वाराणसी में ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। इस कॉरिडोर के तहत ही मंदिर के आसपास के मकान हटाए जा चुके हैं। इन मकानों के हटने के बाद खुली जमीन में काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक बगल में खड़ी विशाल ज्ञानवापी मस्जिद अब ज्यादा साफ और बड़ी दिखने लगी है। आठ अप्रैल को वाराणसी की अदालत ने एक याचिका पर आदेश दिया है कि इसका पुरातात्विक सर्वे कराया जाए।
यह फैसला सुर्खियों में है। अदालत का आदेश यह पता लगाने का है कि क्या मस्जिद के नीचे पहले कुछ था भी या नहीं। वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआइ) को ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया। सर्वे के बाद एएसआइ को अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपनी है। इसके लिए पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई है। कोर्ट ने ये आदेश उस याचिका पर दिया, जिसमें कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद जिस जगह बनी है वह मंदिर है। इसलिए हिंदू पक्ष का कब्जा बहाल किया जाए।
पांच सदस्यों की कमेटी में अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोग शामिल होंगे। पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ और अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी का पर्यवेक्षक बनाया जाएगा। कमेटी जांच करेगी कि क्या मौजूदा ढांचा किसी इमारत को तोड़कर बना है या फिर इमारत में कुछ जोड़कर। कमेटी इस बात का भी पता लगाएगी कि क्या विवादित स्थल पर मस्जिद के निर्माण से पहले वहां कोई हिंदू समुदाय से जुड़ा मंदिर कभी मौजूद था। कमेटी इस पूरे कार्य की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराएगी।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस पूरे सर्वे का खर्च उठाने का आदेश दिया है। ज्ञानवापी विवाद को लेकर हिंदू पक्ष का कहना है कि विवादित ढांचे के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तुड़वा दिया। दावे में कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया है जो कि अब ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।
काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मामले में 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल हुआ था। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं।
इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर विश्वेश्वरा मंदिर को ध्वस्त कर ये मस्जिद बनाई गई थी। स्थानीय लोग मस्जिद की पिछली दीवार में नजर आ रहे खंडहरों को दिखाते हैं जो मंदिर के ढांचे जैसे नजर आते हैं। मस्जिद और मौजूदा विश्वनाथ मंदिर के बीच एक दस फीट का गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा है।
याचिकाकर्ता हरिहर पांडे स्कंद पुराण का हवाला देते हुए कहते हैं कि जब धरती पर गंगा नहीं थी, मानव पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसता था तब भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था और यहीं पार्वती को ज्ञान दिया था। मस्जिद की इंतेजामिया समिति भी लंबी लड़ाई के लिए अपनी कमर कस रही है।
सैयद एम यासीन, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद, वाराणसी के संयुक्त सचिव हैं। ये समिति वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के अलावा दूसरी मस्जिदों का प्रबंधन भी करती है। यासीन के पास दस्तावेजों का पुलिंदा है। वे अंग्रेजों के दौर के भूलेख निकालकर दिखाते हैं, जिनमें ज्ञानवापी परिसर मस्जिद के तौर पर दर्ज है।
अमेरिका की मशहूर इतिहासकार डियाना एल ऐक की किताब ‘बनारस द सिटी आॅफ लाइट्स’ के मुताबिक भी 1828 में इस कुएं के इर्द-गिर्द एक आर्केड बनाया गया था। श्रद्धालु इसी कुएं का जल हाथों में लेकर प्रतिज्ञा लेते थे और जब घूमकर थक जाते तो इसी का शीतल पानी पीकर प्यास बुझाते।
डियाना एल भी इस बात का जिक्र करती हैं कि इस कुएं का जिक्र स्कंद पुराण में है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर और धरोहर प्रबंधन केंद्र के समन्वयक राकेश पांडे बताते हैं कि ज्ञानवापी काशी का केंद्रीय स्थल है, जहां प्राचीन काल से शिव मंदिर है। वहां वापी स्थान है, जिसे ज्ञान का तालाब भी कह सकते हैं। कभी वहां बड़ा तालाब रहा होगा।