कोविड-19 के समय जब ज्यादातर लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने घरों के अंदर थे, तब केरल के शहर कोच्चि में मुरुगन एस अपनी आठ लोगों की टीम के साथ बेघर, बेसहारा और असहाय लोगों सड़क से उठाकर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाने के काम में जुटे थे। बेघर, बेसहारा और असहाय लोगों में अधिकांश दूसरे राज्यों से थे, जो काम के सिलसिले में केरल आए थे।
मुरुगन ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘इनमें से लगभग 90 फीसदी लोग दूसरे राज्यों से हैं। वे 20 से 40 साल की उम्र के बीच के हैं। उनमें से कई शराब और ड्रग्स के आदी थे, जिससे उनका जीवन बर्बाद हो गया था। वे अपने लक्ष्य से भटक चुके थे और मानसिक बीमारियों का शिकार थे। हमने ऐसे लोगों को उठाया। उन्हें नहलाया, साफ-सुधरे कपड़े पहनाए और फिर उन्हें मानसिक स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल ले गए। हमने हर व्यक्ति को रेस्क्यू करने से पहले पुलिस से मंजूरी ली।’
मुरुगन भले ही अब लोगों की सेवा करने के लायक हैं, लेकिन उनके बचपन की कहानी सुन हर किसी की भी आंख में आंसू आ जाएंगे। उनके पिता शराबी थे। मां मजदूरी करती थी, लेकिन कमाई इतनी नहीं थी कि दोनों वक्त का पेट भरे और सिर पर छत मिल पाए। यही वजह थी कि मुरुगन का बचपन कोच्चि की सड़कों पर बीता। वह मांगकर खाना खाते थे। किशोरावस्था से पहले मुरुगन ने लोगों की जूठन खाकर अपने पेट की आग बुझाई।
एक दिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और अनाथालय भेज दिया। मुरुगन को वहां मदर टेरेसा और श्री नारायण गुरु जैसे समाज सुधारकों के बारे में जानने को मौका मिला। मुरुगन ने बताया, ‘उनके आदर्शों और शिक्षाओं ने मेरे दिमाग में जड़ें जमा लीं, लेकिन मुझे पता नहीं था कि इन पर काम कैसे किया जाता है।’
अगले सात साल के लिए उन्होंने चाइल्डलाइन (Childline) के साथ वॉलंटियर के तौर पर काम किया। उन्होंने अपनी बचत से ऑटो-रिक्शा खरीदा। इसके अलावा अनाथ बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों, विशेष रूप से मानसिक रूप से कमजोर लोगों को ट्रैक किया। उन्हें सड़क से उठाकर उचित जगह पहुंचाया।
मुरुगन ने 2007 में सामाजिक कार्यकर्ता बनने के अपने लक्ष्य के तहत एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) ‘थेरुवरम’ का गठन किया। मलयालम में थेरुवरम का अर्थ होता है ‘सड़क।’ इस समय ‘थेरुवरम’ में मुरुगन समेत 9 लोग हैं। इनमें से 6 सहायक और दो ड्राइवर हैं। एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) ने उनके संगठन को दो एम्बुलेंस भी दान की हैं। लॉकडाउन के दौरान इन एम्बुलेंस ने उनके काम में काफी मदद की।
एम्बुलेंस में पीछे की तरफ शॉवर और छत पर पानी की टंकी लगी है। इससे बेसहारा लोगों को सुरक्षित घर पहुंचाने से पहले उन्हें नहलाने आदि में काफी मदद मिलती थी। लॉकडाउन के दौरान उनकी टीम ने केरल के 6 जिलों में सड़क पर पड़े 617 से ज्यादा बेघर और बेसहारा लोगों को बचाया।
मुरुगन ने बताया, ‘उनमें से बहुत से लोगों ने महीनों से नहाया नहीं था। वे अस्वस्थ थे। ऐसे समय में उनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा था। कोल्लम में, हमें एक ऐसा व्यक्ति मिला, जिसके हाथों पर बड़ी और भारी लोहे की जंजीरें थीं। उन्हें खोलने के लिए हमें दमकल विभाग की मदद लेनी पड़ी।’
‘थेरुवरम’ में दो एम्बुलेंस हैं। लॉकडाउन के दौरान एक दिन में दोनों एम्बुलेंस में करीब 8 हजार रुपए का ईंधन भराना पड़ता था। शेविंग किट, कपड़े, मॉस्क और हैंड सैनिटाइजर खरीदने के लिए अलग से पैसे लगते थे। मुरुगन ने बताया कि लोगों और संगठनों से मिले दान पर उनकी एनजीओ का खर्चा चलता है।
मुरुगन को 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से समाज सेवा के लिए सम्मान मिल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में उन्हें टाइम्स नाउ के ‘अमेजिंग इंडियंस’ अवार्ड से सम्मानित किया था।