मशहूर संविधान विशेषज्ञ, एक्सपर्ट और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने दो साल पहले ही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को नागरिकता संशोधन बिल पर चेतावनी दी थी कि विधेयक में धर्मों के नाम का इस्तेमाल न करें। उन्होंने सलाह दी थी कि कानून में “हिंदुओं, सिखों, पारसियों आदि जैसे धर्मों के संदर्भ” को छोड़कर- केवल “उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों” का उपयोग करना चाहिए।

CAB 2016 पर JPC के सामने सबूत पेश करते हुए कश्यप ने सुझाव दिया था कि “उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों” में वे सभी शामिल होंगे, जिन्हें सरकार कानून के जरिए सुरक्षा देने का लक्ष्य निर्धारित कर रही है।

कश्यप ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मेरा विचार था कि इसका मतलब वही होगा। मैंने इसे संयुक्त संसदीय समिति से कहा था। हिंदू, सिख, ईसाई आदि को निर्दिष्ट करना उनके लिए आवश्यक नहीं था, वे इसके बिना भी उद्देश्य प्राप्त कर सकते थे।”

सातवीं, आठवीं और नौवीं लोकसभा के महासचिव रहे कश्यप ने कहा कि अब जब संसद के दोनों सदनों ने इस बिल को पास कर दिया है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन चुका है, तब इसे केवल अदालत के जरिए या फिर संसद में दोबारा संशोधन बिल के जरिए ही बदला जा सकता है।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों को यह याद रखना चाहिए कि “इस लोकतांत्रिक देश का संविधान संसद को सर्वोच्च मानता है”। उन्होंने कहा,”संविधान में विश्वास रखने वालों के रूप में हमें स्वीकार करना चाहिए कि इसे सही करने के तरीके हैं, न कि हिंसक विरोध प्रदर्शन करके सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाय।”

कश्यप ने खुद को “संविधान का छात्र” बताते हुए कहा: “इस कानून (CAA) की वैधानिकता को अदालत में चुनौती दी जा सकती है या लोकतांत्रिक तरीके से आप इसे संसद में बदलने की कोशिश कर सकते हैं। इसके लिए या तो आने वाले चुनावों में लोकसभा में बहुमत के आंकड़े को जनादेश के जरिए बदलकर या अधिनियम में संशोधन करके किया जा सकता है।” कश्यप ने कहा कि जो लोग संसद में बिल का विरोध कर रहे थे उनके पास बहुमत नहीं था लेकिन जिन लोगों ने संसद में साथ दिया और अब विरोध कर रहे हैं वो वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।