असम के मंत्री और भाजपा के नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस(नेडा) के संयोजक हिमंत बिस्व सरमा ने मंगलवार को बांग्लादेशी लोगों का मुद्दा उठाते हुए राज्य की जनता से अपने दुश्मन को चुनने को कहा। उन्होंने कहा कि वे 1-1.5 लाख लोग या 55 लाख लोगों में से चुन लें कि उनका दुश्मन कौन है? हालांकि उन्होंने आंकड़ों को विस्तार से नहीं बताया लेकिन वे हिंदू और मुस्लिम माइग्रेंट्स की बात कर रहे थे। असम में नागरिकता (संसोधन) बिल पर विपक्ष के सवालों का जवाब देने के दौरान उन्होंने यह बयान दिया। हालांकि असम में कितने बांग्लादेशी लोग हैं इसका आधिकारिक आंकड़ा नहीं हैं लेकिन राजनैतिक दलों का कहना है कि राज्य में 55 लाख बांग्लादेशी माइग्रेंट हैं।
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हिमंत बिस्व सरमा ने कहा, ”पूरी बात यह है कि हमें तय करना है कि हमारा दुश्मन कौन है। कौन हमारा दुश्मन है डेढ़ लाख लोग या 55 लाख लोग। असमिया समुदाय चौराहे पर खड़ा है। हम 11 जिले नहीं बचा सके। यदि हम ऐसे ही रहे तो 2021 की जनगणना में छह जिले और चले जाएंगे। 2031 में बाकी के जिले भी चले जाएंगे।” सरमा ने 2011 की जनगणना के आधार पर 11 जिलों को मुस्लिम बहुलता वाला बताया। 2001 में यह संख्या छह थी। उन्होंने बिल का विरोध करने वालों से पूछा कि किस समुदाय ने असमिया लोगों को अल्पसंख्यक बनाने की धमकी दी है। नागरिकता (संसोधन) बिल के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश में जुल्म सह रहे हिंदुओं, बौद्धों, जैन, सिख और पारसियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है।
हिंदू और मुसलमान माइग्रेंट में भेद करने की नीति क्या भाजपा की है, इस सवाल सरमा ने कहा, ”हां, हम करते हैं। साफतौर पर हम करते हैं। देश का बंटवारा धर्म के नाम पर हुआ था। इसलिए यह नई चीज नहीं है। जब हम डिब्रूगढ़ या तिनसुखिया जाते हैं तो हमें अच्छा लगता है क्योंकि वहां पर बहुसंख्या में हैं। लेकिन जब आप धुबड़ी या बारपेटा जाते हैं तो क्या आपको सही लगता है?” गौरतलब है कि धुबड़ी और बारपेटा दोनों मुस्लिम बहुल जिले हैं। भाजपा नेता ने बताया कि उनकी पार्टी बंगाली बोलने वाले हिंदुओं की सुरक्षा करना चाहती है और इसलिए उन्हें बंगाली मुसलमानों से अलग रखना चाहती है।
उन्होंने कहा, ” हम बंगाली हिंदुओं को असमिया लोगों के साथ रखना चाहते हैं। यह भाजपा का मानना है। यह बदला नहीं है। चुनाव से पहले भी यही विचार था और अब भी यही है। क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि सत्र अपने वास्तविक जगह से दूसरी जगह चले जाएं? क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि बाटाद्रवा सत्र की जमीन छीन ली जाए?”

