दिल्ली में पूर्णबंदी की सबसे ज्यादा मार उन बेघरों पर पड़ी है जो दिहाड़ी मजदूर हैं और कहीं काम न करने वाले हैं। सामाजिक दूरी बना चुकी दिल्ली की आम जनता अपने घरों में एकांतवास में है। लेकिन जिनके घर ही नहीं वे कहां जाएं। अभी तक जो दिन में दिहाड़ी या भीख मांग कर पेट भरते और फुटपाथों पर, फ्लाईओवरों के नीचे, अपने रिक्शा और ठेले पर रात गुजर कर लिया करते थे। कोरोना संक्रमण से बचाव के चलते घोषित पूर्णबंदी ने उन्हें दोहरे मार की परेशानी में खड़ा कर दिया है। वे कामबंदी के चलते भूखमरी और जगह न होने के चलते संक्रमित होने के कगार पर जाने की आशंका से पीड़ित हैं।
मंगलवार को इन्हें हनुमान मंदिरों के सामने भी राहत नहीं मिली। इनमें से जिन्हें रैन बसेरों में जगह मिली है वे अपने को थोड़ा बेहतर स्थिति में बता रहें हैं। लेकिन उन्हें मलाल और भय है कि वे लोग भी समाजिक दूरी नहीं बना पा रहे हैं। क्योंकि एक बड़े हॉल के तौर पर उन्हें मुहैया कराए गए तंबू में एक साथ 50 से ज्यादा लोग रहा करते हैं। दिहाड़ी मजदूर और आश्रित गुरुद्वारों में चल रहे स्थायी लंगरों की ओर रुख कर रहे हैं। यहां पिछले कुछ दिनों में जबरदस्त भीड़ देखी गई।
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसकी पुष्टि की। लंगर में बढ़ती भीड़ का हवाला देते हुए कमेटी के प्रधान ने दावा किया कि ऐसी बढ़ोतरी पहले कभी नहीं दिखी थी। भीड़ ने उन्हें बताया कि वे दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग हैं। आजीविका संकट के चलते यहां आने लगे हैं। कमेटी के प्रधान ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से तत्काल सहायता की अपील जारी की है।
रैन बसेरों में खाना पहुंचाने की ली जिम्मेदारी
आश्रय अधिकार अभियान की निदेशक परमजीत कौर ने जनसत्ता से कहा- यह बड़ी चुनौती आ गई है। दिल्ली सरकार के फैसले के तहत रैन बसेरों में अनिवार्य खाने की व्यवस्था शुरू कर दी गई है। सात जगहों पर रसोई शुरू कर खाना बनाकर उसे रैन बसेरों तक पहुंचाया जा रहा है। दिहाड़ी और आश्रित और बेघर जन यहां खाना खा सकते हैं। जागरूकता और सफाई पर यहां सत्रों का आयोजन हो रहा है। सेनेटाइजर और मास्क बांटे गए हैं।
शिक्षाविद, बौद्धिकों और सामाजिक वैज्ञानिकों का खुला पत्र
हाशिए पर रह रहे लोगों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 50 से ज्यादा संगठनों से जुड़े शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक वैझानिक आगे आए हैं।
अर्थशास्त्री जयती घोष, आइआइएम बंगलूर के प्रोफेसर दीपक मलघान और हेमा स्वामीनाथन, आइआइटी दिल्ली के आदितेश्वर सेठ, ऐपवा की कविता कृष्णन, पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव, एनसीपासीआर की पूर्व प्रमुख शांथा सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ताओं में हर्ष मंदर, योगेंद्र यादव, निखिल डे आदि की ओर से हस्ताक्षरित सरकार के नाम जारी पत्र में कोरोना को गंभीर संकट बताते हुए सरकार के सुझाव दिया गया है कि जन वितरण प्रणाली के तहत अप्रैल से जून के लिए एक साथ मुफ्त अनाज, खाद्य तेल, दाल, नमक, मसाला, व साबुन भी दिया जाए। राज्य-वार सामुदायिक रसोई योजनाओं या मध्याह्न भोजन की रसोइयों से कम से कम मई के अंत तक दिन में दो बार पका भोजन सबके लिए उपलब्ध कराया जाए। सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के पेंशनधारियों को अप्रैल से जून तक की पेंशन राशि इसी महीने भेज दी जाए। बंदी के समय सब मनरेगा मजदूरों को उनकी पूरी मजदूरी मिले।
गुरुद्वारे में बनाया 20 बिस्तरों का अस्पताल
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने संभावित रोगियों के इलाज के लिए ढांचागत सुविधाओं वाला गुरुद्वारा मजनंू का टीला में 20 बिस्तरों के सराय (भवन) को आइसोलेशन वार्ड में बदलने की पेशकश की है। समिति अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने मुख्यमंत्री से यह पेशकश करते हुए कहा है कि बीस बिस्तरों की सराय में प्रत्येक कमरे में अलग से शौचालय, स्नानागार जुड़े हैं। यह पूरी तरह से सुरक्षित एवं चिकित्सकीय सुविधाएं प्रदान करने के लिए उपयुक्त है। इसमें सेवा करने वाले डॉक्टरों और मेडिकल कर्मचारियों के लिए गुरुद्वारा समिति अलग से आवासीय सुविधाएं प्रदान करेगी।

