दामोदर विनायक सावरकर को प्रखर हिन्दूवादी और राष्ट्रवादी स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाना जाता है लेकिन इतिहासकारों में हमेशा उन्हें लेकर विवाद रहा है। देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ने के दौरान सावरकर ने भी अंडमान निकोबार में कालेपानी की सज भुगती थी। सावरकर बाल्य काल से ही गरम मिजाज के थे। इसी वजह से गरम दल के नेता लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल की अदा के वो कायल थे। 1905 से 1918 के बीच इन नेताओं ने अपने गरम रुख की वजह से अलग पहचान बनाई थी। ये लोग स्वदेशी के पक्षधर थे।
इनसे प्रभावित होकर सावरकर ने 1901 ईस्वी में 18 साल की उम्र में ही, जब वो मैट्रिक में पढ़ रहे थे, ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की मौत पर आयोजित शोक सभा का विरोध किया था और कहा था कि हम शत्रु देशी की महारानी की मौत पर शोक क्यों मनाएं? नासिक से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद सावरकर ने 1902 में पूना के फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लिया। वहां उनके विचारों में और परिपक्वता आई। गरम दल के नेताओं के प्रभाव में उन्होंने 22 साल की उम्र में साल 1905 में दशहरा के मौके पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। इस घटना के बाद उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनकी प्रशंसा की थी।
बाद में सावरकर पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। वहां उनकी दोस्ती मदनलाल धींगरा से हुई। वह भी गरम मिजाज के थे। 1909 में धींगरा ने वायसराय लॉर्ड कर्जन पर गोली चलाई थी लेकिन वो बच गया। इसके बाद धींगरा ने अंग्रेज अफसर सर वायली को गोली मार दी थी। धींगरा के साथ सावरकर भी गिरफ्तार कर लिए गए थे। जुलाई 1910 में जब उन्हें पानी के जहाज से कड़े पहरा में लंदन से भारत लाया जा रहा था, तब सावरकर ने सुरक्षाकर्मियों को चकमा देते हुए जहाज से समंदर में छलांग लगा दी थी। अंग्रेजों ने उन पर गोलियां बरसाईं पर सावरकर तैरते हुए फ्रांस के एक तट पर जा पहुंचे थे।
वैभव पुरंडारे ने अपनी किताब ‘द ट्रू स्टोरी ऑफ द फादर ऑफ हिन्दुत्व’ में लिखा है कि कालेपानी की सजा के लिए जब सावरकर अंडमान के सेलुलर जेल में पहुंचे थे, तब उनके दिलो-दिमाग में हिन्दू-मुस्लिम एकता के सूत्र थे। इनके अलावा सामाजिक सद्भाव के कई विचार उनके दिमाग में थे। इसीलिए 1857 की क्रांति में योगदान देने वाले मुस्लिम नायकों अवध के वाजिद अली और रोहिलखंड के विद्रोदी खान बहादुर खान की बहुत तारीफ की थी। लेकिन जब वो जेल से बाहर आए तब वो हिंदुत्व या हिंदू राष्ट्रवाद नाम की कल्पना से प्रेरित थे। उनका राष्ट्रवाद हिन्दुत्व के एजेंडे पर जा टिका था।
बता दें कि हाल के दिनों में वीर सावरकर को लेकर राजनीतिक पार्टियां आमने-सामने हैं। शिव सेना चीफ उद्धव ठाकरे ने कहा है कि अगर सावरकर इस देश के प्रधामंत्री होते तो पाकिस्तान का जन्म नहीं होता। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे ने वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की है। इसके जवाब में कांग्रेस ने पुराना ऐतिहासिक दस्तावेज शेयर कर निशाना साधा है और कहा है कि यह नहीं भूलना चाहिए कि सावरकर ने ही अंग्रेजों को माफीनामे की चिट्ठी लिखी थी।