उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति नवंबर माह में दहाई का आंकड़ा पार कर 10.01 प्रतिशत हो गई है। बीते 6 सालों में पहली बार उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रस्फीति ने दहाई के आंकड़े में प्रवेश किया है। इससे पहले दिसंबर 2013 में उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति 13.16 प्रतिशत दर्ज की गई थी। बता दें कि अगस्त माह में खाद्य मुद्रास्फीति 2.99 प्रतिशत थी, जो कि सितंबर में बढ़कर 5.11 प्रतिशत हो गई। अक्टूबर में 7.89 प्रतिशत और बीते माह यह आंकड़ा 10.01 प्रतिशत हो गया। आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि उपभोक्ता खाद्य मुद्रास्फीति करीब एक माह के वक्त में ही डबल हो गई।

गौरतलब है कि खाद्य मुद्रास्फीति में यह उछाल मानसून की कमी या सूखे की समस्या, जैसा कि आमतौर पर होता है, के चलते नहीं आया है, बल्कि यह तेजी अधिक और बिना मौसम की बारिश के कारण हुए फसलों के नुकसान के चलते आयी है।

नरेंद्र मोदी सरकार में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जून 2014 से लेकर मई 2019 के बीच खाद्य मुद्रस्फीति औसतन 3.26 प्रतिशत रही, जो कि उस समय में सामान्य खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़े 4.31 प्रतिशत से कम थी। नवंबर में खाद्य मुद्रास्फीति की दर, उपभोक्ता मूल्य इंडेक्स मुद्रास्फीति जो कि 5.54 प्रतिशत है, उसे भी पार कर चुकी है।

गौरतलब है कि खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल उस दिन देखने को मिला है, जब NSO ने औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े पेश किए हैं। NSO के इन आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन गिरकर 3.84 प्रतिशत रह गया है। इसके अलावा बिजली मांग से लेकर कार बाइक की बिक्री में गिरावट अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत दे रहे हैं।

खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति बढ़ने के पीछे बड़ा कारण सब्जियों और दालों के दामों में आयी तेजी को माना जा रहा है। बता दें कि सब्जियों की मुद्रास्फीति अभी 35.99 प्रतिशत और दालों की 13.94 प्रतिशत है। इसके साथ ही दक्षिण पश्चिमी मानसून में देरी और अक्टूबर नवंबर में बेमौसम बारिश के कारण खरीफ की फसलों में देरी को Food Inflation बढ़ने का कारण माना जा रहा है।

हालांकि सरकार के लिए राहत की बात ये है कि भारी बारिश के चलते भूजल के स्तर में सुधार हुआ है और रबी की फसल को इसका फायदा मिलने की उम्मीद है। ऐसे में संभावना है कि आने वाले समय में खाद्य मुद्रास्फीति से लोगों को राहत मिलेगी।