सरकार की मैग्जीन “अंतिम जन” में महात्मा गांधी से वीर सावरकर की तुलना के बाद नया विवाद शुरू हो गया है। महात्मा गांधी के पोते से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक के नेता सवाल उठा रहे हैं कि गांधी स्मृति संस्थान में सावरकर पर विशेषांक क्यों निकाला गया है। इस पर चल रही एक टीवी डिबेट में कांग्रेस प्रवक्ता रागिनी नायक ने कहा कि गांधी की बैसाखी के बिना आज भी संसद में बड़ी फोटो लगाने और तमाम महिमामंडन करने के बाद भी बीजेपी सावरकर को अपने पैरों पर खड़ा नहीं कर पा रही है।

उन्होंने कहा, “सावरकर हैं कौन? 1910 में उन्हें आजीवन कारावस हुआ और 1911 से माफीनामा लिखना शुरू कर दिया। अंग्रेजों की वफादारी की कस्में खाने लगे। उसी सेल्यूलर जेल में सॉलिटरी कंसाइनमेंट से बचने के लिए, जो और इनके साथी भूख हड़ताल पर बैठे थे, उनका साथ देने से मना कर दिया।”

रागिनी ने आरोप लगाया कि 1937 में भारत के विभाजन का बीज सबसे पहले सावरकर ने बोया था और टू नेशन थ्योरी की बात की थी- हिंदी और मुस्लिम राष्ट्र अलग-अलग। उन्होंने कहा कि 1924 से 1937 तक ब्रिटिश साम्राज्य ने सावरकर को बंगला मिला और 60 रुपये प्रतिमाह की पेंशन पर अपना जीवन चला रहे थे।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि “भारत छोड़ो आंदोलन” में कांग्रेस अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दे रही थी, वहीं सावरकर अंग्रेजों की सेना में भर्ती करवा रहे थे।

इस पर बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने पलटवार करते हुए कहा कि जब सावरकर को दो जन्मों का कारावास था, तब कांग्रेस का अध्यक्ष विलियम वेडरबर्न एक ब्रिटिश सरकार का सेक्रेटरी था।

उन्होंने कहा, “जो आपने बोला, वो सब अपनी जगह इसके बावजूद अंग्रेजों को सावरकर काला पानी देने लायक लगते थे, दो जन्मों का कारावास देने लायक लगते थे, जबकि लार्ड माउंटबेटेन पारिवारिक संबंध रखने लायक रखते थे। गजब का संघर्ष था।”