Express Investigation on Delhi Sewar Death Cases: देश की राजधानी दिल्ली में प्रवासी मजदूर, स्थाई और कॉन्ट्रैक्ट के तौर सीवेज की सफाई का काम करते हैं। इन मजदूरों की जरूरत तो सबको है लेकिन इनकी जान की न तो किसी को परवाह है, और न न्याय दिलाने की इच्छा। इसकी तस्दीक पिछले 15 साल में हुए हादसे करते हैं, जिस दौरान सीवेज की सफाई करने वाले 94 कर्मचारियों ने सीवेज की जहरीली गैस में दुम घुटने से अपनी जान गंवा दी।

94 कर्मचारियों की मौत के बावजूद लिखित दस्तावेजों में यह आंकड़ा केवल 75 का ही है। हैरानी की बात ये भी है कि 75 लोगों की जान गंवाने के मामलों में महज एक शख्स को दोषी ठहराकर उसे सजा सुनाई गई है, जिसके चलते सवाल यह भी है कि इन 75 या 94 मौतों का दोषी केवल एक वही सजायाफ्ता शख्स है।

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सीवर हादसे के 9 मामलों का ही हुआ निपटारा

इंडियन एक्सप्रेस की टीम ने एक RTI के तहत यह सारी जानकारी जुटाई है, जिसने लोगों को हैरान किया है। दस्तावेजों के मुताबिक, इन 75 लोगों की सीवर केस में मौतों में 38 मामलों को लेकर केस दर्ज किया गया है। इनमें से केवल 9 केसों का ही निपटारा किया गया है और यह 19 लोगों की जान लेने का मामला है।

आरोपियों का ही पता नहीं लगा पाई पुलिस

सीवर हादसे से जुड़े केसों में से केवल एक में ही दोष सिद्ध हुआ है और दो मामलों में तो लोगों को बरी भी किया गया है। इतना ही नहीं, सीवर हादसे से जुड़े दो दो केस हाई कोर्ट ने रद्द किए हैं। एक केस में समझौता हो गया है और एक में क्लोजर रिपोर्ट फाइल हो चुकी है। दिल्ली पुलिस दो केसों में आरोपियों का ही पता नहीं लगाया जा सका है। RTI रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि पुलिस ने अभी तक बरी किए गए आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती ही नहीं दी है।

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अलग-अलग वजहों से लंबित हैं मामले

RTI में मिले रिकॉर्ड्स बताती हैं कि शेष बचे कई मामले दिल्ली की विभिन्न अदालतों में लंबितक हैं, जिसके कई कारण हैं। किसी केस में अधिकारी नहीं आते हैं, किसी में स्टाफ की कमी सामने आती है। कम से कम तीन मामलों को लेकर पुलिस ने बताया है कि वे आरोपियों का पता लगाने में सक्षम नहीं है।

  • दो मामले ऐसे हैं, जिसमें जांच करने वालों को गवाह ही नहीं मिले हैं।
  • पांच मामलों में तो गवाह या जांच करने वाले अधिकारी ही कोर्ट में समय पर नहीं पहुंचे, जिसके चलते केस आगे ही नहीं बढ़ पा रहा है।
  • कुल 5 मामले ऐसे भी हैं कि जिनमें पुलिस ने अभी तक जांच पूरी नहीं की है और आरोप पत्र ही दायर नहीं किया गया है।
  • कुछ अन्य मामलों में यह देखा गया है कि वह स्टाफ की कमी के कारण सुनवाई पूरी नहीं हो सकी।
  • इतना ही नहीं, कई मामले तो इसलिए भी अटके, क्योंकि पुलिस अधिकारियों को सहयोग नहीं मिल रहा है।

सफाई कर्मचारियों के लिए हैं कुछ खास नियम

मैनुअल स्कैवेंजर के तौर पर रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 खतरनाक सफाई पर रोक लगाता है, लेकिन सीवर और सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। कानून में 44 प्रकार के सुरक्षात्मक गियर निर्दिष्ट किए गए हैं, जिनमें सांस मास्क, गैस मॉनिटर और पूरे शरीर को ढकने वाला वेडर सूट शामिल है।

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सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष एम वेंकटेशन कहते हैं कि जो लोग सीवर साफ़ करने के लिए लोगों को काम पर रखते हैं, वे बेशर्मी से छूट पा रहे हैं। यह बहुत चिंता का विषय हैं। बता दें कि NCSK एक सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का एक निकाय है जो सीवर में होने वाली मौतों और हाथ से मैला ढोने के मामलों से निपटता है।

हर एक मौत के लिए तय हो जिम्मेदारी

वेंकटेशन ने कहा कि पुलिस का कहना है कि वे इन मामलों में सबूत नहीं जुटा पा रहे हैं। मान लीजिए, घटनास्थल पर सिर्फ़ दो लोग मौजूद थे, सुपरवाइजर और सफ़ाई कर्मचारी – और सीवर में उतरने के बाद सफ़ाईकर्मी की मौत हो गई। कौन साबित करेगा कि सुपरवाइजर ने सफ़ाईकर्मी को सीवर में उतरने के लिए कहा था या नहीं?

उन्होंने कहा कि इसके लिए कानून में कुछ बदलाव की ज़रूरत है। सीवर में होने वाली मौतों के मामले में नगर निगम के कमिश्नर के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए, तभी नगर निकाय नियमों का सही से पालन करेंगे। जब हर मौत के लिए जवाबदेही होगी, तभी नियमों का पालन करने का संकेत मिलेगा।

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मंत्रायल ने बताया चिंता का विषय

इस मामले में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय इस मुद्दे पर लगातार राज्यों से संपर्क कर रहा है। अधिकारी ने कहा कि यह मंत्रालय के लिए चिंता का विषय है और उसने इन मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए संभावित हस्तक्षेप के लिए राज्यों को पत्र लिखा है।

दिल्ली पुलिस ने 16 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा भेजे गए ईमेल को स्वीकार किया और कहा कि इसे संबंधित अधिकारी को भेज दिया गया है। तब से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। नाम न बताने की शर्त पर दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कम सज़ा दर के पीछे कई कारण हैं। अधिकारी ने कहा कि सफ़ाई कर्मचारियों को सीवर में उतरने के लिए कहने के लिए कोई लिखित आदेश न होने के अलावा, मृतक के परिवार को मुआवज़ा देने के अनौपचारिक वादे भी किए गए हैं।

पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतक का मैनहोल लाइन की सफाई या सीवेज निपटान आदि से संबंधित किसी भी तरह का कोई अनुबंध नहीं था। सीवर लाइन की सफाई के लिए उसके पास कोई निर्देश नहीं थे। जिस मैनहोल में यह घटना हुई, वह पंप हाउस का हिस्सा नहीं था। न ही मृतक को वहां काम करने के लिए कोई लिखित आदेश जारी किया गया था। दिल्ली से जुड़ी अन्य खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।