरकार थी, पानी की सुविधा ठीक थी। जब से सरकार बदली है, हालात ज्यादा खराब हुए हैं।
अब लोगों की परेशानी जान जनसत्ता न्यू सीमापुरी में थोड़ा और अंदर तक गया तो एक और पतली गली दिखाई पड़ी। वो गली इतनी ज्यादा तंग थी कि वहां पानी की निकासी संभव ही नहीं, एक पतली से नाली भी बना रखी थी, लेकिन वो भी कूड़े की वजह से पूरी तरह जाम हो चुकी थी। उस गली में जैसे ही दाखिल हुए, कुछ परिवार सामने आए और पानी को लेकर अपनी आपबीती बताने लगे।
यहां पानी की बहुत दिक्कत है, आप पूछिए मत कितना गंदा पानी यहां मिल रहा है। कई बार तो ये लोग टैंकर ही नहीं भेजते हैं, खुद सोचिए हम कहां से पानी लाकर पिए। सरकार क्या चाहती है, हम लोग क्या अब गंदा पानी पीना शुरू कर दें। पानी तो ऐसी चीज है जो रोज मिलनी चाहिए, यहां तो टैंकर ही गायब रहता है।
अफसाना, निवासी, न्यू सीमापुरी
अब अफसाना जो बात बता रही हैं, वो कई और लोगों का भी दर्द है। यहां मिट्टी वाला पानी लोग पीने को मजबूर हैं, कभी-कबार 20 रुपये खर्च कर अलग से पानी खरीदते हैं। लोगों की शिकायत है कि पूरे दिन में सिर्फ दो बार नल में पानी की सप्लाई होती है। एक बार सुबह 7 से 8 और दूसरी बार रात में 7 से 8। अब अपना गुजारा करने के लिए लोगों को छोटे-बड़े हर बर्तन को पहले से ही भरकर चलना पड़ता है।
न्यू सीमापुरी में भी आनंद पर्बत की ही तरह पानी की समस्या काफी पुरानी है, यहां भी विकास उस रफ्तार से नहीं किया गया है। सिर्फ पक्की कॉलोनी में जो लोग इस समय रह रहे हैं, जिनके पास पैसे हैं, उन्होंने पानी का इंतजाम कर रखा है। लेकिन बाकी गरीब लोगों के लिए दो ही विकल्प दिख रहे हैं- या तो रेत वाला पानी का सेवन करें या फिर पैसा खर्च कर प्राइवेट बोतलें खरीदें। वैसे न्यू सीमापुरी में कुछ इलाके ऐसे हैं जहा मोटर लगाई गई है। लेकिन वहां भी पानी कम कलेश ज्यादा चल रहा है।
इस बारे में एक महिला ने हमे बताया कि एक समय पर कई सारे लोग मोटर चालू कर लेते हैं, इस वजह से किसी के भी नल में पानी नहीं आता। ये रोज का हो चुका है, लड़ाई भी होती है, कहासुनी हो जाती है। लेकिन इस वजह से जितना पानी मिलना होता है, वो मिल ही नहीं पाता। हैरानी की बात यह है कि न्यू सीमापुरी में इस समय जो हल्का पीला पानी आ रहा है, लोगों के लिए वो अच्छी क्वालिटी बन चुका है। उनका कहना है कि कई बार तो नाले जैसा पानी दिया जाता है, जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाएगी, पानी की क्वालिटी भी उतनी गिरेगी।
पानी बेचने वालों के लिए आपदा में अवसर
वैसे इस पूरी आपदा में एक व्यापार बहुत फल-फूल रहा है। पूरे इलाके में 20 रुपये में गली-गली पानी बेच रहे लोग खुश हैं। वे मानते हैं कि सभी को साफ पानी मिलना चाहिए, लेकिन वे ये भी कहते हैं कि क्योंकि जल बोर्ड की तरफ से साफ पानी नहीं मिल रहा, इस वजह से उनका काम चल पड़ा है। न्यू सीमापुरी में शायद ही कोई ऐसी गली होगी जहां दिन में दो बार 20 रुपये वाला पानी का कंटेनर खरीदा नहीं जा रहा होगा।
दिल्ली जल बोर्ड ने साधी चुप्पी
वैसे जनसत्ता को अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में जो सच्चाई दिखाई दी, इस बारे में जल बोर्ड के अधिकारियों से बात करने की कोशिश हुई थी। बकायदा सोनिया विहार वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट तक का रास्ता तय हुआ। लेकिन वहां जनसत्ता को अंदर जाने की इजाजत नहीं मिली, कहा गया कि पत्रकारों को परमीशन नहीं दी जा सकती। हम सिर्फ दिल्ली वालों को दिखाना चाहते थे कि उनका पानी कैसे प्यूरिफाई होता है, आखिर कैसे वो यहां से बाकी इलाकों में सप्लाई होता है। लेकिन किन कारणों से दिल्ली जल बोर्ड इन्सीं सवालों का जवाब देने से बचा, यह स्पष्ट नहीं।