मनोज मिश्र
दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा में हो रही देरी से लगता है कि अब चुनाव फरवरी के बाद ही होंगे। बिना चुनाव की तारीख तय हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रामलीला मैदान में 10 जनवरी को सभा करने की तैयारी से भी लगता है कि भाजपा अपने समर्थन की थाह पाने के बाद ही चुनाव करवाना चाहेगी।
चुनाव केंद्रीय बजट के बाद करवाने के लिए और 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के समारोह में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुख्य अतिथि के रूप में आने के चलते दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था को भी कारण बनाया जा सकता है। भाजपा के नेता दावा चाहे जो करें लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) की लोकप्रियता से वे चुनाव के भावी नतीजों का सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं। इसी दुविधा के चलते लोकसभा चुनाव के बाद हर तरह से जोड़-तोड़ करने के बावजूद छह महीने तक भाजपा दिल्ली में सरकार बनाने का फैसला नहीं कर पाई और आखिर में अदालती दबाव और उप चुनाव के नतीजों की अनिश्चितता के चलते विधानसभा भंग करना तय किया गया। दिल्ली विधानसभा भंग करने के केंद्रीय मंत्रिमंडल की चार नवंबर की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही विधानसभा की तीन सीटों के लिए 25 नवंबर को होने वाले उप चुनाव की अधिसूचना भी वापस हो गई।
चुनाव करवाने का काम चुनाव आयोग का है। चुनाव आयोग आम तौर से सरकार की सलाह से ही चुनाव की तारीखों का एलान करती है। दिल्ली देश की राजधानी है। गणतंत्र दिवस के चलते वैसे ही पूरी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखनी पड़ती है। इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि हैं। दूसरे विभिन्न आतंकी संगठनों की धमकी मिलने की बात बताई जा रही है। अगर चुनाव फरवरी के पहले हफ्ते में हुए तो नामांकन आदि भरने से लेकर चुनाव प्रचार तक का मुख्य समय वही होगा। 23 दिसंबर तक तो चुनाव आयोग झारखंड और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में लगा हुआ था। दिसंबर के बाद चुनाव होते ही नए साल में 18 साल से ज्यादा के नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जाना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया चल रही है और पांच जनवरी को नई सूची का प्रकाशन होना है।
वैसे तो परंपरा रही है कि किसी विधानसभा या लोकसभा चुनाव की घोषणा कम से कम डेढ़ महीने पहले की जाती है, 27 दिन का समय तो चुनाव प्रक्रिया में ही लगता है। यानी किसी भी तरह से फरवरी के पहले हफ्ते से पहले चुनाव होना तो संभव ही नहीं था। अरविंद केजरीवाल के 14 फरवरी को इस्तीफा देने के बाद 17 फरवरी को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ,जिसकी अवधि 16 फरवरी तक है। उसे दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है लेकिन उसकी मंजूरी दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों से लेना अनिवार्य है। विधान के जानकार और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव पीएन मिश्र का कहना है कि राष्ट्रपति शासन बढ़ाने की प्रक्रिया एक दिन में पूरी होती है। वैसे भी चुनाव दो महीने से ज्यादा बढ़ाए जाने की कोई संभावना नहीं है और अगर जरूरी भी हुआ तो चुनाव के लिए समय बढ़ाने का कोई दल विरोध नहीं करेगा।
आप ने फिर से अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया है। वे पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में लग गए हैं। वे अपनी पार्टी की लोकप्रियता का बढ़-चढ़ कर दावा करते हैं और वे यह अंदेशा भी जता चुके हैं कि चुनाव टाले जाएंगे। कांग्रेस और आप दोनों ही भाजपा से सीधा मुकाबला होने का दावा कर रहे हैं, वहीं भाजपा भी आप के बजाए कांग्रेस को मुख्य मुकाबले में होने का दावा कर रही है। कांग्रेस और भाजपा बिना मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। कांग्रेस तो शुरू से ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं करती है ओर विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों के दम पर चुनाव लड़ती है। बिना चुनाव घोषित हुए कांग्रेस ने अपने दो दर्जन उम्मीदवारों के टिकट को हरी झंडी दे दी है और वे पूरी ताकत से चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह ने कहा कि उम्मीदवारों की घोषणा चुनाव की घोषणा के बाद ही की जाएगी लेकिन काफी उम्मीदवार अपना काम कर रहे हैं। उनका कहना था कि चुनाव प्रचार के शुरू में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की बड़ी सभा की जाएगी। दिन और जगह अभी तय किया जाना है। बताते हैं कि पहले जनवरी के पहले ही हफ्ते में रामलीला मैदान में ही कांग्रेस की सभा होनी थी लेकिन प्रधानमंत्री की 10 जनवरी(प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय के मुताबिक सभा दस या 11 को होगी) की सभा के चलते कांग्रेस ने अपनी सभा की तारीख घोषित करना टाल दिया है।
भाजपा को पिछले साल विधानसभा चुनाव में करीब 34 फीसद वोट और 32 सीटें मिली थीं। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के प्रयास से जो 13 फीसद ज्यादा वोट मिले। भाजपा नेता कहने के लिए तो यही कह रहे हैं कि मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने से उसमें से का बड़ा हिस्सा उसे मिलेगा। इसीलिए भाजपा सीधे मोदी के नाम पर ही दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ना चाह रही है। जबकि असली कारण थोक में भाजपा नेताओं की दावेदारी भी माना जा रहा है जिसमें ज्यादातर लो-प्रोफाइल माने जाते हैं। भाजपा ने अपने देश भर के सांसदों से संसद के सत्र के दौरान जो सभाएं कराईं, उसका असर उल्टा हुआ। भाजपा की चाहे वह नुक्कड़ सभा थी लेकिन लोग कम जुटे। इसके ठीक उलट आप की सभा में लगातार भीड़ जुट रही है।
भाजपा आला कमान को लगता है कि कहीं दिल्ली न जीत पाए तो मोदी के खिलाफ माहौल बनने लगेगा। अब तक राष्ट्रपति शासन में जो काम हुए वह दिल्ली के लोगों की उम्मीदों के अनुरूप नहीं हैं। इसलिए माना जा रहा है कि केंद्रीय बजट में दिल्ली के लिए कई लोक लुभावन घोषणा करके चुनाव करवाने से भाजपा को ज्यादा लाभ हो सकता है। वैसे यह भी खतरा है कि चुनाव में ज्यादा देरी करने से कहीं भाजपा के खिलाफ वही सबसे बड़ा मुद्दा न बन जाए। भाजपा की इसी दुविधा से चुनाव कुछ आगे टलने के आसार दिख रहे हैं।
