कोरोना संक्रमण के कारण किए गए देशव्यापी बंदी से प्रभावित व्यापारों की शीर्ष सूची में आइसक्रीम कारोबार भी शुमार हो गया है। मार्च के अंतिम सप्ताह में हुई पूर्णबंदी की वजह से धड़ाम हुआ आइसक्रीम व्यापार बंदी खोले जाने के मौजूदा तीसरे चरण में भी तक उठ ही नहीं पाया।
आइसक्रीम कारोबार में 70 फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है। नामी कंपनियों की आइसक्रीम की बिक्री भी 25 फीसद ही रह गई है। कोरोना से बचाव में ठंडी चीजों से परहेज की बात ने जहां आइसक्रीम को गर्मी में भी आमजन से दूर कर दिया वहीं, होटल, बैंक्वेट, रेस्तरां और तमाम तरह की पार्टियां और आयोजन पर प्रतिबंध ने इस धंधे को भारी नुकसान पहुंचाया।
चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआइ) और आइसक्रीम के निर्माता और विक्रेता की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़े चौकाने वाले हैं। पूरे देश में सालाना 20 हजार करोड़ रुपए और केवल दिल्ली में सालाना 250 करोड़ रुपए का आइसक्रीम का व्यापार है। दिल्ली में आइसक्रीम के लगभग 200 कारखाने हैं। जिनको काफी घाटा पहुंचा है। ज्यादातर कारखाने बंद पड़े हैं। कामगारों का पलायन हो चुका है। 50 कारखाने बंद होने के कगार पर हंै।
इस उद्योग में लगे लोगों ने सरकार से राहत पैकेज की मांग की है। सीटीआइ के चेयरमैन बृजेश गोयल ने कहा- सरकार को मानवीय आधार पर कदम उठाना चाहिए। आइसक्रीम उद्योग को ऐसी परेशानी पहले कभी नहीं आई थी। आइसक्रीम उद्योग के प्रवक्ता फिरोज नकवी ने बताया कि कोरोना की शुरुआत से अफवाह फैली की ठंडी चीजें खाने से कोरोना की बीमारी बढ़ती है और इसी कारण आइसक्रीम का बाजार 90 फीसद तक गिर गया। ऑनलाइन डिलीवरी भी बंद हो गई।
बकौल फिरोज नकवी, आइसक्रीम निर्माताओं को प्रति महीने दो-दो लाख से ज्यादा का बिजली बिल देना है। तीन महीने तक बंदी रही। कामबंद और मीटर चालू रखना पड़ा। सरकार से उनकी अपील है कि वह बंदी के दौरान वाला बिजली बिल माफ करे। नकवी ने कहा- केंद्र सरकार ने जो भी राहत पैकेज की घोषणा अभी तक की है उसका एक रुपया भी आइसक्रीम उद्योग के व्यापारियों तक नहीं पहुंच पाया है। दिल्ली के आइसक्रीम निर्माता पुनीत मनचंदा ने बताया कि पूरे साल में 100 दिन ही अप्रैल से जून तक आइसक्रीम का समय होता है। बारिश शुरू होते ही आइसक्रीम की मांग कम हो जाती है। सब कुछ बंद है। आइसक्रीम निर्माता विजय मल्होत्रा ने बताया कि हम लोग किसानों से दूध लेते हैं तो इसी कारण आइसक्रीम को आवश्यक सेवाओं में होना चाहिए। पूर्णबंदी से जो माल फैक्ट्री और थोक दुकानों में भरा हुआ था उसे फेंकना पड़ा।

