अभिजीत बनर्जी भले ही आज अमेरिकी नागरिक हैं, लेकिन भारत की आर्थिक नीतियों के संदर्भ में वे अपनी राय अक्सर अलग-अलग मंचों से रखते रहे हैं। यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बनर्जी से संपर्क किया था और उन्हीं से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को ‘न्याय’ स्कीम का आइडिया मिला था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अभिजीत बनर्जी से राहुल गांधी ने खुद मुलाकात की थी और गरीबों के उत्थान को लेकर सुझाव मांगे थे। बनर्जी ने राहुल गांधी के साथ देश के आर्थिक मसलों पर कई सुझाव भी दिए थे। इन्हीं में से एक “न्याय” स्कीम भी थी। उन्होंने कांग्रेस को न्यूनतम आय का सुझाव दिया था, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वालों को 2,500 से लेकर 3,000 रुपये देने की बात कही थी।

बनर्जी के सुझाव के मुताबिक इस स्कीम के तहत दी जाने वाली रकम को समय दर समय के हिसाब से आगे बढ़ाया भी जा सकता था। हालांकि, कांग्रेस ने इस स्कीम को तवज्जो देते हुए अपने चुनावी घोषणा-पत्र में इसे शामिल किया और गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वालों को 6,000 रुपये मासिक देने का ऐलान भी किया। उस दौरान कांग्रेस ने “न्याय” स्कीम का जमकर प्रचार भी किया था और इसे वह एक तरह से इलेक्शन में ट्रंपकार्ड के तौर पर देख रही थी।

भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और अमेरिका के अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को संयुक्त रूप से 2019 के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। नोबेल समिति ने सोमवार को जारी बयान में तीनों को वैश्विक स्तर पर गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में किए गए शोध कार्यों के लिए नोबल प्राइज देने की घोषणा की। दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से पढ़ाई कर चुके अभिजीत बनर्जी भारत की वर्तमान मोदी सरकार की नीतियों पर भी खुलकर बोलते रहे हैं। हालांकि, मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां अक्सर उनके आलोचना के केंद्र में रही हैं।

अभिजीत बनर्जी ने मोदी सरकार के ‘नोटबंदी’ के फैसले की भी प्रचंडता से आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि इस कदम से इनफॉर्मल सेक्टर को सबसे ज्यादा धक्का पहुंचेगा। क्योंकि, इस सेक्टर की ताकत कैश मनी है। ऐसे में नोटबंदी का सीधा प्रभाव इस क्षेत्र में विशेष में काम कर रहे लोगों पर काफी ज्यादा पड़ेगा। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में पी वैद्यनाथ अय्यर की रिपोर्ट में इस संबंध में विशेष तौर पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में बनर्जी के हॉवर्ड विश्वविद्यालय की नम्रता काला के साथ लिखे संयुक्त पेपर का हवाला दिया गया। जिसमें उन्होंने बताया था कि नोटबंदी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारकों को बिना प्रभावित करने वाले लोगों को एकमुश्त कैश पर बहुत बड़ा आघात है।

मोदी सरकार के खिलाफ उन्होंने तब भी आवाज बुलंद की थी, जब 100 से ज्यादा अर्थशास्त्रियों ने स्टैटिकल डाटा में ‘राजनीतिक हस्तक्षेप’ पर चिंता जाहिर करते हुए एक पत्र पर साइन किया था।