हालांकि यूक्रेन-रूस युद्ध ने वैश्विक स्तर पर पैदा हुए ऊर्जा संकट से इस साल कोयले का इस्तेमाल उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। भारत कोयले की खपत में वैश्विक वृद्धि के लिहाज से सबसे आगे रहा। तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि के कारण देश ने सबसे आसानी से उपलब्ध कोयले का रुख किया।
भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इस साल कोयले की खपत और उत्पादन के रुझान से संकेत मिलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लक्ष्य के बावजूद यहां कोयले की उपयोगिता आगे भी बनी रहेगी। भारत में कोयले की खपत 2007 के बाद से छह फीसद की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ी है और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी (आइईए) का अनुमान है कि इस साल वैश्विक स्तर पर र्इंधन की मांग में सबसे बड़ी वृद्धि भारत से हुई। वृद्धि के लिहाज से यह आंकड़ा करीब सात फीसद या सात करोड़ टन था।
देश में बिजली क्षेत्र कोयले पर अत्यधिक निर्भर है और कोयले की मांग बढ़ने में सबसे अधिक योगदान इसी क्षेत्र का है। भारत की कुल बिजली मांग में कोयला-आधारित बिजली उत्पादन की हिस्सेदारी 73 फीसद है और निकट भविष्य में भी इसके बिजली का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बने रहने का अनुमान है।
आइईए को उम्मीद है कि वर्ष 2025 में भारत की कोयले की मांग बढ़कर 122 करोड़ टन हो जाएगी जिसमें से 92 फीसद हिस्सा बिजली उत्पादन में जाएगा। बिजली की मांग भी सात फीसद की दर से बढ़ रही है। सरकार भी घरेलू स्तर पर कोयला उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है ताकि गर्मियों में कोयला की किल्लत की स्थिति से बचा जा सके। वर्ष 2021 में कोयले का उत्पादन पहली बार 80 करोड़ टन तक पहुंचा था और 2025 तक इसके बढ़कर एक अरब तक टन से अधिक हो जाने का अनुमान है।
कोयला मंत्रालय अगले वित्त वर्ष में देश के कोयला उत्पादन को एक अरब टन तक बढ़ाने की योजना बना रहा है और इसका लक्ष्य आने वाले वर्ष 2023 में उच्चतम उत्पादन और प्रेषण को हासिल करना है। मंत्रालय नए साल में कोयला गैसीकरण के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने का भी इरादा रखता है।
कोयला मंत्रालय के मुताबित, एक अरब टन का कोयला उत्पादन विभिन्न स्रोतों से आएगा, जिसमें सरकारी स्वामित्व वाली सीआइएल, वाणिज्यिक खदानें और कैप्टिव कोयला ब्लाक शामिल हैं। सरकार खनन अधिनियम में कुछ और संशोधन करना चाहती है, जो संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग में रखे जा सकते हैं। इसके अलावा मंत्रालय की वित्त वर्ष 2024-25 में 500 खनिज ब्लाक बेचने की भी योजना है।
हाल में जी 20 देशों की कमान संभालने के बाद से सारी दुनिया की नजरें कोयले के उपयोग को लेकर भारत पर टिकी हैं। कुछ समय पहले, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के आंकड़ों के हवाले से यह बात कही गई कि जी 20 देशों में ऊर्जा के इस्तेमाल का मुख्य स्रोत अभी भी जीवाश्म र्इंधन उद्योग पर निर्भर है। वर्ष 2020 में जहां इस समूह के देशों में जीवाश्म र्इंधन सब्सिडी 147 बिलियन अमेरिकी डालर तक गिर गई थी, वहीं 2021 में वह फिर से 29 फीसद बढ़कर 190 बिलियन हो गई। 2022 में सब्सिडी में वृद्धि जारी है। ऐसा यूक्रेन युद्ध की वजह से है।
पश्चिमी विकसित समृद्ध राष्ट्र सभी इस बात से सहमत हैं कि उत्सर्जन को कम करने के लिए कोयले की चरणबद्ध समाप्ति एक अपेक्षाकृत सस्ता और आसान विकल्प है। दरअसल ये सभी देश कोयले से दूर हट रहे हैं क्योंकि उनके पास प्राकृतिक गैस की आपूर्ति है। हालांकि कोयले की तरह प्राकृतिक गैस और तेल दोनों ही ग्रीन हाउस गैसों झ्र जीएचजी उत्सर्जन में योगदान करते हैं।
ग्लासगो में हुए समझौते में केवल कोयले को लक्षित किया गया था, जबकि प्राकृतिक गैस और तेल जैसे अन्य जीवाश्म र्इंधनों का उल्लेख करने से परहेज किया गया था, जिनका उपयोग अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा बहुतायत में किया जाता है। हालांकि हानिकारक जीएचजी उत्सर्जन को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका सभी जीवाश्म र्इंधन को पूरी तरह से समाप्त करना है।
भारत में सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा का दायरा पूरी दुनिया में बढ़ता जा रहा है. भारत ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। जनवरी से जून तक भारत ने सौर ऊर्जा से चार बिलियन डालर की बचत की है। भारत ने 2022 की पहली छमाही में सौर ऊर्जा उत्पादन के जरिए र्इंधन लागत में 4.2 अरब अमेरिकी डालर की बचत की है। रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में 19.4 मिलियन टन कोयले की बचत हुई है। इससे पता चलता है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली 10 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से पांच एशिया में हैं। एशिया में चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया और वियतनाम सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बने हुए हैं।