दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में पिछले साल तीन यूपीएससी छात्रों की दर्दनाक मौत ने देशभर को झकझोर दिया था। भारी बारिश के बाद कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर हुई इन मौतों ने संस्थागत लापरवाही और सिस्टम की खामियों को उजागर कर दिया था। एक साल बाद, हालात कितने बदले? पढ़िए इंडियन एक्सप्रेस के साक्षी चंद, प्रज्ञनेश और निर्भय ठाकुर की कलम से जमीनी रिपोर्ट

दिल्ली अब कभी पहले जैसी नहीं लगेगी…

नेसी डाल्विन के लिए यह जुमला सिर्फ एक भावुक वाक्य नहीं, बल्कि एक कटु सच्चाई है। 26 वर्षीय पीएचडी स्कॉलर नेसी जब अपने भाई नेविन डाल्विन के साथ दिल्ली आई थीं, तब राजधानी की गलियां और मेट्रो स्टेशन सिर्फ रास्ते नहीं थे—वो यादों की गलियां थीं। नेसी कहती हैं, “उसने मुझे पहली बार मेट्रो कार्ड दिया था… मेट्रो की उलझनें उसी ने सुलझाई थीं। लेकिन अब जब मैं दिल्ली आती हूँ, तो लगता है जैसे वह हर जगह मौजूद है—मेट्रो में, कोचिंग सेंटर के पास…”

27 जुलाई 2024 की शाम, नेविन दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर स्थित ‘राउ आईएएस स्टडी सर्कल’ की बेसमेंट लाइब्रेरी में यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे। वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से विज़ुअल आर्ट्स में पीएचडी कर रहे थे। तभी अचानक हुई भारी बारिश और सड़कों पर जलजमाव ने त्रासदी का रूप ले लिया।

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एक फ़ोर्स गोरखा एसयूवी के गुजरते ही पानी की तेज़ लहर गेट तोड़कर इमारत में घुसी और देखते ही देखते बेसमेंट में पानी भर गया। नेविन समेत दो अन्य छात्राएं श्रेया यादव (उत्तर प्रदेश) और तान्या सोनी (तेलंगाना) बेसमेंट में फंस गए और डूब गए।

विरोध, जांच और गिरफ्तारी

घटना के बाद दिल्ली के कोचिंग हब में बवाल मच गया। छात्रों ने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किए, आरोप-प्रत्यारोप चले और सरकारी लापरवाही को लेकर आवाज़ें उठीं। इमारत मालिकों, कोचिंग सेंटर के सीईओ और एसयूवी चालक तक को गिरफ्तार किया गया। अगस्त 2024 में सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली।

एक साल बाद, बदला क्या?

द इंडियन एक्सप्रेस ने एक साल बाद फिर से पुराने राजिंदर नगर की उसी जगह का दौरा किया जहां यह दुर्घटना हुई थी। आज उस चार मंज़िला इमारत पर न कोचिंग सेंटर का नाम दिखता है, न कोई गतिविधि। खिड़कियों पर सफेद चादरें, दरवाज़े पर ताला और ‘किराये पर उपलब्ध’ का बैनर लटका है। अदालत ने पिछले साल ही आदेश दिया था कि यहां फिर से कोचिंग सेंटर नहीं खुल सकता।

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पास ही कई कोचिंग सेंटर आज भी सक्रिय हैं—श्रीराम आईएएस, इनसाइट्स आईएएस, शुभ्रा रंजन इंस्टीट्यूट। लेकिन अब छात्रों में सतर्कता है। मधुबनी से आए सचिन कहते हैं, “मैंने तय कर लिया था कि राउ में नहीं पढ़ूंगा। अब कोचिंग सेंटरों ने बेसमेंट की जगह ऊपरी मंजिलों का इस्तेमाल शुरू किया है।”

बेसमेंट का अवैध उपयोग और कार्रवाई

इस हादसे के बाद यह उजागर हुआ कि कई कोचिंग सेंटर और लाइब्रेरी एमसीडी के नियमों का उल्लंघन कर बेसमेंट में अवैध रूप से काम कर रहे थे। नियमों के अनुसार, बेसमेंट का उपयोग सिर्फ पार्किंग या स्टोरेज के लिए किया जा सकता है।

सीबीआई चार्जशीट के अनुसार, एमसीडी ने अगस्त 2024 से कार्रवाई शुरू की। 123 इकाइयों को नोटिस भेजे गए और 52 बेसमेंट को सील कर दिया गया। हालांकि सचिन का कहना है, “अब भी कई बेसमेंट में जिम या दूसरे व्यापारिक काम चल रहे हैं। मेरे पुराने लाइब्रेरी ने हादसे के बाद बेसमेंट छोड़ दिया।”

क्या आज भी बेसमेंट में व्यवसाय जारी हैं?

एमराल्ड जिम, जो हादसे की जगह से महज़ 300 मीटर दूर है, आज भी बेसमेंट में संचालित हो रहा है। जिम की प्रतिनिधि पूनम कहती हैं, “हमें एमसीडी से अनुमति मिल गई है। अग्नि सुरक्षा प्रमाणपत्र (FSC) के लिए भी आवेदन किया गया है।” एक अन्य संस्था, माइंड वेदा—जो मानसिक स्वास्थ्य सेवा है—भी बेसमेंट में कार्यरत है। हालांकि उनका कहना है कि वहाँ सिर्फ़ पत्राचार और स्टोरेज होता है। अग्नि सुरक्षा और एमसीडी से अनुमति की स्थिति पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।

लाइब्रेरी की ऊंची कीमत

हादसे के बाद अधिकांश लाइब्रेरी अब ऊपरी मंज़िलों पर शिफ्ट हो चुकी हैं। ‘बुक्स एंड ब्रेन’ लाइब्रेरी इसी हादसे के बाद शुरू हुई। इसके प्रतिनिधि पुनीत बताते हैं कि वह सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हैं और 3,000-3,500 रुपये मासिक शुल्क लेते हैं।

लेकिन यह बदलाव सस्ता नहीं रहा। विभु, जो विरोध में भी शामिल थे, कहते हैं, “पहले फीस 1,500-2,000 थी, अब 5,000-7,000 हो गई है—जो एक पीजी के किराए के बराबर है। कई छात्र अब इसे अफोर्ड नहीं कर पा रहे।”

सुरक्षा को लेकर चिंता

आईएएस हब के राहुल जैन बताते हैं कि एमसीडी ने इस साल कई निरीक्षण किए। हाल ही में उनकी इमारत में आग लग गई थी, लेकिन स्प्रिंकलर तुरंत चालू हो गए। “हमारे पास FSC है, लेकिन मकान मालिक ने निकासी द्वार पर छोटा गेट लगा दिया था जिससे देरी हुई। ऐसे मामलों में हम भी असहाय हैं,” वे कहते हैं।

जिम्मेदारी किसकी?

छह लोगों को गिरफ्तार किया गया: इमारत के सह-मालिक, राउ के सीईओ, कोचिंग सेंटर के समन्वयक और एसयूवी चालक। पुलिस ने मनुज कथूरिया को भी गिरफ्तार किया था, जिन्होंने कहा कि उन्हें फँसाया गया है। बाद में कोर्ट ने उन्हें जमानत दी। सीबीआई के आरोपपत्र में कहा गया कि मौतें जल निकासी की कमी, कमजोर गेट और एक बंद कमरे के कारण हुईं जहाँ से बाहर निकलना मुश्किल था। 27 अप्रैल 2025 को सीबीआई ने एमसीडी और DFS अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पूरक चार्जशीट दाखिल की।

कोचिंग सेंटर के सीईओ पर आरोप है कि उन्होंने FSC जल्दी पाने के लिए अधिकारियों के साथ साजिश रची। बचाव पक्ष का तर्क है कि यह घटना ‘अभूतपूर्व’ थी और सरकारी एजेंसियाँ ज़िम्मेदार थीं। एमसीडी और DFS दोनों ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार किया।

श्रद्धांजलि या औपचारिकता?

नेविन का परिवार आज भी न्याय की राह देख रहा है। नेसी कहती हैं, “राउ के सीईओ को इतनी जल्दी जमानत मिल गई, फिर सिर्फ़ अदालती तारीखें सुनते रहे। मेरे माता-पिता हिंदी नहीं समझते, और हर बार दिल्ली आना संभव नहीं।” दिल्ली सरकार ने चार पुस्तकालय और स्मारक बनाने का वादा किया था, लेकिन नेसी बताती हैं, “सरकार बदल गई कहकर टाल दिया गया। न स्मारक बना, न लाइब्रेरी।”

हालांकि, इस साल उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने ‘आरंभ’ नामक 24×7 लाइब्रेरी का उद्घाटन किया और पांच सामुदायिक केंद्रों को लाइब्रेरी में बदलने का निर्देश दिया गया है। नेविन के परिवार ने खुद पहल की है। उन्होंने नेविन के नाम पर दो किताबें प्रकाशित की हैं और इस रविवार अपने घर में एक स्मृति कक्ष और शोध केंद्र का उद्घाटन करेंगे। नेसी कहती हैं, “वह हमेशा अपने गाँव लौटना चाहता था और स्थानीय छात्रों के लिए कुछ करना चाहता था। हम उसका सपना पूरा कर रहे हैं।”