कोलकाता हाई कोर्ट के जज सीएस कर्णन कभी सीएस करुणानिधि हुआ करते थे। उनके एक बहुत करीबी की मानें तो उन्होंने किशोरावस्था में अपना नाम इसलिए बदल लिया क्योंकि उन्हें लगा कि एमजी रामचंद्रन के कट्टर राजनीतिक दुश्मन का हमनाम होना उनके लिए करियर के लिए अच्छा नहीं साबित होगा। वो दौर तमिलनाडु की राजनीति में एमजीआर के उभार का था। मंगलवार (नौ मई) को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को छह महीने की जेल की सजा सुनाई। मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस कर्णन के साथ काम कर चुके जजों की मानें तो विवादों से उनका चोली-दामन का साथ रहा है।
मद्रास हाई कोर्ट में जज बनाए जाने से पहले उनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे। मद्रास हाई कोर्ट से रिटायर हो चुके जस्टिस डी हरिपरंतमन कहते हैं, “”मैंने उससे पहले कभी उनका नाम भी नहीं सुना था। हमें बताया गया कि वो क्रिमिनल लायर थे।” जिस कोलेजियम ने जस्टिस कर्णन का चयन किया था उसमें मद्रास हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एके गांगुली, जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय और जस्टिस पीके मिश्रा सदस्य थे। जस्टिस मिश्रा ने पिछले साल इस बात पर अफसोस जताया कि जिस कोलेजियम ने कर्णन को जज नियुक्त किया था वो भी उसके सदस्य थे। जस्टिस मिश्रा ने मंगलवार को भी अपना पुराना बयान दोहराते हुए बताया कि जस्टिस गांगुली ने कर्णन का नाम प्रस्तावित किया था।
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि जस्टिस कर्णन को बहुत पहले ही महाभियोग से हटा दिया जाना चाहिए था। जस्टिस गांगुली ने जस्टिस कर्णन पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे नहीं याद है कि उनका नाम किसने प्रस्तावित किया था। मैं उनकी गिरफ्तारी पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।” चयन प्रक्रिया से जुड़े रहे एक जज ने बताया कि कर्णन भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णनन के भाई केजी भाष्करन के करीबी थे। जस्टिस बालाकृष्णन ने कर्णन के जज बनने में किसी भी तरह की भूमिका होने से इनकार करते हुए कर्णन और अपने स्वर्गीय भाई के बीच किसी तरह के संबंध के प्रति अनभिज्ञता जाहिर की।
जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा, “मैं कर्णन से उनके जज बनने के बाद मिला था। मेरे सीजीआई रहने के दौरान विभिन्न हाई कोर्ट में करीब 300 जजों की नियुक्ति हुई थी। सीजीआई के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती जिससे वो हाई कोर्ट में चुने जाने वाले सभी जजों की पृष्ठभूमि की जांच करवा सके।” सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर समेत सात जजों को पांच साल की जेल की सजा सुनाने वाले कर्णन पहले भी मद्रास हाई कोर्ट के कई मुख्य न्यायाधीशों के संग विवाद में पड़ चुके हैं। जस्टिस संजय के कौल, जस्टिस एमवाई इकबाल उनमें से कुछ नाम हैं। 2012 में जस्टिस इकबाल की जगह मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने वाले जस्टिस आरके अग्रवाल ने भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सदाशिवम को लिखित शिकायत में कहा था कि जस्टिस कर्णन उनके कमरे में जबरदस्ती घुसकर उन पर तमिल में चीखे-चिल्लाए थे। जस्टिस अग्रवाल ने जस्टिस कर्णन के बरताव को न्यायाधीश की मर्यादा के प्रतिकूल बताते हुए उनके ट्रांसफर की मांग की थी।
2015 में जस्टिस कर्णन ने मद्रास हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस कौल के खिलाफ अदालत की अवमानना का आदेश देने की धमकी दी थी। जस्टिस अग्रवाल के कार्यकाल में कर्णन सहायक जजों की नियुक्ति से जुड़ी एक पीआईएल में चालू अदालत में घुसकर वकील की तरह जिरह करने लगे और कथित तौर पर जज के ऊपर चीखे-चिल्लाए थे। उस घटना के बाद जस्टिस अग्रवाल ने जस्टिस कर्णन के बरताव पर विचार-विमर्श के लिए फुल कोर्ट मीटिंग बुलायी थी।
जस्टिस कर्णन ने एक और मौके पर अपने चैंबर में प्रेस वार्ता करके साथी जजों पर अपमानित और शर्मसार किए जाने का आरोप लगाया था। जस्टिस कर्णन ने अपने साथी जजों को “संकुचित मानसिकता” वाले बताते हुए कहा कि वो “दलितों पर प्रभुत्व” जमाना चाहते हैं। रिटायर हो चुके जज के चंद्रू के अनुसार उचित व्यवस्था के अभाव में भारत के कई मुख्य न्यायाधीश जस्टिस कर्णन पर कार्रवाई नहीं कर सके। 2016 में कलकत्ता हाई कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने पर जस्टिस कर्णन ने अपनी ही अदालत में अपने ही ट्रांसफर के खिलाफ आदेश दे दिया। जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर “स्थगन आदेश” दे दिया।
एक जज कहते हैं कि जस्टिस कर्णन की ऐसी छवि है कि “हाल ही में जब उनके पिता का निधन हुआ तो हम लोग डरके मारे उनके घर श्रद्धांजलि देने नहीं गए।” जस्टिस कर्णन के करीबी डब्ल्यू पीटर रमेश कुमार कहते हैं कि कर्णन को सजा सुनाने से एक संवैधानिक संकट पैदा हो गया है और राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के उनके आरोपों की अनदेखी कर रहे हैं। फरवरी 2016 में मद्रास हाई कोर्ट ने कुमार को अदालत में जबरदस्ती घुसने और हंगामा मचाने का दोषी पाते हुए छह महीने साधारण कारावास, वकालत का पंजीकरण रद्द करने के साथ ही दो हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी।