छोटा राजन की कहानी: पार्ट टू

राजेंद्र बड़ा राजन के गैंग में आ चुका था। उन दिनों बंबई के इलाके अंडरवर्ल्‍ड ने आपस में बांट रखे थे। शहर के दक्षिणी हिस्‍से में पठान, करीम लाला और उस समय उभर रहा दाऊद इब्राहिम गैंग ऑपरेट कर रहा था। उत्‍तरी इलाके में बाहर से आकर बसे लोगों के अपने-अपने गॉडफादर थे। राजन के एक पुराने सहयोगी ने बताया, ‘तब हथियार भी एकदम अलग किस्‍म के थे। घोड़ा (बंदूक) नहीं हुआ करता था। ट्यूब लाइट्स, सोडा बॉटल और चाकू हुआ करते थे।’

सेंट्रल उपनगरीय इलाके में, जहां बड़ी संख्‍या में दक्षिण भारतीय लोग रहते थे, वरदराजन मुदलियार का सिक्‍का चलता था। सत्‍तर के दशक के अंत में जब मुंबई पुलिस का शिकंजा कसा तो वह तमिलनाडु भाग गया। इसके बाद दोनों राजन उसकी जगह भरने और उसके इलाके का कंट्रोल लेने में जुट गए। उन्‍हें यह पता चल चुका था कि उस इलाके में अवैध शराब के धंधे से काफी कमाई होती है। इस पर कब्‍जा करने के लिए अदावतें बढ़ीं और उसी अनुपात में सड़कों पर बहने वाला खून भी।

तिलक नगर से ही सटा घाटकोपर ईस्‍ट है। यह इलाका पैसे वालों का है। यहां का यशवंत जाधव और फिलिप पंढारे राजन का कट्टर विरोधी था। 65 साल के एक रिटायर्ड मिल मजदूर ने बताया, ‘उन दिनों बड़ा राजन और यशवंत जाधव में खूब गैंगवार होती थी। तिलक नगर के लोगों के लिए वह दौर सबसे ज्‍यादा असुरक्षित बीता था। यहां तक कि 1992-93 के दंगों के वक्‍त भी हालत उतनी खराब नहीं थी।’ तिलक नगर में करीब 40 साल रहने वालीं दर्जी कविता भाग्‍ये याद करती हैं, ‘अगर पुलिस की ओर से कर्फ्यू नहीं लगा होता था तो राजन अपनी ओर से बंद करवा देते थे। ऑटो ड्राइवर तिलक नगर का नाम सुनते ही कहते थे- नहीं जाऊंगा। हालांकि, हमें कभी परेशान नहीं किया गया। लेकिन डर हमेशा बना रहता था।’

20 मार्च, 1978 की बात है। इंस्‍पेक्‍टर राजा सरमालकर अपने दो सब इंस्‍पेक्‍टर्स (अशोक दुरापहे और पीआर चह्वान) के साथ तिलक नगर में साहाकर सिनेमा के पास सड़कों पर घूम रहे थे। राजन ने क‍थित रूप से तीनों पर हमला कर दिया। यह हमला घाटकोपर और चेम्‍बूर इलाके में सिनेमा टिकटों की कालाबाजारी के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन के विरोध में था। हमले का शिकार हुए एक पुलिस अफसर ने बताया, ‘छोटे राजन ने पैंट की जेब से कट्टा निकाला और चह्वान के चेहरे पर हमला बोल दिया। छोटा राजन को थाने तलब किया गया। वह नाटा था और चप्‍पल पहना करता था। उससे पूछताछ कर रहे पुलिस अफसर ने उसे एक तमाचा मारा। बदले में राजन ने उसे धमकी दे दी।’

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साहाकर सिनेमा जहां छोटा राजन ब्लैक में टिकटें बेचा करता था। (फोटो- प्रशांत नादकर)

 

राजेंद्र अब छोटा राजन बन गया था। उसके पिता उससे खफा हो गए थे। दोनों के रिश्‍तों में कड़वाहट भर गई थी। तिलक नगर के कई लड़के राजन से करीबी बढ़ाने लगे थे। इसके बाद हर मां-बाप अपने बच्‍चों पर नजर रखने लगे। बड़ा राजन की बिल्डिंग नंबर 53 के बाहर किराने की दुकान चलाने वाले 40 साल के दिनेश ने कहा, ‘मैंने न कभी छोटा राजन को देखा और न उसके बारे में सुना। वह देश छोड़ चुका था। मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं उसके संपर्क में चला जाऊं।’

बड़ा डॉन और दाऊद का साथी बन गया छोटा राजन:

1983 में एस्‍प्‍लैंडेड कोर्ट के बाहर बड़ा राजन को गोली मार दी गई। उसे गोली मारने वाले की पहचान चंद्रशेखर सफालिके के तौर पर की गई। वह नौसैनिक का वेष धर कर कोर्ट आया था। एक मोटी किताब में उसने गन छिपा रखी थी। बताया जाता है कि उसे चेम्‍बूर के ही डॉन अब्‍दुल कुंजु उर्फ कालिया अब्‍दुल ने भेजा था।

बड़ा राजन की मौत के बाद छोटे राजन ने खुद को और ताकतवर बनाना शुरू किया। पांच साल के भीतर उसने कुंजु को मार कर बड़ा राजन की मौत का बदला ले लिया। इस मर्डर को अंडरवर्ल्‍ड में छोटा राजन की बढ़ी हुई ताकत के रूप में देखा गया। उसे दाऊद ने अपने गैंग में मिला लिया। 1986 में वह दाऊद के साथ दुबई चला गया। वहां जाकर दोनों मिल कर काला कारोबार करने लगे।

बड़ा राजन के गैंग में जाते ही राजेंद्र से उसके पिता के रिश्‍ते खराब हो गए थे। छोटा राजन के मां-बाप, भाई-बहन, पत्‍नी के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें और बड़ा राजन के गैंग में जाने की उसकी कहानी यहां पढ़ें

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