Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक परिवार को बहुत बड़ी राहत दी है। औरंगाबाद बेंच ने एक आदमी और उसके परिवार के खिलाफ अपनी मृतक पत्नी के साथ कथित क्रूरता के लिए 20 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मृत पत्नी को ताना मारना, कालीन पर सोने के लिए मजबूर करना और उसे टीवी देखने की इजाजत नहीं देना कोई अत्याचार नहीं हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने फैसले में कोर्ट ने उस व्यक्ति, उसके माता-पिता और उसके भाई को बरी कर दिया। उन्हें निचली अदालत ने क्रूरता और आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 498ए और 306 के तहत दोषी ठहराया था।

क्या था पूरा मामला

अब इस पूरे मामले की बात करें तो महिला के परिवार ने दावा किया था कि महिला के ससुरालवालों ने उसे मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार बनाया। आरोप थे कि खाने को लेकर उसे ताना मारना, उसको टीवी देखने से रोकना, उसे पड़ोसियों से मिलने या अकेले मंदिर जाने से मना करना, उसे कालीन पर सोने के लिए मजबूर करना और उसे खुद ही कचरा फेंकने के लिए भी कहा गया था। मृतका के परिवार के सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि उसे आधी रात को पानी लाने के लिए मजबूर किया गया। महिला के परिवार का कहना था इनकी कारणों की वजह से उसने सुसाइड कर लिया।

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कोर्ट ने क्या फैसला दिया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने आदेश को रद्द करते हुए कहा कि मृतक पत्नी को टीवी देखने की इजाजत न देने, उसे अकेले मंदिर नहीं जाने देना और उसे कालीन पर सुलाना, ये सभी आरोप आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता के अपराध नहीं माने जाएंगे। क्योंकि इनमें से कोई भी कृत्य गंभीर नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि ये आरोप प्रकृति शारीरिक और मानसिक क्रूरता नहीं बल्कि आरोपी के घर के घरेलू मामलों से संबंधित थे। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों से पता चला है कि वरणगांव में जहां पर मृतका और उसके ससुराल वाले रहते थे, पानी की आपूर्ति आमतौर पर आधी रात के आसपास होती थी और सभी घरों में रात 1.30 बजे पानी इकट्ठा करने की प्रथा थी। इसके बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को जमानत दे दी।