‘C फॉर कन्स्टीट्यूशन, D फॉर डेमोक्रेसी’। 53 साल के हरि ओम जिंदल कुछ इसी अंदाज में ‘झुग्गी क्लासरूम’ के जरिए गरीब बच्चों के लोकतंत्र की बुनियादी शिक्षा दे रहे हैं। पेशे से वकील हरि ओम जिंदल का सपना रहा है कि वो झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को मुफ्त शिक्षा दें और आज वो अपने इस सपने को जी रहे हैं। लुधियाना में यह क्लास गरीब बच्चों के बीच काफी मशहूर है और आज ‘झुग्गी क्लासरूम’ में करीब 150 छात्र पढ़ते हैं।
मछली बाजार के पास स्थित झुग्गियों में रहने वाली 14 साल की अनीता कपड़े सील कर औऱ दैनिक मजदूरी कर अपने 2 बच्चों का पालन-पोषण करती है। 5 साल पहले अनीता का सपना था कि वो पढ़ाई-लिखाई करे और आज इस क्लासरूम में आकर उसके सपनों को नई उड़ान मिली है।
पिछले ही साल अनीता ने 3 कक्षा की परीक्षा पास की है। अनीता ने National Institute of Open Schooling (NIOS) के तहत यह परीक्षा पास की और अब वो पांचवीं कक्षा की परीक्षा में शामिल होने वाली है। अनीता अपनी तीन साल की बेटी और पांच साल के बेटे के साथ क्लास में पढ़ने जाती है। इसके अलावा वो हरि ओम जिंदल के घऱ जाकर कम्प्यूटर स्किल्स और टाइपिंग की पढ़ाई भी करती है।
अनीता ने ‘The Indian Express’ से बातचीत करते हुए अनीता ने कहा कि ‘मेरे पिता झुग्गी के पास मछली बेचा करते हैं। मैं हमेशा से पढ़ाई-लिखाई करना चाहती थी लेकिन मैं कभी नहीं कर सकी। अब मैं कम से कम 10वीं क्लास तक पढ़ना चाहती हूं…मैं कम्प्यूटर स्किल्स को बढ़ा रही हूं और अगर मैं एक ऑफिस में नौकरी हासिल कर लेती हूं तो मेरा सपना सच हो जाएगा।’
हरि ओम जिंदल ने कहा कि उन्होंने मार्च 2014 से इस दिशा में प्रयास शुरू किया था। ‘सबसे पहले मैं झुग्गी में रहने वाले बच्चों के लिए लड्डू और चॉकलेट लेकर उन्हें देता था। करीब छह महीने के बाद मैं उन्हें कहानियां सुनाता औऱ अखबार भी पढ़कर सुनाता था। दिसंबर के महीने में मैंने उन्हें बुनियादी शिक्षा देनी शुरू की और हर रोज करीब आधे घंटे उन्हें पढ़ाता था। उस वक्त उसमें से सिर्फ 4 बच्चे ही पढ़ने आते थे।’ आज उनके स्कूल के 6 लड़कों ने कक्षा 3 की परीक्षा पास कर ली है और इन्हें A तथा B ग्रेड भी मिला है। मार्च 2020 में हरि ओम जिंदल के स्कूल में पढ़ने वाले 11 बच्चे ओपेन स्कूल की परीक्षा में शामिल होंगे।
जिंदल, 2 बच्चों के पिता हैं और उनकी पत्नी लॉजिस्टिक बिजनेस में हैं। जिंदल अपनी आधी कमाई झुग्गी में रहने वाले बच्चों की किताबों और अन्य दूसरी जरुरी सामानों पर खर्च करते हैं। हालांकि इस काम में उनके कुछ मित्र भी उनका सहयोग करते हैं। 3 स्कूलों को चलाने में हर महीने करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च होते हैं। जिंदल का कहना है कि ‘मुझे ऐसा लगता है कि इन बच्चों को अपने अधिकार और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित होना जरुरी है। इसलिए मैंने ‘ज्ञान के साथ सशक्तिकरण’ नाम से एक किताब लिखी है। इसमें मैंने अल्फाबेट को पढ़ाने और बताने के लिए एक अनूठा तरीका इजाद किया है। इसके तहत मैंने इन बच्चों के बीच अल्फाबेट को समझाने के लिए – A for Administration, B for Ballot Box, C for Constitution, D for Democracy, E for Election, F for Freedom और G for Government का तरीका अपनाया है।
एक खास बात यह भी है कि इस स्कूल में ना सिर्फ बच्चों को लोकतंत्र की बुनियादी शिक्षा दी जा रही है बल्कि छात्रों के निजी विकास पर भी ध्यान दी जा रहा है। इसके तहत उन्हें हर रोज स्नान करने, स्कूल में ग्रे स्कर्ट, सफेद शर्ट और लाल स्वेटर पहनने के लिए भी कहा जाता है। स्कूल में सभी त्योहार भी मनाए जाते हैं। स्कूल में पढ़ने वाली 15 साल की सीता सशक्तिकरण, प्रजातंत्र और चुनाव जैसे गंभीर विषय पर बातचीत करती है और कहती हैं कि वो बड़ा होकर अपने गुरू हरि ओम जिंदल की तरह ही कामयाब वकील बनना चाहती हैं। 16 साल की दुर्गा का कहना है कि ‘अमीर लोग हमारे और हमारे परिजनों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं। लेकिन ‘शिक्षा ने हमें समानता के अधिकार के बारे में बताया है।’