कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने ‘महान दल’ के साथ गठबंधन कर अपना पहला बड़ा फैसला लिया है। हालांकि, महान दल ने अभी तक चुनावों में कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया है, लेकिन, इसकी भूमिका ‘वोट कटवा’ के रूप में जरूर रही है।

2008 से अस्तित्व में आने वाली इस पार्टी (महान दल) ने आज तक एक भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीते हैं। जबकि, इस इसका दावा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन सीटों की गैर-ओबीसी जातियों पर इसका अच्छा-खासा प्रभाव है। हालांकि, चुनावों में महान दल की भूमिका राजनीतिक दलों के वोट काटने के रूप में जरूर रही है। अब जबकि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है, तब ऐसे हालात में कांग्रेस महान दल की अहमियत को भुनाना चाह रही है। गौरतलब है कि गैर- यादव ओबीसी जातियों के समर्थन से ही बीजेपी को यूपी में 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव में जीत नसीब हुई।

महान दल का गठन केशव देव मौर्य ने किया था। केशव का ताल्लुक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से भी रहा है। 2004 में उन्होंने अपना दल के टिकट से जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 2009 में महान दल ने कांग्रेस के साथ मिलकर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। महान दल ने आंवला और मैनपुरी से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे। उस दौरान आवंला में उसे 56,233 वोट मिले थे। गौर करने वाली बात यह है कि तब चुनाव में विजयी बीजेपी और दूसरे नंबर पर रही समाजवादी पार्टी के बीच मतों का अंतर 7,861 वोटों का था। वहीं, समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी में महान दल को थोड़ी निराशा मिली थी, उसे यहां सिर्फ 1,187 वोट हासिल हुए।

2012 में महान दल ने प्रदेश की 74 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और प्रदेश में मिले कुल मतों का 0.90 फीसदी वोट हासिल किए। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने फिर से राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ-साथ महान दल के साथ गठबंधन किया। इस दौरान आरएलडी को 8 सीटें दी गईं, जबकि महान दल के हिस्से में तीन सीटें आईं। जिनमें एटा, नगिना और बदायूं सीट शामिल थीं। इस चुनाव में पार्टी को पश्चिमी यूपी में 22,774 वोट हासिल हुए।