तीन चीतों की मौत और अन्य छह जानवरों में गंभीर संक्रमण को चोट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जो संभवतः उनके रेडियो कॉलर के नीचे किलनी के पनपने के कारण हुई हैं। 11 जुलाई से 2 अगस्त के बीच तेजस, सूरज और धात्री की मौत हो गई, वहीं पावक, आशा, धीरा, पवन, गौरव और शौर्य के कॉलर उतार दिये गए हैं।
पारिस्थितिक शोध में जानवरों की गतिविधियों और व्यवहार पर नज़र रखने के लिए संरक्षण प्रयासों में सहायता के लिए रेडियो-कॉलरिंग एक महत्वपूर्ण उपकरण है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों की सुरक्षा और भलाई के लिए इसका सावधानीपूर्वक उपयोग होना चाहिए।
अब बाड़ों के अंदर की जा रही है सभी चीतों की देखभाल
लापता हुए एक चीते को छोड़कर बचे हुए सभी चीतों की देखभाल अब बाड़ों के अंदर की जा रही है। आगे के नुकसान को छोड़कर, बारिश रुकने और कूनो में तापमान कम होने पर उन्हें कॉलर लगाकर फिर से जंगल में छोड़े जाने की संभावना है। हालांकि अगले मानसून में ऐसे संकट से बचने पर अभी तक कोई सोचा नहीं गया है। परियोजना टीम को उम्मीद है कि जानवरों और उनके शारीरिक गतिविधियां जल्द ही नई परिस्थितियों और क्षेत्र के साथ तालमेल बिठा लेंगे।
इंडियन एक्सप्रेस ने प्रमुख जीवविज्ञानियों से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि विभिन्न प्रजातियों को रेडियो-कॉलर करने के उनके अनुभव क्या हैं और कुनो में कॉलर के साथ क्या गलत हुआ।
विशेषज्ञों का कहना है कि कॉलर के पास इसी तरह की चोट और संक्रमण के कारण कई चीतों की मौत चिंताजनक है। लंबे समय तक ध्यान नहीं दिए जाने से उनमें गंभीर संक्रमण हो गया और उनकी मौत हो गई। इससे पता चलता है कि देखभाल अनुभवी लोग नहीं कर रहे थे। गर्दन पर किसी भी तरह की जलन और चोट के कारण मक्खियों को दूर रखने के लिए जानवर लगातार अपना सिर हिलाता है। कॉलर जब ठीक से फिट नहीं किया जाता है तो उसकी नियमित गति से रगड़ और चोट लग सकती है।
गर्दन की चौड़ाई एक बराबर नहीं होती है। यह शरीर के करीब चौड़ी और सिर के करीब संकरी होती है। चोट तब लग सकती है जब कॉलर को ठुड्डी के बिल्कुल करीब न रखा जाए।