पैबो की खोज को लेकर नोबेल पुरस्कार देने वाले वाली कमेटी ने अपने बयान में कहा, विलुप्त हो चुके होमिनिन्स (आदिमानवों) और आज जिंदा सभी इंसानों के बीच अनुवांशिक अंतर बताने वाली उनकी खोजें, उस बुनियाद जैसी हैं जो बताती हैं कि हमें अनोखा इंसान बनाने वाली चीजें क्या हैं। पैबो ने लाखों साल पुरानी हड्डी से मानव का क्रमिक विकास समझाया है। साथ ही यह भी बताया है कि आदिकाल से आज के इंसानों तक अनुवांशिक जीन का प्रवाह, आज भी शरीर विज्ञान के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है, मसलन हमारी प्रतिरोधी प्रणाली कैसे किसी संक्रमण के प्रति काम करती है।

पैबो को प्राचीन डीएनए के क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है। यह एक ऐसा शोध क्षेत्र है, जो ऐतिहासिक एवं प्राग-ऐतिहासिक अवशेषों को बरामद करने और उनके विश्लेषण से जुड़ा हुआ है। पैबो का लक्ष्य सदा ही निएंडरथल डीएनए हासिल करना था। उन्होंने इसके लिए उपलब्ध पद्धतियों के पर्याप्त रूप से परिपक्व होने तक प्राचीन डीएनए को हासिल करने एवं उसके प्रमाणीकरण के लिए सावधानीपूर्वक पद्धतियों को विकसित किया।

आखिरकार, 1997 में पैबो और उनके सहकर्मियों ने प्रथम निएंडरथल डीएनए अनुक्रमण प्रकाशित किया। वर्ष 2010 में समूचा निएंडरथल जीनोम प्रकाशित किया गया। कुछ वर्षों बाद, पैबों और उनकी टीम ने पूर्व के एक अज्ञात प्रकार के मानव डेनिसोवांस (निएंडरथल से दूर का संबंध रखने वाला) का जीनोम प्रकाशित किया।

यह अनुक्रमण साइबेरिया की डेनिसोवा गुफा में मिले अस्थि के 40,000 साल पुराने अंश के अनुक्रमण पर आधारित है। पैबो ने यह पता लगाया कि कई आधुनिक मानव में निएंडरथल और डेनिसोवान्स के डीएनए के मामूली हिस्से मौजूद हैं। आधुनिक मानव और हमारे विलुप्त पूर्वजों के बीच अनुवांशिकी अंतर का खुलासा करने वाले पैबो की प्रभावशाली खोजों ने हमें वह आधार उपलब्ध कराया है जो मानव को अनूठा बनाता है।

67 साल के प्रोफेसर डाक्टर स्वांते पैबो जर्मनी के प्रतिष्ठित माक्स प्लांक इस्टीट्यूट फार इवोल्यूशनरी एंथ्रोपालजी के निदेशक हैं। निएंडरथल नाम की प्रजाति के जीनोम की खोज के दौरान उन्होंने एक ऐसी तकनीक विकसित कर ली जिससे किसी भी जीवाश्म के जीनोम तक पहुंचा जा सकता है।

कभी कभी नई कोशिकाएं बनते समय जीनोम में संरक्षित कुछ डीएनए मालिक्यूल की स्थिति बदल जाती है। अरबों डीएनए मालिक्यूल में से कुछ की स्थिति में आया बदलाव, पीढ़ी दर पीढ़ी बड़े अंतर पैदा करता जाता है। मसलन, अगर दो इंसानों के जीनोम की तुलना की जाए तो 1200 से 1400 मालिक्यूल कैरेक्टर के बाद कोई अंतर निकलेगा।

इसी अंतर को और गहराई से देखा जाए तो लाखों अंतर सामने आने लगते हैं। इन अंतरों का इतिहास खंगालने पर आज के इंसान के जीन, लाखों साल पुराने आदिमानवों से जुड़ने लगते हैं। ऐसे ही अंतरों ने लाखों करोड़ों साल पहले चिपैंजी की कुछ प्रजातियों को इतना बदल दिया कि इंसान जैसी प्रजातियां बन गर्इं। इनमें विलुप्त हो चुके निएंडरथाल भी हैं और आज के इंसान होमो सेपियंस भी। पैबो ने ऐसी तकनीक विकसित की, जिससे जीवाश्म के रूप में मिलने वाली छोटी सी हड्डियों से भी जीनोम निकाला जा सकता है।

इस तकनीक के जरिए डीएनए से, बैक्टीरिया, फंगस, धूल, मौसमी बदलावों और बाहरी रासायनिक परिवर्तन जैसे कारकों को साफ किया जाता है। यह तकनीक इतनी आगे जा चुकी है कि अब एक साथ लाखों डीएनए का विश्लेषण किया जा सकता है।

इसी तकनीक की बदौलत पता चल सका है कि दुनिया में आज जितने भी इंसान हैं, वो एक लाख से दो लाख साल पहले एक परिवार से निकलने के बाद कैसे दूसरी प्रजातियों से घुलते मिलते हुए बदलते गए। इस थ्योरी के आधार पर कहा जाता है कि हमारे पुरातन पुरखे जब अफ्रीकी महाद्वीप से बाहर निकले तो वो मध्यपूर्व में रहने वाली निएंडरथाल प्रजाति से घुले मिले। यूरोप और एशिया के इंसानों के जीनोम में निएंडरथाल प्रजाति का भी अंश है। चीन, साइबेरिया और पापुआ न्यू गिनी जैसे इलाकों से निएंडरथाल के सबूत मिल चुके हैं।