इराक के मोसुल में मारे गए 38 भारतीयों का डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया है। इराक की राजधानी बगदाद में स्थित भारतीय दूतावास की ओर से ये प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं। डेथ सर्टिफिकेट में दी गई जानकारी से इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के आतंकियों की बर्बरता सामने आई है। इसके मुताबिक, आतंकियों ने भारतीयों को सीधे सिर में गोली मार दी थी। इस दस्तावेज में आईएस आतंकियों के शिकार बने अधिकांश पीड़ितों की उम्र 26 से 35 वर्ष के बीच थी। ‘रिपब्लिक टीवी’ के अनुसार, मोसुल में मारे गए एक भारतीय की जन्मतिथि 1983 है, जबकि दूसरे व्यक्ति का 1992। मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण सिर में बुलेट का जख्म बताया गया है। सर्टिफिकेट में वादी अगब (निनवाह, इराक) को हत्या के स्थान के तौर पर चिह्नित किया गया है। इसके अलावा मौत से पहले तक वे मोसुल में रह रहे थे। मृत्यु प्रमाणपत्र पर सहायक वाणिज्य दूतावास अधिकारी उमेश यादव का हस्ताक्षर है। प्रमाणपत्र में शामिल सभी सचूनाएं इराक के स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले फोरेंसिक विभाग की ओर से जारी प्रमाणपत्र पर आधारित हैं। इसके अलावा इराक सरकार की ओर से भी आतंकियों द्वारा मारे गए भारतीयों के बारे में जानकारी दी गई थी।

विदेश राज्यमंत्री वीके. सिंह सोमवार (2 अप्रैल) को 38 भारतीयों के शवों को लेकर बगदाद से सीधे अमृतसर पहुंचे थे। शवों को विशेष विमान से लाया गया था। बता दें कि चार साल पहले सभी भारतीय मोसुल में एक प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहे थे। उस वक्त आईएस ने मोसुल के बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा था। आतंकियों ने सभी भारतीय को परियोजना स्थल से ही अगवा कर लिया था। भारत सरकार को शुरुआत में अगवा भारतीय नागरिकों के बारे में पता नहीं चल सका था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पिछले महीने संसद में सभी 38 भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि की थी। उन्होंने दोनों सदन को बताया था कि आतंकियों ने भारतीय नागरिकों की हत्या कर उनके शवों को सुदूर पहाड़ी इलाके में दफना दिया था, जिसके कारण उनकी तलाश करने में काफी परेशानी हुई थी। विदेश मंत्री ने बताया था कि शक्तिशाली रडार और स्थानीय लोगों से पूछताछ के बाद भारतीयों के शवों के बारे में जानकारी मिल सकी थी। हालांकि, उस वक्त भी यह स्पष्ट तौर पर नहीं बताया गया था कि भारतीय नागरिकों की हत्या खास मोसुल या पास के क्षेत्र में की गई थी।