CJI DY Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के लिए पांच जजों की नई संविधान पीठ का गठन किया है। इस बेंच को CJI डीवाई चंद्रचूड़ हेड करेंगे। उनके अलावा इस बेंच में जस्टि एएस बोपन्ना, एमएम सुंद्रेश, जेपी पारदीवाला और मनोज मिश्रा होंगे।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली ये बेंच जिन मामलों की सुनवाई करेगी, उनमें सिटिजन शिप एक्ट,1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती से लेकर SC और ST के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में रिजर्वेशन के विस्तार की मांग करने वाले मामले शामिल हैं। इसके अलावा वोट देने के लिए रिश्वत लेने या देने जैसे अपराधों के लिए मुकदमा चलाने से सांसदों और विधायकों को मिली कानूनी छूट के सवाल पर भी फैसला किया जाएगा।

आइए नजर डालते हैं तीनों मामलों पर

Assam Public Works vs. Union of India & Ors. – इस मामले में जांच का विषय यह है कि क्या सिटीजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 6ए किसी संवैधानिक खामियों से ग्रस्त है। यह सेक्शन 1985 में भारत सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत सहित असम आंदोलन के नेताओं के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 1955 के कानून में इंट्रोड्यूस की गई थी। सेक्शन 6ए में “असम समझौते के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता के संबंध में विशेष प्रावधान” किया गया है।

इस सेक्शन के अनुसार, वे सभी जो 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले स्पेसिफाइड टेरिटरी से असम आए थे – जिसमें सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट, 1985 के प्रारंभ के समय बांग्लादेश के सभी क्षेत्र शामिल हैं। – और तब से असम के निवासियों को नागरिकता के लिए स्पेसिफाइड नियमों के तहत खुद को रजिस्टर करना होगा।

इस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका 2012 में गुवाहाटी बेस्ड सिविल सोसायटी ग्रुप असम संमिलिता महासंघ द्वारा दायर की गई थी। इसमें तर्क दिया गया कि असम और देश के अन्य हिस्सों में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तारीखें प्रदान करने के कारण धारा 6ए भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध है।

Ashok Kumar Jain vs. Union of India and Ors.

इस मामले में CJI के नेतृत्व वाली बेंच द कॉन्स्टिट्यूशन (79वें अमेंडमेंट) एक्ट, 1999 की वैधता को दी गई चुनौती से निपटेगी, जिसने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियनंस को संविधान के अनुच्छेद 334 के तहत दिए गए आरक्षण को 10 साल की सीमा से आगे बढ़ाने की अनुमति दी थी।

अनुच्छेद 334 लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व से संबंधित है। हालांकि शुरुआत में इसे 10 साल की अवधि तक जारी रखने का इरादा था, बाद में संविधान (95वां संशोधन) अधिनियम, 2009 जैसे संशोधनों ने एंग्लो-इंडियन, एससी और एसटी जैसे समूहों के लिए आरक्षण को क्रमशः 70 साल और 80 साल तक बढ़ा दिया।

हालंकि जनवरी 21, 2020 को द कॉन्स्टिट्यूशन (104वें अमेंडमेंट) एक्ट, 2019 के तहत SCs और STs आरक्षण को दोबारा 80 साल के लिए बढ़ा दिया गया लेकिन एंग्लो-इंडियन समूह को मिलने वाले आरक्षण को बंद कर दिया। पिछले साल, 24 अगस्त को शीर्ष अदालत ने मामले को CJI डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच जजों की बेंच द्वारा विचार के लिए लिस्ट किया था। उम्मीद की जा सकती है कि अब मामले पर अंतिम फैसला हो जाएगा।

Sita Soren v. Union of India

इस मामले में, अदालत को यह तय करना होगा कि क्या संविधान का आर्टिकल 194 (2) विधानसभा के सदस्यों को रिश्वत की पेशकश या स्वीकार करने से जुड़े अपराध के लिए आपराधिक अदालत में मुकदमा चलाने से छूट प्रदान करता है। आर्टिकल 194 (2) में कहा गया है, “किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में अपने द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।”

यह मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्य सीता सोरेन द्वारा दायर याचिका से उत्पन्न हुआ था, जिन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक निश्चित उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। CBI ने वोट देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। सोरेन ने तर्क दिया कि उन्हें आर्टिकल 194(2) द्वारा दी गई छूट से सुरक्षा मिली है, लेकिन उनकी याचिका 2014 में झारखंड हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके कारण उन्होंने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की।

7 मार्च 2019 को, SC की तीन जज की बेंच ने पी वी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले में एक संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने फैसला सुनाया था कि संविधान के तहत, सांसद अपने भाषण और वोटों के संबंध में आपराधिक मुकदमे के खिलाफ प्रतिरक्षा के हकदार थे। इसके बाद बेंच ने मामले को पांच जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया।