दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की ‘वंशज’ की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने लाल किला पर दावा ठोका था। सुल्ताना बेगम ने वकील विवेक मोरे के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि वह बहादुर शाह जफर द्वितीय की पौत्र वधु हैं।

याचिका के जरिए सुल्ताना बेगम ने कहा था कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे उसकी संपत्ति से वंचित कर दिया था। साथ ही कहा था कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को देश-निकाला दे दिया था और इसके बाद लाल किला को भी अपने कब्जे में ले लिया था।

इस याचिका की सुनवाई कर रहीं जस्टिस रेखा पल्ली ने पूछा कि अदालत का रुख करने में बहादुर शाह जफर के वंशजों को 150 साल कैसे लग गए? जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा, ”मेरा इतिहास ज्ञान काफी कमजोर है, लेकिन आपका दावा है कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने आपके साथ अन्याय किया था। फिर भी 150 वर्षों से अधिक की देरी क्यों है? इतने साल आपने कहां लगा दिए?”

कोर्ट ने आगे टिप्पणी की करते हुए कहा कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि याचिकाकर्ता का अंतिम मुगल सम्राट से संबंध था। कोर्ट ने कहा, ”आपने उत्तराधिकार की वंशावली को दर्शाने के लिए कोई भी चार्ट पेश नहीं किया। सभी को ये पता है कि बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने देश से बाहर निकाल दिया था। लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने कोई याचिका नहीं डाली तो क्या आप ऐसा कर सकती हैं?”

याचिकाकर्ता के वकील ने बेगम को अनपढ़ महिला बताते हुए देरी को सही ठहराने की कोशिश की। हालांकि, हाई कोर्ट ने उस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि समय पर कदम क्यों नहीं उठाए गए, इसका कोई औचित्य नहीं है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘अत्यधिक देरी’ को आधार बनाते हुए लाल किले पर दावा ठोकने वाली इस याचिका को रद्द कर दिया। कोर्ट के इस आदेश के बाद, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने न्यायपालिका का आभार जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार से लाल किला नहीं लिया गया।