देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी पर तल्ख जवाब दिया। मोदी ने जजों द्वारा लंबी छुट्टी लेने के बारे में टिप्पणी की थी। चीफ जस्टिस ठाकुर ने कहा- जज गर्मी की छुट्टियों का मजा लेने हिल स्टेशनों पर नहीं जाते, बल्कि वे अपना समय मुकदमों के फैसले लिखने में लगाते हैं, ताकि पुराने मामले निपटते जाएं और नए मामले सुनवाई के लिए आ सकें। मुख्यमंत्रियों और सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने छुट्टियों का जिक्र किया था। खास कर गर्मी में होने वाली लंबी छुट्टी का। उन्होंने कहा कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए जब वह ऐसी ही एक कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे, तब भी उन्होंने यह मुद्दा उठाया था।
कॉन्फ्रेंस में अपने संबोधन के बाद चीफ जस्टिस जब मीडिया से बात कर रहे थे, तब उन्होंने कहा, ‘क्या आपको लगता है कि हम मनाली या किसी और हिल स्टेशन पर मजे उड़ाने जाते हैं। पहले तो मैं ये साफ कर दूं कि जिन छुट्टियों की बात की जा रही है, वे सिर्फ तीन हफ्ते की होती हैं। फैसले कौन लिखेगा? खास कर संविधान पीठ के फैसले? मेरे भाई जज (जस्टिस जेएस कहर) ने छुट्टी के बीच एनजेएसी की सुनवाई की और छुट्टी के दौरान ही फैसला लिखा।’
जस्टिस ठाकुर यहीं पर नहीं रुके, उन्होंने कहा, ‘अगर उन्हें लगता है कि हमें लंबी छुट्टी मिलती है, तो ये उनके विचार हैं और उन्हें इस पर कायम रहने का हक है। लेकिन यह तो एक जज की पत्नी और बच्चे ही बता सकते हैं कि वह छुट्टियां का कितना आनंद लेते हैं।’
और क्या बोले जस्टिस ठाकुर
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भावुक भी हो गए। मुकदमों की भारी बाढ़ से निपटने के लिए न्यायाधीशों की संख्या को मौजूदा 21 हजार से 40 हजार किए जाने की दिशा में सरकार की निष्क्रियता पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा था- आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते। बेहद भावुक नजर आ रहे न्यायमूर्ति ठाकुर ने नम आंखों से कहा कि 1987 में विधि आयोग ने न्यायाधीशों की संख्या प्रति 10 लाख लोगों पर 10 से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, लेकिन तब से लेकर अब तक इस पर कुछ नहीं हुआ।
मुख्यमंत्रियों व हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि इसके बाद सरकार की अकर्मण्यता नजर आती है, क्योंकि न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई। प्रधान न्यायाधीश जब ये बातें कह रहे थे, उस समय उन्हें अपने आंसू पोंछते देखा जा सकता था। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां मौजूद थे और पूरी गंभीरता से उनकी बातें सुन रहे थे। उन्होंने आगे कहा- और इसलिए यह मुकदमा लड़ रहे लोगों या जेलों में बंद लोगों के नाम पर नहीं है, बल्कि देश के विकास के लिए भी है। इसकी तरक्की के लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है। आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते।
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