Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार पूरे जोर पर है। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) से लेकर बीजेपी और कांग्रेस, सभी चुनाव में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। पिछले दस साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (Aam Aadami Party) का इस बार कड़ा सियासी टेस्ट हो रहा है, क्योंकि वह सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है, जबकि सीएम के तौर पर काबिज आप नेता आतिशी (CM Atishi) का भी बड़ा टेस्ट हो रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी (Congress)इस बार पूरी ताकत लगा रही है। पार्टी ने आप के दिग्गज नेताओं के खिलाफ अपने मजबूत नेताओं को उतारा है। आप संयोजक और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के खिलाफ नई दिल्ली सीट से पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उतारा है, तो दूसरी ओर सीएम आतिशी का कालकाजी सीट से अलका लांबा और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की जंगपुरा सीट से फिरहाद सूरी हैं।
बीजेपी ने भी बनाया है AAP के खिलाफ चक्रव्यूह
कुछ इसी तरह बीजेपी ने भी इस बार आम आदमी पार्टी को सियासी तौर पर कठिन चुनौती दी है। एक तरफ जहां नई दिल्ली विधानसभा सीट (New Delhi Assembly Seat) से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे और पूर्व सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा (Parvesh Verma) को उतारा है, तो वहीं सीएम आतिशी के खिलाफ कालकाजी सीट से पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को टिकट दिया है। इतना ही नहीं, जंगपुरा सीट से मनीष सिसोदिया के खिलाफ पार्टी ने तरविंदर सिंह मारवाह को टिकट दिया है।
सीएम आतिशी को तोड़ना है सियासी मिथक
दिल्ली में आम आदमी पार्टी 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। कई अहम नेताओं की सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशियों ने जमकर प्रचार कर पार्टी की टेंशन बढ़ाई है। वहीं एमसीडी (MCD) में भी आम आदमी पार्टी की सत्ता होने के चलते पार्टी पर सभी तरह की खामियों का ठीकरा फोड़ा जा रहा है। इसके चलते ही राजनीतिक विश्लेषक इसे आम आदमी पार्टी के लिए अब तक का सबसे कठिन चुनाव मान रहे हैं।
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वहीं अरविंद केजरीवाल द्वारा जेल से बाहर आने के बाद सीएम पद से इस्तीफा देने के चलते सीएम बनी आतिशी को लेकर भले ही केजरीवाल कह चुके हों कि वे अस्थायी सीएम हैं लेकिन फिर भी आतिशी के सामने एक बड़ी चुनौती सियासी मिथक या परंपरा को तोड़ने की भी है। इसकी वजह यह है कि 1990 के दशक से लेकर 2013 तक जिस भी सत्ताधारी पार्टी ने सत्ता गंवाई है, उस दौरान सीएम की कुर्सी एक महिला नेता के पास ही थी।
2013 में शीला दीक्षित ने गंवाई थी सत्ता
जनलोकपाल और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी ने जब दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा तो उस वक्त दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, और कुर्सी पर तीन बार की सीएम शीला दीक्षित (Shila Dixit) काबिज थीं। चुनाव नतीजों में कांग्रेस पार्टी 8 सीटों पर सिमटते हुए सत्ता से बाहर हो गई थीं। शीला दीक्षित खुद नई दिल्ली विधानसभा सीट पर आप नेता अरविंद केजरीवाल से हारे थे।
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1998 में सुषमा स्वराज के शासन में बुरी तरह हारी थी BJP
दिल्ली विधानसभा के गठन के बाद पहले चुनाव में जीतने वाली बीजेपी जब 1998 के दूसरे चुनाव में बुरी तरह हारी थी, तो उस वक्त दिल्ली की सीएम के तौर पर उस वक्त की युवा नेत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) थीं। वह केवल 52 दिन ही दिल्ली की सीएम रही थीं। बीजेपी ने अपने 5 साल के कार्यकाल में तीन सीएम दिए थे। इसमें पहले दो साल मदन लाल खुराना (Madan Lal Khurana) रहे थे, जिसके बाद सीएम की कुर्सी साहिब सिंह वर्मा (Sahib Singh Verma) ने संभाली थी। इसके बाद पार्टी ने यह कुर्सी सुषमा स्वराज को दे दी थी।
ऐसे में अब जब आम आदमी पार्टी दस साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है, तो उस दौरान अस्थायी सीएम के तौर आतिशी हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या वह दिल्ली में सत्ताधारी सीएम के चुनाव हारने की परंपरा को तोड़ पाती हैं या नहीं। दिल्ली चुनाव से जुड़ी अन्य सभी खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।