यमुना की त्रासदी पर सरकार की नाकामी भारी पड़ती दिखी। इसने सरकार के तमाम दावे धो दिए। पहाड़ों और हथिनीकुंड बैराज का पानी तो देर सबेर गुरुवार को दिल्ली पहुंचना ही था। यह बात सरकार भी जानती थी। आमतौर पर 24 से 28 घंटे में हथिनीकुंड बैराज का पानी दिल्ली में दाखिल हो जाता है। मंगलवार को वहां से छोड़े गए पानी का हवाला देकर बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र से पानी छोड़ने की गति को कम करने की अपील की थी।

लेकिन बोट क्लब मोनेस्ट्री मार्केट, नीली छतरी टेंपल, यमुना बाजार, नीम करोली गौशाला, विश्वकर्मा गढ़ी, मांडू मजनू का टीला, बदरपुर खादर वाले इलाकों के लिए पुख्ता इंतजाम करने से चूक गए। हालाकि ऐंसा नहीं है कि राहत शिविर नहीं लगे। लेकिन जो लगे वो राहत नही दे सके।

यमुना बाजार से जीटी रोड तक पानी ही पानी हो गया। यहां बुधवार रात को लगाए गए सरकारी शिविरो को लगने के छह घंटे बाद ही लोगों को आनन फानन में छोड़ कर भागना पड़ा। इतना ही नहीं जमना बाजार स्थित दांडी पार्क में दिल्ली डुसीब के 5 आश्रय गृह आनन फानन में खाली करवाए गए। जबकि यह काम आपदा से पहले किया जा सकता था।

इतना ही नहीं न्यू उस्मानपुर में को रात को अचानक आई बाढ़ के चलते एक युवक को पेड़ पर चढकर जान बचानी पड़ी। करीब 12 घंटे के बाद पुलिस की मदद से उसे उतारा जा सका।यमुना त्रासदी से रू-ब-रू हो रहे पीडितों के बीच दो चर्चा आम दिखी।

ज्यादातर बुजुर्ग 1978 में आई बाढ़ को याद करते रहे। दूसरा यह कि यदि गुरुवार रात या शुक्रवार को बारिश हुई तो यहां के कनाटप्लेस और नई पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों में पानी भरेगा, जिसे निकलने में हफ्ता लगेगा क्योंकि दिल्ली की यमुना जहां आम तौर पर सीवर का पानी चला जाता है वह पहले से लबाबत है।