अमलेश राजू
दिल्ली पुलिस अपनी ही नीतियों पर ठीक तरीके से अमल कर ले तो राजधानी में बलात्कार, छेड़छाड़, स्कूली बच्चों के अपहरण जैसे अन्य सनसनीखेज मामलों में कमी लाई जा सकती है। सकड़ी गलियों, मुहल्लों, गंदे नहर, तालाब के पास पीकेटस लगाकर मोटरसाइकिल और कार के सर्टिफिकेट की जांच करने वाली पुलिस के पास उबर कैब के चालक के फर्जी प्रमाणपत्र कहां से आए, इसके जबाब नहीं हैं। अगर पुलिस राजधानी में चलने वाली कैब के चालकों से भी उसी प्रकार सख्ती से निबटती जिस प्रकार मोटरसाइकिल और सामान्य कार चालक से निबटती है तो इस प्रकार के बलात्कार कांड को रोका जा सकता था।
पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी ने सोमवार शाम को पत्रकारों को कहा कि दिल्ली पुलिस से उसका कोई आचरण सत्यापन प्रमाणपत्र नहीं हुआ है। वह फर्जी प्रमाणपत्र लेकर गाड़ी चला रहा था। उसने दिल्ली पुलिस के ‘लोगो’ को भी कलर से ब्लैक एंड वाइट में देकर जालसाजी किया। उसने फर्जी प्रमाण पत्र में अपना दिल्ली का पता भी फर्जी लिखाया। कैब कंपनियां किस प्रकार पुलिस और परिवहन विभाग की आंखों में धूल झोंककर ग्राहकों को बेवकूफ बनाती हैं, इसका उदाहरण भी इसी बलात्कार कांड ने सामने ला दिया है।
सूत्रों के मुताबिक कैब उपलब्ध वाली कंपनियां मोबाइल एप्प, वेबसाइट और काल सेंटर के माध्यम से अपना कारोबार करती हैं। इन्हें यात्रियों की सुरक्षा की चिंता ही नहीं अधिकांश के पास अपनी टैक्सी तक नहीं होती और वे निजी व्यवसायिक टैक्सी आॅपरेटरों को अपने साथ जोड़कर बिचौलिए की भूमिका निभाकर पुलिस की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब होती हैं। इनसे जुड़े टैक्सी आॅपरेटरों के पास स्मार्ट फोन होना जरूरी है। कोई भी यात्री कंपनी के एप पर जाकर टैक्सी की मांग करता है तो कंपनी उसके नजदीक के टैक्सी आॅपरेटर को इसकी जानकारी देती है, जिससे वह टैक्सी लेकर यात्री के पास पहुंचता है। इसके बदले मिलने वाले किराए का कुछ हिस्सा कंपनी कमीशन के तौर पर लेती है। इस तरह से कैब कंपनी और टैक्सी आॅपरेटर अपना व्यावसायिक हित तो साध रहे हैं लेकिन यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा का कोई ख्याल नहीं रख रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में इस तरह की दर्जनों कैब कंपनियां अपना कारोबार कर रही हैं लेकिन उन पर परिवहन विभाग या दिल्ली पुलिस का कोई लगाम नहीं है। इनके लिए परिवहन विभाग ने कोई दिशा-निर्देश नहीं बनाया है। ट्रैफिक पुलिस भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है। इन कैब कंपनियों के साथ जुड़े वाहनों में न तो यात्रियों की सुरक्षा के उपकरण लगे हुए होते हैं और न इनके चालक के चरित्र और उसके द्वारा दी गई जानकारी का सत्यापन कराया जाता है। युवती के साथ दुष्कर्म की घटना में प्रयोग की गई उबर से जुड़ी टैक्सी में भी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) नहीं लगा हुआ था। इसका चालक पहले भी बलात्कार के आरोप में जेल जा चुका है। इसके बावजूद कैब कंपनी उबर ने उसे अपने साथ जोड़ लिया। सरकार व कैब कंपनी उबर की लापरवाही का नतीजा एक युवती को चुकानी पड़ी है। इस घटना से गुस्साए दिल्ली के लोगों का कहना है कि अगर वसंतकुंज सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद महिला सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाते तो इस तरह की घटना नहीं घटती।
सूत्रों के मुताबिक सोमवार को इस मामले में जो सबसे चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है वह बलात्कार के आरोपी शिव कुमार यादव को अगस्त में जारी किए गए आचरण प्रमाण पत्र को फर्जी करार देना। पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी ने सोमवार शाम को पत्रकारों को कहा कि शिव कुमार को दिल्ली पुलिस ने कोई प्रमाणपत्र जारी नहीं किया था। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस इस मामले में फर्जीवाड़े का केस दर्ज करेगी। शिव कुमार का दिल्ली पुलिस की ओर से जारी एक आचरण प्रमाणपत्र सामने आया था। इस पर अतिरिक्त उपायुक्त दक्षिण-पूर्वी के हस्ताक्षर थे। 2011 में बलात्कार के वारदात में आरोपी होने के बावजूद शिव कुमार को पुलिस के हाथों इस प्रकार के प्रमाण पत्र जारी किए जाने से पुलिस पर सवाल उठने लगे थे। जांच के बाद दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने इसे फर्जी पाया।
सोमवार को महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह ने साफ तौर पर कहा कि हम इस मामले को पूरी गंभीरता के साथ देख रहे हैं और कैब चलाने वाली कंपनी उबर के सीइओ तथा आयोग में रेप क्राइसिस सेल के वकीलों को भी इस मामले में पूछताछ कर कानूनी पहलुओं पर विचार करने तथा आगे की कार्रवाई के लिए बुलाया है। इस साल 14 अप्रैल से 14 अक्तूबर के बीच राजधानी में बलात्कार के 974 मामले महिला आयोग के समक्ष आए हैं। इसके अलावा 1023 मामले बलात्कार के अलावा प्रताड़ना आदि के आए हैं। महिला आयोग की अध्यक्ष का कहना है कि यह दुखद है कि राजधानी में इस तरह की घटना में कमी नहीं आ रही है। आयोग में भी शिकायतों का मामला थम नहीं रहा है।