दिल्ली हाइकोर्ट ने पूछा है-यह निर्णय कौन करेगा कि दवा 45 साल वाला पाएगा या 85 साल का बूढ़ा अथवा 35 साल का आदमी? केंद्र को नीति बनाने का आदेश। कहा कि अगर डॉक्टर तय करेंगे तो भीड़ उनको लिंच कर देगी।

अदालत का यह सवाल केंद्र और राज्य सरकार दोनों से है कि ब्लैक फंगस की दवा का आवंटन करने में किस आधार पर प्राथमिकता तय करेंगे। अदालत ने दोनों सरकारों से इस संबंध में नीति बनाकर पेश करने को कहा है। जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि सरकारें दवा आवंटन की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकतीं। यह निर्णय राजनैतिक नेतृत्व को ही विशेषज्ञों के साथ सलाह-मशविरा करके लेना होगा। अदालत ने कहा कि फैसला करने का काम आप डॉक्टरों पर नहीं छोड़ सकते। उनको तो भीड़ लिंच करके मार डालेगी। अगर आपको दवा के संबंध में एक क्रूर निर्णय करना हो कि इसे 80 साल के बूढ़े को दिया जाए या दो बच्चों के बाप को, तो आप क्या करेंगे? निर्णय आपको ही लेना पड़ेगा कि दवाई 45 साल वाला पाएगा अथवा 85 साल वाला, या फिर 35 साल वाला।

कोर्ट दरअसल, जानना चाह रही थी कि ब्लैक फंगस की दवा के आवंटन के क्या नियम-कानून बनाए गए हैं क्योंकि यह दवा कम मात्रा में उपलब्ध है। सरकार ने कोर्ट को बताया था कि अस्पतालों को दवा का आवंटन यथानुपात (pro rata) किया जा रहा है। इस पर अदालत ने कहा कि इस प्रकार तो आप निर्णय करने का दायित्व डॉक्टरों पर छोड़ रहे हैं। यह अस्वीकार्य है। आप सरकार हैं। आपको इसके लिए नीति बनानी ही पड़ेगी। यह गोली तो आपको खानी ही पड़ेगी। इसी वक्त कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील कीर्तिमान सिंह से कहा कि वे सरकार से एम्फोटेरिसिन बी दवा के वितरण की नीति बनवा कर कोर्ट में पेश करें।

इस निर्देश के बाद जस्टिस जसमीत सिंह ने केंद्र के वकील से मौखिक रूप से कहा आपको प्राधमिकता सूची बनानी होगी। समस्या सबके सामने है। एक नीति तो बनानी ही होगी। आप सब किसी को वितरित नहीं कर सकते। दवा की किल्लत है। यह बात हर कोई मानता है।

इससे एक हफ्ते पहले खंडपीठ ने केंद्र से लिफोसोमल एम्फोटेरिसिन बी दवा के आयात पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी और पूछा था कि क्या आयात की जा रही दवा भारत में उपलब्ध है। कोर्ट ने यह भी सवाल किया था कि सरकार को ल 2 लाख 30 हजार की संख्या का कैसे पता चला।