कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में एक जांचकर्ता ने एक विशेष अदालत को बताया कि मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर करने का आदेश तत्कालीन सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा ने दिया था। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति इस बारे में सिन्हा की भूमिका को लेकर जांच कर रही है कि क्या उनके फैसलों से जांच प्रभावित हुई। जांच अधिकारी मामले में अभियोजन के गवाह के रूप में अपना बयान दर्ज करा रहा था । यह मामला मध्य प्रदेश आधारित कमल स्पंज स्टील एंड पॉवर लिमिटेड (केएसएसपीएल) तथा अन्य से जुड़ा है जिसमें अदालत ने सीबीआई द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और मुकदमे पर आगे बढ़ रही है।
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सीबीआई ने प्राथमिकी में आरोपियों के रूप में केएसएसपीएल, इसके निदेशकों, पवन, कमलजीत अहलूवालिया, प्रशांत अहलूवालिया, अमित गोयल और कुछ अज्ञात लोकसेवकों का नाम लिया था । इन पर कोयला ब्लॉक हासिल करने के लिए कथित तौर पर नेट वर्थ को बढ़ा…चढ़ाकर पेश करने सहित तथ्यों को गलत तरह से पेश करने का आरोप है। अधिकारी ने अदालत को बताया कि जांच पूरी करने के बाद उन्होंने रिपोर्ट अपने वरिष्ठ अधिकारी को सौंप दी थी लेकिन ‘सक्षम प्राधिकार’ से मामले को बंद करने का अंतिम आदेश मिला । सीबीआई न्यायाधीश के यह पूछने पर कि ‘सक्षम प्राधिकार’ कौन है, क्लोजर रिपोर्ट दायर करने का आदेश किसने दिया था, डीएसपी संजय दुबे ने कहा, ‘रंजीत सिन्हा, तत्कालीन सीबीआई निदेशक ।’
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सीबीआई के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सिन्हा की अपने आवास पर कोयला ब्लॉक आवंटन के कुछ आरोपियों से कथित मुलाकात से उत्पन्न विवाद के चलते वह उच्चतम न्यायालय पहुंचे थे जिसने मामले को देखने के लिए एक समिति गठित कर दी थी। एजेंसी के पूर्व विशेष निदेशक एमएल शर्मा के नेतृत्व वाली समिति शीर्ष अदालत को प्रारंभिक रिपोर्ट दे चुकी है और यह अब भी इन आरोपों में जांच कर रही है कि आरोपियों और अन्य के साथ सिन्हा की बैठकों से कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में जांच प्रभावित हुई।
अपनी गवाही के दौरान जांच अधिकारी ने कहा, ‘सभी आवश्यक जांच पूरी होने पर मैंने अपनी रिपोर्ट सीबीआई में अपने वरिष्ठ अधिकारी को सौंप दी । हालांकि तत्कालीन सक्षम प्राधिकार से सभी आरोपियों के खिलाफ मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर करने का अंतिम आदेश मिला । तदनुसार, मैंने 27 मार्च 2014 को अदालत में क्लोजर रिपोर्ट के रूप में अंतिम रिपोर्ट दायर की।’